आरिफा मसूद अंबर
चांदनी में ऊपर से नीचे तक सराबोर और जज़्बात से लबरेज़ इशारो और कनायो की हसीन अदाओं के दिलकश बयान का अगर कोई नाम है तो वह है शायरी, शायरी में हुस्न भी है और इश्क भी हुस्न ऐसा के इसे देखते रह जायें और इश्क ऐसा के सोचते रह जायें, खुशबुओं को सांसों में उतार लेने और फिर इसे फिज़ा में बिखेर देने का नाम ही शायरी है दुनियावी इश्क को मालिक ए हकी़की तक पहुंचाने का काम यानी इश्क़ ए मिजा़जी को इश्क़ ए हकी़की में तब्दील कर देने के खूबसरत एहसास का काम इतना आसान नहीं है लेकिन शायरी ने ये हसीन काम बखू़बी अंजाम दिया वफ़ा शाआर जज़्बात में गरक अल्फ़ाज़ जिस शायर की शायरी का सर्माया बन जाते हैं इस शायर को अपनी पहचान में सिवाय अपने अशआर के किसी संदर्भ की आश्यकता नहीं होती , जहां जहां उसका कलाम पहुंचता है वहां वहां वफा जन्म लेती है लेकिन ये बेहतरीन फ़न कुछ की शौरा की कि़स्मत बन पाता है। वैसे तो शहरे जिगर में उर्दू के लतादाद अज़ीम शायर और अदीब पैदा हुए है जिन्होने यहां की सरजमीं को अदबी तख़लीकी़ बसीरत से सैराब व शादाब किया है मुरादाबाद की सरजमीं उर्दू ज़बान व अदब के लिहाज से बहुत ज़रखेज़ है और यहां बहुत से शौरा और अदीबो ने हयात जावेद हासिल किया है। मुरादाबाद के मुमताज़ उर्दू शोरा में मेहबूब आलम सैफी़ का नाम( राज शादानी) का नाम मैं का़बिल ए ज़िक्र समझती राज़ साहब नज़र शादानी के तरबियत याफ़ता खुश फि़क्र खुश ख्याल और शीरी मका़ल शायर हैं राज़ साहब इख्लाकी़ कद्रों के अमीन और तहज़ीबी रिवायतों के नकी़ब शायर हैं वो इंसानी तहज़ीबी कद्रों के पासदार और बशरी सखाफ़त के अलम बरदार हैं राज़ साहब ने सिर्फ क़ाफिया पैमाई के ज़रिए महबूब के लब ओ रूख़सार की सताईश नहीं की बल्कि वह अख़लाक व किरदार के वसीले से अपने फिक्रो फ़न और क़रतास ओ क़लम को किरदार साज़ी और सीरत आराई के मुफ़ीद व मसबत मक़सद के लिए जिहाद ए ज़िन्दगी के मैदान में बड़े खुलूस और अज़म के साथ खड़े नज़र आते हैं राज़ साहब एहसास के फलक पर फ़िक्र की कंदील रौशन करते हुए नज़र आते हैं ग़ज़ल के लहज़े में गुफ्तुगू करने वाला ये शायर जब हम्द, नात ,और मंकबत ,में अपनी अकी़दतो के मोती पिरोता है तो पाकीज़गी की खुशबू माहोल में बसती हुई नज़र आती है
तेरा ज़िक्र दिल का सुकून है तेरा ज़िक्र , ज़िक़्र ऐ अज़ीम है
मेरा दिल है तेरी पनाह में तू ही मेरे दिल में मुक़ीम है
राज़ साहब जब बारगाहे हुसैन में हाजरी देते हैं तो अकी़दत और ग़म की लपटें इनके अंदाज़ को और ज़्यादा लहू लुहान कर देती हैं
हुक्म हो जाता तो यह क़हर ख़ुदा बनती यज़ीद
तूने शब्बीर की तलवार को समझा किया है
दरअसल मामला दिल से कहने का है जो बात दिल से निकलती है असर रखती है अल्लामा इक़बाल के इस मिसरे को ही कसौटी मान लिया जाए तो हम्द ,नात, मनंक़बत तक ही बात नहीं पहुंचती बल्कि ग़ज़ल में हौसलों की फ़रावानी होती है इस क़ौल की रोशनी में राज़ साहब की ग़ज़ल की गहराई देखते हैं।
अपने कदमों में आने न दो लग़ज़िशें
यह तो माना के कुछ घट गई है जिंदगी
ग़ज़ल इशारो और कनायों में गहरे और संजीदा सुरागों से पर्दा कुशाई का काम करती है या यूं कहना गलत न होगा यह आला ख़्यालात को बेहतरीन अल्फ़ाज़ में पेश करने का काम अंजाम देती है तसव्वुरात की रोशनी में राज़ साहब का कलाम पढ़कर अंदाजा होता है के ग़ज़ल से आपका फ़ितरी लगाव है
हार मानी ना हालात कुछ भी रहे
गम के तूफान में डट गई ज़िंदगी
राज़ साहब अपने पुर ख़तर सफ़र जिंदगानी में हर हर कदम पर पेश आने वाले हादसात के मद्दे मुक़ाबिल रह के एक मर्दे मोमिन और मैदाने जिहाद के मर्दे मुजाहिद की तरह सीना सपर होकर अपने जज़्बे अमल के साथ आगे बढ़ते हैं और जिहादी जिंदगी में कामयाबी के साथ एलान करते हैं
जो हक की राह पर चलता है इस मुजाहिद को
समंदरों में भी रास्ता दिखाई देता है
इस जमाने की तीर गामी और तेज रफ्तार को देखते हुए क़ौम को फॉल और तहरीके अमल और सरगरम कार बनाने के लिए इसे दावते हरकत वह अमल देते हैं
जमाना तुमसे बहुत आगे जा चुका है राज़
हयात अपनी तुम भी ज़रा तेज़ गाम करो
राज़ शादानी तो जज्बा हौसला ،हिम्मत, इस्तकलाल, आदमीयत और अपने प्यारे रसूल के नवासे इमाम हुसैन अल्लाह ताला से हासिल हुआ।
ज़ख्मो से जो चूर चूर था सरकार का बदन
फिर भी शकस्त खाया ना किरदार का बदन
राज साहब अजमत इंसानियत के लिए इंसानी सिफात को इंसानियत की जीना ख्याल करते हैं और इन्हें इंसान के लिए फर्ज करार देते हैं और नफरत वह अदावत की आंधियों में मोहब्बत के चिराग रोशन करने की न सिर्फ दावत देते हैं बल्कि अपने बच्चों के हवाले से आइंदा नस्लों के लिए भी इन्हें खालिक व मालिक से दुआ करते हैं
प्यार , इख़लास, मसावात ,मुहब्बत देना
फर्ज इंसान का है दरसे अखु़व्वत देना
हैं लाख आंधियां नफरत की हर तरफ फिर भी
चराग़ प्यार के रोशन हर एक गाम करो
राज साहब उर्दू गजल में हुस्न और इश्क की इस रूहानी मंजिल के का़यल हैं जहां से सौदा की तरह इन्हें भी दीदार ए यार के लिए कोहेतूर पर जाने की जरूरत न हो बल्कि हर जगह और हर जर्रे में इसके दीदार कर लें ।ग़र्ज़ ये की राज़ शादानी के कलाम में मौजूदा दौर के तनज़िर में हालात ए हाज़रा के हवाले से मस्बत और बामक़सद शायरी के तकाज़ों पूरा करने वाले तमाम अख़लाकी और इस्लाही अनासिर मौजूद हैं ,अल्लाह करीम आपका साया हमारे सर पर तादेर बना रहे अमीन