मुहम्मद ज़ाहिद
कल से जज़्बाती कौम “वली रहमानी” को माँ बहन की गालियों से तौल रही है। 100% मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों से ₹100 से पूरे महीने का डाटा पाकर सलाउद्दीन अयूबी और इर्तगुल गाजी बने लोग , चाय की दुकान पर बैठ कर माँ बहन की गालियों के साथ इस्लाम का परचम लहराने में लगे हुए हैं।
“वली रहमानी” कौन ?
एक बच्चा , जिसने पिछले कई सालों से रात दिन मेहनत करके तथ्य और तर्क देकर अपने कौम की आवाज़ बन कर सोशलमीडिया में अपनी एक पहचान बनाई है , जिसके फेसबुक पर 4 लाख से अधिक फालोवर्स हैं। तो यूटयूब पर भी करीब 4•5 लाख सब्सक्राईबर हैं।
वली रहमानी ने यूट्यूब के जरिए अपनी कौम की आवाज़ एक बेहद सधे तर्क और तथ्यों के साथ विभिन्न मंचों पर उठाई है और मात्र 20 साल की उम्र में वह डिजिटल प्लेटफार्म और इलेक्ट्रानिक प्लेटफार्म पर एक “यूथ आईकान” बन चुका है वह कल से अपनी उसी कौम के वर्तमान उर्तगुलों से माँ बहन की गालियों से नवाज़ा जा रहा है।
जज़्बाती कौम कुछ इग्नोर नहीं कर सकती।
वली रहमानी पर आरोप है कि बंगलुरू दंगों के विरोध में उन्होंने कोई हदीस कोट की जो गलत थी। बस क्या ? भाई लोग शुरू हो गये , बिना यह सोचे कि चलो किसी ने गलती कर भी दी तो इग्नोर करो। पर ज़ेर ज़बर की गलती इग्नोर ना करने वाली कौम हदीस की गलती कैसे इग्नोर करेगी ?
इसीलिए 72 फिरके होने वाले हैं।
मुस्लिम मुहल्लों की चाय की दुकान पर फजर से तहज्जुद तक बैठे यह तथाकथित इर्तगुलों की आखें अभी तक नहीं खुलीं कि आज के दौर में कौम की आवाज़ कितने खतरों के बाद उठाई जाती है। तब जबकि डाक्टर कफील और शरजिल इमामों का हश्र सबके सामने है।
यह जज़्बाती कौम कुछ भी इग्नोर नहीं कर सकती। यहाँ हर की ज़बान पर अपनी अपनी हदीसें रहती हैं। एक ने कुछ हदीस कोट की तो दूसरा दूसरी हदीस से उसे गलत सिद्ध करने के लिए सलाउद्दीन अयुबी बन जाएगा।
अरे अंधों , कुछ बर्दाश्त करो , यही कर कर के 72 फिरके होने वाले हो , अपनी कुरान और अपने नबी से बर्दाश्त करना नहीं सीख सकते तो कम से कम देश के हिन्दू भाईयों से ही कुछ सीख लो।
राम और रामायण को लेकर इसी देश में तमाम मत हैं , वाल्मिकी रामायण और गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस में तमाम अंतर है तो दक्षिण में पेरियार रामायण तो इन दोनों रामायणों से बिल्कुल ही विपरीत है , इस रामायण का नायक वहाँ की रामायण का खलनायक है। दक्षिण भारत में दशहरा के दिन रावण की पूजा होती है।
यही नहीं एक और रामायण लिखी गयी “ललई सिंह यादव” के द्वारा “सच्ची रामायण” वह और विचित्र है। सीता को राम की बेटी ही बता दिया गया है।
पर हिन्दू सब इग्नोर करता है , मानता वह अपने मत को ही है , पर तुम इग्नोर करना नहीं सीखोगे , ₹5000 का मोबाईल निकालकर किसी की मामुली गलती पर उसी की माँ बहन कर दोगे जो तुम्हारे लिए ही तमाम खतरे उठाकर दुनिया के सामने आवाज उठाता है।
हो सकता है कि “वली रहमानी” ने कोई गलती कर दी हो पर तुम जो कर रहे हो वह ज्यादा खतरनाक है। ऐसे हर एक आवाज़ें खीज कर चुप हो जाएँगी क्युँकि अपने धर्म और अपने समाज की गालियाँ और आरोप अधिक तकलीफदेह होती हैं।
यही तकलीफ राजीव त्यागी को भी हुई , उनके टीका और उनके हिन्दू होने पर एक हिन्दू पंडित का सवाल उठाने मात्र से ही वह कोलैप्स हो गये।
कब अक्ल आएगी ? कब अपनी आवाज़ों को सहेजना सीखोगे ? कब अपनी सोच को बड़ा करके गलतियों को इग्नोर करना सीखोगे।
लानत है , इब्लीस को भी खुद के विद्वान होने का घमंड था , रावण को भी यही घमंड था। इतना घमंड ठीक नहीं , कोई यदि कहीं गलत है तो नबी ने उसको समझाने और सही करने के तरीके बताए हैं।
गालियाँ देकर हदीस को सही कराने वालों , इस्लाम के असली अपराधी तुम हो। फिर से लानत है।