अस्पृश्यता का शाब्दिक अर्थ है ना छूना इसे आम ज़बान में छुआछूत की बीमारी भी क्या सकते हैं। अस्पृश्यता का अर्थ है किसी व्यक्ति या समूह के लोगों के शरीर को सीधे छूने से बचना । रोकना प्राचीन समाज में ऐसा माना जाता था कि अस्पृश्य लोगों के छूने यहां तक कि उनकी परछाई भी पढ़ने से उच्च जाति के लोग नापाक हो जाते हैं (अशुद्ध) और अपनी शुद्धता को वापस लाने के लिए उन्हें गंगाजल से नहाना पड़ता है। जानकारों के अनुसार मनुस्मृति का यह कथन है की पवित्र श्लोक सुनने वाली निचली जाति के लोगों के कानों में शीशे पिघलाकर डालने चाहिएं। हिंदू समाज के सनातन धर्म द्वारा निचली जातियों के खिलाफ क्रूरता को परिभाषित करता है। महात्मा गांधी छुआछूत के खिलाफ थे वह चाहते थे ऐसा समाज बनें जिसमें सभी जाति के लोगों को बराबरी का दर्जा मिले और इसके लिए उन्होंने लंबे समय तक संघर्ष किया यहां तक की इस कुरीति को समाप्त करने के लिए उन्होंने अपना दांपत्य जीवन भी दांव पर लगा दिया था।लेकिन सच्चाई यह है कि आजादी के वक्त जो संघर्ष और आंदोलन हुए थे आज उसकी चमक फीकी पड़ती नजर आ रही है। और देश और प्रदेश में निचली जातियों के प्रति भेदभाव और अपराध के मामले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं।
30 अक्टूबर नवरात्रों के दौरान उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के एक दुर्गा पंड पंडाल के अंदर जगरूप नामी दलित व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर देने का आरोप है। मृतक के परिवार ने आरोप लगाया है कि जगरूप को सिर्फ इसलिेए पीट पीट कर मार डाला गया क्योंकि इसने माता जी की पैर छू लिए थे। हालांकि पुलिस ने जो एफ़ आई आर लिखी है इसमें हत्या का कारण बहन को छोड़ने के लिए बाइक ना देना बताया गया है। लेकिन जगरूप के परिवार का कहना है पुलिस के दबाव में उन्होंने एफ़ आई आर में बाइक वाली बात लिखवाई थी।
हक़ीक़त यह है कि जगरूप को माता रानी की मूर्ति छूने की वजह से पीटा गया।सीसीटीवी फुटेज भी सामने आ गया है। वीडियो में साफ देखा जा सकता है एक व्यक्ति को बुरी तरह पीटा जा रहा है यह दुर्गा पंडाल दलित बस्ती आड़या डेहा में लगाया गया था। जगरूप ने दलित होने के बावजूद माता जी के पैर छू छूने का अपराध कर लिया जिसकी सजा ऐसी मिली कि उसे जिंदगी से ही हाथ धोना पड़े। क्या जगरूप पर हमला करने वालों से माता रानी ने कहा था की इन्होंने मुझे अपवित्र कर दिया इस मनुष्य की जान ले लो? नहीं माता रानी सब पर एक सी कृपा करती है। सूरज की धूप और चांद की रोशनी सब पर एक सी बिखेरती है। बारिश, बादल, हवा, खुशबू सबके लिए एक से हैं। भगवान इंसानों में कभी फर्क़ नहीं करता , फिर क्यों इंसान इंसान में फ़र्क़ करता है।
प्राचीन समय से ही हिंदू धर्म अपने मानने वालों के एक बहुत बड़े समुदाय को उनकी नीच जाति होने की वजह से अपने से दूर धकेलने की हर मुमकिन कोशिश करता है । उन्हें अपने मंदिरों में प्रवेश करने की इजाजत नहीं देता है ना पूजा करने की बल्कि उनकी परछाई से भी दूर रहने की कोशिश करता है और इसी क्रम में उन्हें बुनियादी मानवीय अधिकारों से पूर्णता वंचित करके जानवरों जैसी जिंदगी जीने पर मजबूर किया जाता है। यह सब जाति के नाम पर होता है। भारतीयों की निचली जाति ने बड़ी संख्या में ईसाई और इस्लाम धर्म कुबूल किया था। इसका मुख्य कारण हिंदू होने के बावजूद हिंदू समाज में ही उनकी दुर्दशा थी। वह हिंदू थे लेकिन उन्हें मंदिर में प्रवेश इजाजत नहीं थी, वह हिंदू थे लेकिन भगवान की मूर्ति को छूने की इजाज़त नहीं थी, वह हिंदू थे लेकिन कुऐं से पानी भरने की इजाजत नहीं थी, वह हिंदू थे लेकिन स्वर्ण जाति के साथ बैठकर शिक्षा ग्रहण करने की इजाज़त नहीं थी। उनकी दुर्दशा जानवरों जैसी थी। यही कारण है निचली जातियों ने तेज़ी से धर्मांतरण किया क्योंकि इनकी सामाजिक स्थितियां बद से बदतर और उनका सामाजिक रहन-सहन बहुत कमज़ोर था। इनका सामाजिक शोषण और मानव अधिकारों का हनन इनके धर्म परिवर्तन का एक बड़ा कारण था।
हालांकि देश में अस्पृश्यता को काफ़ी पहले समाप्त करने का दावा किया गया है। अनुसूचित जाति और जनजाति के हित संरक्षण के लिए 1989 में “अनुसूचित जाति और जनजाति अधिनियम बनाया गया ” ये अनुसूचित जातियों और जनजातियों में शामिल व्यक्तियों के ख़िलाफ़ अपराधों को दंडित करता है यह पीड़ितों को विशेष सुरक्षा और अधिकार देता है लेकिन कानून बनाने से हजारों साल से चली आ रही मानसिकता नहीं बदली। दलितों पर अत्याचार के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार 2018- 2020 के बीच दलितों के ख़िलाफ़ अपराधों के 1,39045 मामले सामने आए इनमें 50,000 से ज्यादा उत्तर प्रदेश के हैं ।हमारा माननीय मुख्यमंत्री आदित्य कुमार योगी जी से अनुरोध है कि यदि वास्तव में इस समस्या को गहराई से महसूस करते हैं तो वह जाति के ख़िलाफ़ हुए इस उत्पीड़न की गहराई से जांच कराएं और दोषियों के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाएं।