जिस वक्त मेरी समझदारी की किरणें फुट रही थी उस वक़्त ये नाम बड़े जोर व शोर से सुनता था। वर्ष 2000 की बात है शायद, अच्छे से याद नही, मगर उस दिन की खास बात याद है। दरभंगा में बड़ी रेलवे लाइन का उदघाटन होना था और उसी दिन दरभंगा से पटना इंटरसिटी एक्सप्रेस का शुभारंभ होना था। हमारे घर से दरभंगा रेलवे जंक्शन की दूरी बमुश्किल पाओं पैदल 5 से 6 मिनट है। जंक्शन क़रीब होने से वहाँ होने वाले बड़ी छोटी गतिविधियों से हम लोग वाकिफ़ हुआ करते थे। मोहल्ले में बहुत शोर था रेल मंत्री राम विलास पासवान ट्रैन को हरी झंडी दिखाने स्टेशन आ रहे हैं। अब छोटी लाइन की जगह यहाँ बड़ी लाइन पर ट्रेन दौड़ेगी। हम भी दोस्तो की टोली के संग जंक्शन के करीब पहुंचे मगर हाई लेवल की सेक्युरिटी और जगह जगह फोर्स तैनात होने से जंक्शन तक नही पहुंच सके। बहुत उछल किया कि किसी तरह राम विलास पासवान की एक झलक दिख जाए मगर हाथ मलते रह गया। फिर राम विलास जी का भाषण दूर से खड़े खड़े माइक पर सुनने लगा। पासवान जी के भाषण से सभा मे बजने वाली तालियां और ज़िंदाबाद के नारे हम लोगो को बहुत रोमांचित कर देता था। ठेठ भाषा मे दिए जा रहे उनके भाषण में “जै है सी की, कथी” शब्द बार बार रिपीट होने से सुनने में मज़ाह पैदा कर रहा था।
राम विलास जी को इतिहास पर अच्छी पकड़ थी, एक सांस में भारत पर मुगलों का राज और उसके वंशजों के बताने का अंदाज़ बड़ा दिलचस्प था। लोग तालियां बजाने लगते थे। उस सभा से लौटने के बाद हम लोगो की ज़ुबान पर बस एक ही रट होता। “आन बान शान, जिसका नाम है राम विलास पासवान।” राम विलास जी से मेरी कई मुलाक़ात दिल्ली उनके आवास पर रही, जामिया के छात्र जीवन जब भी कोई मौका मिलता बिहारी होने के नाते उनके आवास चला जाता, वो अगर होते तो देर तक विभिन्न मुद्दों और राजनीत पर देर तक बातें होती। मेरी पहली किताब पर उन्होंने बड़ी मोहब्बत से शुभकामना संदेश लिख कर भी दिया। राम विलास जी पुराने और बिल्कुल सादा नेता थे, पुरानी तहज़ीब और आपसी भाईचारे को उन्होंने अपनी आंखों से देखा और जिया था। इस लिए आज के नेताओं की तरह उनमें कट्टरता नही था। याद कीजिये 2005 का चुनाव जिसमे बिहार की सत्ता बेगैर उनके चाभी से नही खुल रही थी और उन्होंने ये शर्त लगा दिया था जो पार्टी मुस्लिम मुख्यमंत्री चेहरा देगा उसे वो समर्थन कर देंगे। राम विलास पासवान सभी समुदाय और बिरादरी में मशहूर व मक़बूल थे, उनका आदर हर वर्ग और धर्म के लोग करते, राजनीत में रहते उनपर किसी तरह का कोई गम्भीर आरोप नही लगा ये उनकी बड़ी उपलब्धि रही। वक़्त और परिस्थिति में वो जिस पार्टी से भी जुड़े वो उनकी मजबूरी हो सकती है मगर इसमे कोई शक नही की वो ज़मीन से जुड़े ऐसे जननेता थे जिसकी परछाई आज के राजनीत में नही पड़ सकती। इनके निधन से बिहार की राजनीत में बड़ा क्षति हुआ है। ईश्वर राम विलास पासवान जी के आत्मा को शांति दे।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)