डॉ० मोहम्मद नजीब कासमी सम्भली
हिन्दी अनुवादक – जैनुल आबेदीन, कटिहार
शैखुल हदीस और सदरुल मुदर्रिसीन दारुल उलूम देवबंद मुफ्ती सईद अहमद पालनपूरी रह० ने 25 रमजानुल मुबारक 1441 मुताबिक 19 मई 2020 को मृत्यु के पुर्व तक 57 वर्ष मदारिसे इस्लामिया (48 वर्ष दारुल उलूम देवबंद सहित) में कुरआन और हदीस की वह अजीम सेवा प्रदान की हैं कि सदियों तक उलेमाए कराम उनसे लाभान्वित होकर उम्मते मुस्लिमा की रहनुमाई करते रहेंगे। दारुल उलूम देवबंद में 30 वर्षों से अधिक हजरत ने हदीस की मशहूर किताब तिरमीजी शरीफ और 2008 से मृत्यु तक तकरीबन 12 वर्ष बुखारी शरीफ का दर्स दिया। शाह वलीउल्लाह मोहद्दिस देहलवी रह० की हुज्जतुल्लाह अलबालिगा जैसी सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुस्तक को आपने 20 वर्षों से अधिक अवधि तक पढ़ाया। एक ओर हजरत के लाखों शीष्य दुनिया के चप्पे-चप्पे में दीनी उलूम के प्यासों को अपने उलूम से फैजयाब और सैराब कर रहे हैं, दूसरी ओर आपकी किताबें से दुनिया के पूरब पश्चिम में लाभ उठाया जा रहा है। आप ने अरबी, उर्दू और फारसी में तफसीरे कुरआन, शरहे हदीस, सीरत, उसूले तफसीर, उसूले हदीस, फिका, उसूले फिका, अस्माउर्रिजाल, तारीख, नहव (ग्रामर), सर्फ, मंतिक व फलसफा, इख़्तेलाफ़ी मसाएल और जदीद मसाएल पर ऐसी श्रेष्ठ किताबें तहरीर फरमाई हैं कि उनमें अधिकतर कई बार प्रकाशित हुई हैं बल्कि कई किताबों की लाखों प्रतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपकी तमाम ही किताबें पूरी दुनिया में कद्र व मंजिलत से पढ़ी जाती हैं। आपकी बहुत सारी किताबें दारुल उलूम देवबंद और हजारों मदारिस के पाठ्यक्रम में सम्मिलित हैं। उस्तादे मोहतरम की किताबों का संक्षिप्त परिचय अपनी जानकारी के अनुसार प्रस्तुत कर रहा हूं।
तुहफ़तुल कारी शरह सही अल–बुखारी: दारुल उलूम देवबंद के शैखुल हदीस मौलाना नसीर अहमद खां रह० की बीमारी के बाद 1429 मुताबिक 2008 से बुखारी जिल्द 1 का दर्स मुफ्ती सईद अहमद पालनपूरी रह० से सम्बद्ध कर दिया गया था। 1402 में कैम्प के वर्ष आपने बुखारी जिल्द 2 भी पढ़ाई थी। 12 जिल्दों पर विस्तृत बुखारी की उर्दू भाषा में यह शरह मुफ्ती साहब के बुखारी के दुरूस (सबक़) का मजमूआ है जो ना केवल बुखारी पढ़ने पढ़ाने वालों के लिये अत्यंत लाभदायक है बल्कि हदीस की दूसरी किताबों को समझने के लिए भी विशेष महत्व रखता है।
तुहफ़तुल अलमई शरह सुनन अततिरमीजी: 8 भारी-भरकम जिल्दों में समाहित तिरमीजी की यह शरह मुफ्ती साहब के दुरूस का मजमूआ है। भारत में मौजूद तिरमीजी के नुस्खे बहुत पुराने थे, हजरत ने अबवाब और अहादीस के नम्बरों के साथ अरबी इबारत को सही तरीके से तरतीब दिया ताकि इस्तफादा में आसानी हो जाये। शरह का मुकदमा असातजा और तलबा दोनों के लिए कीमती मालूमात पर सन्निहित है।
शरह इलल अततिरमीजी: यह तिरमीजी के “किताबुल इलल” की अरबी शरह है। इसमें अत्यंत सरल भाषा में किताबुल इलल को समझाया गया है। किताबुल इलल में किसी हदीस की सनद में मौजूद कमज़ोरी पर बहस की जाती है।
रहमतुल्लाहि अलवासिया: शाह वलीउल्लाह मुहद्दिस देहलवी रह० की अरबी भाषा में लिखित एक किताब “हुज्जतुल्लाह अलबालिगा” है। 250 वर्ष से अधिक अवधि व्यतीत होने के बावजूद इस किताब की उर्दू शरह नहीं लिखी जा सकी। मुफ्ती साहब ने 5 जिल्दों में समाहित “रहमतुल्लाहि अलवासिया” के नाम से उर्दू भाषा में यह शरह तहरीर फरमाई है। शिक्षाविदों ने इस किताब की बड़ी प्रशंसा की है।
तहकीक व ता‘लीक हुज्जतुल्लाह अलबालिगा: हुज्जतुल्लाह अलबालिगा मुफ्ती साहब की तहकीक व ता’लीक के बाद 2 जिल्दों में प्रकाशित हुई है। अरबीदां हजरात के लिए इस महत्वपूर्ण पुस्तक को समझने में मुफ्ती साहब का हाशिया काफी मुफीद है।
तफसीर हिदायतुल कुरआन: मौलाना मोहम्मद उस्मान काशिफ हाशमी रह० 30 वीं पारा और एक ता 9 वीं पारे की तफसीर लिखने के बाद विभिन्न कारणों से कुरआने करीम की तफसीर मुकम्मल नहीं कर सके। मुफ्ती साहब ने यह तफसीर ना केवल मुकम्मल की बल्कि अपनी अपनी महत्वपूर्ण सेवा से 8 जिल्दों पर समाहित यह तफसीर प्रकाशित भी फरमाई।
आसान ब्यानुल कुरआन: मौलाना अशरफ अली थानवी रह० ने 3 जिल्दों पर मुशतमिल उर्दू भाषा में कुरआन करीम की तफसीर “ब्यानुल कुरआन” तहरीर फरमाई है। मौलाना अकीदातुल्लाह कासमी ने इसको सरल बनाया। मुफ्ती साहब ने सम्पूर्ण तफसीर पर नजरसानी फरमा कर “आसान ब्यानुल कुरआन” के नाम से प्रकाशित किया जिसकी 5 जिल्दें हैं।
फैजुल मुनईम: हदीस की किताब “मुस्लिम” का मुकदमा हदीस के पढ़ने पढ़ाने वालों के लिए विशेष महत्व की बात है। मुफ्ती साहब की “फैजुल मुनईम शरह मुकदमा मुस्लिम” तलबा और असातजा में काफी मकबूल है।
ईजाहुल मुस्लिम: हदीस की किताब “मुस्लिम” की मुकम्मल शरह भी मौसूफ ने तहरीर करना आरम्भ कर दी थी, जिसकी पहली जिल्द प्रकाशित हो गई है।
जुब्दह शरह मआनी अलआसार: इमाम तहावी रह० की मशहूर किताब “शरह मआनी अलआसार” के किताबुत्तहारा की अरबी शरह “जुब्दह शरह मआनी अलआसार” मुफ्ती साहब ने तहरीर की है।
अलफौजुल कबीर फी उसूलुत्तफसीर: शाह वलीउल्लाह मोहद्दिस देहलवी की फारसी भाषा में लिखित किताब का कई हजरात ने अरबी भाषा में अनुवाद किया था परंतु प्रत्येक अनुवाद में त्रुटियां मौजूद थीं। मुफ्ती साहब ने तहज़ीब और तसहीह फरमा कर हाशिया के साथ यह किताब दोबारा प्रकाशित की। यह अरबी अनुवाद दारुल उलूम देवबंद और अन्य मदारिसे इस्लामिया के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है।
अलऔनुल कबीर शरह अलफौजुल कबीर: यह “अलफौजुल कबीर फी उसूलुत्तफसीर” की अरबी शरह है। इस शरह के जरिए शाह वलीउल्लाह मोहद्दिस देहलवी रह० की मशहूर किताब को आसानी से समझा जा सकता है।
मिफ्ताहुत्तहजीब: यह मंतिक की मशहूर किताब “तहज़ीबुल मंतिक” की उर्दू शरह है।
अलवाफिया बिमकासिद अलकाफिया: नहव की किताब “अलकाफिया” आज भी मदारिस के पाठ्यक्रम में दाखिल है। किताब के मुश्किल होने के कारण तलबा को समझने में दुश्वारी आती है। मुफ्ती साहब ने अरबी भाषा ही में हवाशी और ता’लीकात तहरीर करके नहव (ग्रामर) की इस अहम किताब को समझने और समझाने में किसी हद तक आसानी पैदा कर दी है।
हादिया शरह काफिया: नहव (ग्रामर) की अहम किताब “अलकाफिया” की यह उर्दू शरह है। इस शरह के जरिए अब काफिया जैसी मुश्किल किताब का समझना काफी हद तक आसान हो गया है।
मबादी अलफलसफा: फलसफा की अरबी भाषा में लिखित किताबें तलबा को समझने में काफी दिक्कतें पेश आती हैं। दारुल उलूम देवबंद की मजलिसे शूरा की तलब पर मुफ्ती साहब ने यह किताब तरतीब दी है। इस किताब में फलसफा के तमाम इस्तिलाहात (शब्दकोश) को अरबी भाषा में संक्षिप्त और उम्दा तरीके से तहरीर किया है। यह किताब दारुल उलूम देवबंद और अन्य मदारिस में तलबा को पढ़ाई जाती है।
मुईनुल फलसफा: यह मबादी अलफलसफा की सर्वश्रेष्ठ उर्दू शरह है जिसमें हिकमत और फलसफा के पेचीदा मसायेल की उम्दा वजाहत की गई है।
मबादिउल उसूल: उसूले फिकह की किताबों को समझने में तलबा को दुश्वारियों का सामना करना पड़ता था। मुफ्ती साहब ने उसुले फिकह की बुनियादी इस्तिलाहात (शब्दकोश) पर मुशतमिल अरबी भाषा में यह किताब लिखी है ताकि इसको पढ़ने के बाद उसूले फिकह की मशहूर किताबों का समझना आसान हो जाये। यह किताब विभिन्न मदारिस के निसाब में दाखिल है।
मुईनुल उसूल: यह मबादिउल उसूल की आसान उर्दू शरह है जिसमें उसूले फिकह की इस्तिलाहात (शब्दकोश) को अच्छे तरीके से समझाया गया है। इस उर्दू शरह से असल किताब “मबादिउल उसूल” और उसूले फिकह की अन्य किताबों को समझने में मदद मिलती है।
आप फतवा कैसे दें?: अल्लामा शामी रह० की अरबी किताब “शरह उकूदे रसमिल मुफ्ती” का मुफ्ती साहब ने आसान उर्दू तर्जुमा करके “आप फतवा कैसे दें?” नाम से प्रकाशित किया।
आसान नहव (दो हिस्से) व आसान सर्फ (तीन हिस्से): ये किताबें कई मदारिस के पाठ्यक्रम में दाखिल हैं। इन किताबों को प्रारम्भिक तलबा के लिये मुफ्ती साहब ने आसान भाषा में इस प्रकार तरतीब दिया है कि इनके पढ़ने के बाद अरबी भाषा में इलमुल नहव (ग्रामर) और इलमुल सर्फ की किताबें आसानी के साथ समझ में आ सकती हैं।
आसान फारसी कवायद: प्रारम्भिक दर्जों में फारसी पढ़ाने के लिए दो हिस्सों में सम्मिलित यह अत्यंत लाभदायक और आसान किताब है। बहुत से मदारिस में यह किताब पाठ्यक्रम में शामिल है।
आसान मंतिक: यह किताब असल में “तैसीरुल मंतिक” की तरतीब और तसहील है जो मुफ्ती साहब ने की है। यह किताब दारुल उलूम देवबंद और बहुत से मदारिस के पाठ्यक्रम में दाखिल है।
तोहफतुर दुरर शरह नुखबतुल फिक्र: अल्लामा हजर असकलानी रह० की उसूले हदीस की मशहूर किताब “नुखबतुल फिक्र फी मुसतलह अहलिल असर” की यह उर्दू शरह है।
मिफ्ताहुल अवामिल शरह म‘ता आमिल: “शरह मि’ता आमिल” फन्ने नहव की महत्वपूर्ण किताब है। मौलाना फखरुद्दीन मुरादाबादी रह० ने इस किताब की शरह तहरीर फरमाई थी, मगर प्रकाशित नहीं हो सकी थी। मुफ्ती साहब ने काबिले कद्र खिदमात पेश फरमाकर इस किताब को प्रकाशित फरमाया।
गंजीनाए सर्फ: यह सर्फ की फारसी भाषा में मशहूर किताब
“पंज गंज” की उर्दू शरह है, जो मौलाना फखरुद्दीन मुरादाबादी रह० ने लिखी थी, परंतु प्रकाशित नहीं हो सकी थी। मुफ्ती साहब ने इसकी नजरे सानी की और इसको मुकम्मल करके प्रकाशित फरमाया।
इल्मी खुतबात: यह मुफ्ती साहब की उन तकारीर का मजमूआ है जो उन्होंने विदेशों में कीं। आपके साहबज़ादों ने उनको कलमबंद किया और मुफ्ती साहब ने लफ्ज़ बलफ्ज उनको पढ़ा। दो हिस्सों में ये तकरीरें प्रकाशित की गईं।
तजकिरा मशाहिर मोहद्दिसीन व फुकहाए केराम और तजकिरा
रावियाने कुतुब हदीस: इस किताब में खुलफाये राशिदीन, अशरा मुबश्शेरा, हुजूरे अकरम स० की बीवियों और बेटीयों, मदीना मनव्वरा के सात बड़े फुकहा, हदीस के रावीयों, कुतुबे हदीस की शरह लिखने वालों, मशहूर मुफस्सिरीन व मुहद्दिसीन व मुजतिहिदीन व फोकहा और मुतकल्लिमीन का संक्षिप्त जिक्र है।
दीन की बुनियादें और तकलीद की जरुरत: तकलीदे अइम्मा के विषय पर कुछ तकरीरों का मजमूआ है जो मुफ्ती साहब की नजरे सानी और “रहमतुल्लाहि अलवासिया” से दीन की बुनियादी बातों के इजाफे के साथ प्रकाशित हुई।
दाढ़ी और अमबिया की सुन्नतें: इस किताब में दाढ़ी पर आपत्ती के दलील के साथ जवाबों के अतिरिक्त अमबियाए कराम की अहम सुन्नतों के अहकाम बयान किये गए हैं।
इस्लाम तगय्युर तगैयुर दुनिया में: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिल्लिया इस्लामिया (नई दिल्ली) के सेमीनारों में पेश किए गए चार कीमती मकालों (इस्लाम तगय्युर पजीर दुनिया में, फिक्र इस्लामी की तशकीले जदीद का मसअला, फिकाए हनफी में फहमे मआनी के उसूल और नबुवत ने इंसानियत को क्या दिया?) का यह मजमूआ है।
हुरमते मुसाहरत: इस किताब में ससुराली और दामादी रिश्तों के अहकाम और मसाएल बयान किये गये हैं।
हयाते इमाम तहावी रह०: इस किताब में इमाम तहावी रह० के हालाते जिंदगी और उनकी किताबों के साथ उनकी किताब “शरह मआनीअल आसार” का परिचय और उसकी तमाम शरह पर विस्तार से प्रकाश डाली गई है।
हयाते इमाम अबू दाऊद: इस किताब में हदीस की मशहूर किताब “सुनने अबी दाऊद” के लेखक इमाम अबू दाऊद सजसतानी की जीवनी, सुनने अबी दाऊद का विस्तृत परिचय और उसकी तमाम शरह का विस्तृत जायजा उम्दा अंदाज में पेश किया गया है।
जलसाए ताअज़ियत का शरई हुक्म: इस किताब में ताज़ियती जलसों के सम्पन्न करने का शरई हुक्म बयान किया गया है।
तसहील अदिल्लाह कामला: शैखुल हिन्द मौलाना महमूद हसन देवबंदी रह० ने गैर मुक़ल्लिदीन के 10 प्रश्नों के तहकीकी उत्तर प्रस्तुत किये थे। मुफ्ती साहब ने इसकी तसहील फरमाई है जिसको शैखुल हिन्द एकेडेमी (दारुल उलूम देवबंद) ने प्रकाशित किया है।
तहकीक व तहशिया ईजाहुल अदिल्लाह: गैर मुक़ल्लिदीन के 10 प्रश्नों के तहकीकी जवाबात की शरह स्वयं शैखुल हिंद ने तहरीर फरमाई थी। मुफ्ती साहब ने उस पर हवाशी तहरीर किये हैं। इसके अतिरिक्त कुछ अनुसंगिक विषयों को बढ़ाया भी है। यह किताब भी शैखुल हिंद एकेडमी से प्रकाशित हुई है।
क्या मुकतदी पर फातिहा वाजिब है? :मौलाना मोहम्मद कासिम नानोतवी रह० की किताब “तौसीकुल कलाम वद-दलीलुल मुहकिम” की यह आसान शरह है।
इरशादुल फुहूम शरह सुल्लमुल उलूम: मुफ्ती साहब ने मंतिक की महत्वपूर्ण पुस्तक “सुल्लमुल उलूम” की ऐसी शरह तहरीर फरमाई है कि किताब के मुश्किल मकामात भी सेहल अंदाज में हल हो जाते हैं।
कामिल बुरहाने ईलाही: “हुज्जतुल्लाह अलबालिगा” की शरह “रहमतुल्लाहि अलवासिया” के प्रत्येक बाब के आरम्भ में उसके मशमूलात को समझाने के लिए मुफ्ती साहब ने कुछ मुफीद बातें तहरीर फरमाई हैं। इन मुफीद मजामीन को इस किताब में जिक्र करके प्रकाशित किया है ताकि जो लोग शाह वलीउल्लाह रह० की अरबी इबारत के बगैर उनकी मुराद को समझना चाहें तो वह इस किताब को पढ़ लें। यह पुस्तक 4 जिल्दों में है।
मलफूज़ात: यह तीन किताबचे हैं जिन में मुफ्ती साहब ने आयाते कुरआनिया व अहादीसे नबवीया उर्दू आसान तर्जुमा के साथ तहरीर फरमाई हैं ताकि छोटे बच्चे उन्हें समझ कर याद करलें। कुछ मदारिस व मकातिब में पाठ्यक्रम में दाखिल है।
मसअला खत्मे नबूवत और कादयानी वसवसे: दारुल उलूम देवबंद के “कुल हिंद तहफ्फुज खत्मे नबूवत” शोअबा से प्रकाशित इस किताब में रद्दे कादयानियत और मसअला खत्मे नबूवत पर बहस की गई है।
ताअदादे अजवाज रसूल-अल्लाह स० पर आपत्ति का इल्मी जायेजा: इस विषय पर सबक पढ़ाने के दौरान मुफ्ती साहब की यह तकरीर है जो मौलाना कमालुद्दीन शहाब कासमी ने संकलित कर प्रकाशित की है।
अंत में मुफ्ती साहब के बारे में चंद महत्वपूर्ण बातें लिखना आवश्यक समझता हूं ताकि हम भी उनके पदचिन्हों पर चलकर कामयाबी के मनाजिल तय करसकें। पहली बात हजरत के वालिद साहब ने कभी उन्हें हराम लुकमा नहीं खिलाया, दूसरी बात यह है कि आपने पूरी जिंदगी अर्थात् 57 वर्ष बगैर वेतन के पढ़ाने की सेवा की, यहां तक कि जो वेतन पहले प्राप्त कर चुके थे वह सब भी वापस किया। तीसरी बात यह है कि आप का दर्स बेहद मकबूल था, तलबा का इज़देहाम (बुहत बड़ी तादाद) आपके दर्स में रहता था। चौथी बात अर्ज है कि आपके द्वारा लिखित किताबों के पृष्ठों की संख्या करीब 35000 है जो मुफ्ती साहब की जिंदगी में बरकत और अल्लाह की तरफ से कबूलियत का स्पष्ट द्योतक है। अल्लाह तआला हजरत को जन्नतुल फिरदौस में आअला मुकाम नसीब फरमाये, आमीन!