शौकत महमूद शौकत
इक शख्स दर्द -ए- दिल की दवा मांगता रहा।
इस शहृ-ए- बे वफ़ा, से वफ़ा मांगता रहा।।
यह क़ल्ब-ए- सादा लौहे भी, क्या मांगता रहा।
सूरज की रोशनी में, दीया मांगता रहा।।
मक़्सद मिरा जहां में, तुम्हारा हुसूल था।
इस वास्ते मैं अपना पता मांगता रहा।।
जुर्म-ए-वफ़ा का भूल के, जो मुरतिक्ब हुआ।
अपने लिए वह ख़ुद ही सज़ा मांगता रहा।।
अपने लिए तो काफ़ी है, “शौकत”ये आब-ए-रज़।
नादां है वह, जो आप बक़ा मांगता रहा।।