फ़रीदा अंजुम
इक चमकता हुआ सितारा है।
हर तरफ़ नाम जो हमारा है।।
क़ैद रखने की जब दी है सज़ा।
फिर रिहाई नहीं ग्वारा है।।
मिलने की जब नहीं हुई तौफीक़।
अक्स काग़ज़ पे क्यूं उतारा है।।
दौर- हाज़िर में हर कोई, समझो।
क्यूं मुसिबत का आज मारा है।।
रात अपनी कठिन हुई कितनी।
कितनी मुश्किल में दिन गुज़ारा है।।
मिल ही जाता मुक़ाम उल्फ़त का।
अज्म मुहकम नहीं तुम्हारा है।।
ख़ूबियां उसकी गिन नहीं सकती।
वह जो अंजुम के दिल को प्यारा है।।
पटना सिटी-८