(ईटीवी भारत, अररिया)
सोशल मीडिया छोड़ने का फैसला मेरा निज़ी था, कुछ मज़बूरी थी, कुछ दबाव था। इस फैसले पर हमारे कई मुख्लिस, मुरब्बि, दोस्त व अहबाब ने नाराज़गी का इज़हार किया, वजह जानने की कोशिश की, कुछ बेतकल्लुफ दोस्त न सिर्फ गुस्सा हुए बल्कि रिश्ता खत्म कर लेने की धमकी दी, ये इनकी मोहब्बत थी, मगर मैं ख़ामोश रहा।
मगर पिछले दिनों 20 मार्च 2021 को हमारे करम फरमा, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी , जामे रहमानी ख़ानक़ाह मुंगेर के सज्जादा नशीं और इमारते शरिया बिहार उड़ीसा झारखंड के अमीरे शरीयत हज़रत मौलाना सय्यद मो #वली_रहमानी साहब (जिन्हें अब मरहूम कहते हुए आंखे नम हो रही है) का फोन आया, अज़ीज़म मुझे खबर हुई सोशल मीडिया आपने छोड़ दिया, क्या बात हो गई, क्यों नाराज़ हो गए सोशल मीडिया से बताएं? हज़रत से गाहे गाहे बात हो जाया करती थी, हज़रत को ज्यादातर फोन मैं करता उनकी तरफ से कम आता था, मगर उस दिन हज़रत के फ़ोन ने मेरी आँखों मे चमक पैदा कर दी थी, खुद को खुशकिस्मत समझता हूं हज़रत की मोहब्बत व शफ़क़त आपकी ज़िंदगी के आख़री दिनों तक कायम रहा। वरना इस दौर में कौन किस की ख़बरगिरी करता है। ये बड़े दिल वाले और दूसरों की कद्र करने वाले ही करते हैं।
सोशल मीडिया छोड़ने के फैसले और अपनी परेशानी से हज़रत को अगाह किया, हज़रत तमाम बातें गौर से और खामोशी से सुनी, फिर हज़रत ने कहा आप मुतहर्रिक संजीदा नौजवान हैं, सोशल मीडिया को अच्छे कामों के लिए इस्तेमाल करते हैं, आपकी उज़र सही है मगर आप मुसबत कामों के लिए बेगैर किसी दबाव के इसपर रहें, बुजर्गो के पैग़ाम को फैलाते रहें, इमारते शरिया की तहरीक आगे बढ़ाते रहे। हज़रत से तक़रीबन 20 मिनट बात हुई, आम तौर से फोन पर इतनी लंबी बात करने के हज़रत क़ायल नही थे, मुझ से भी फोन पर इतनी लंबी बात नही हुई, मगर उस दिन हज़रत की तबियत और गुफ्तगू में एक अलग रंग था, मैं ने कम बोला, हज़रत की बातों को ज्यादा तवज्जोह से सुना। मुझ से मुताल्लिक़ बात खत्म होने के बाद हज़रत ने इमारते शरिया की जानिब से चलाए जा रहे उर्दू की तहरीक, 30 रहमानी की कारकर्दगी और मुस्तक़बिल में काम करने की चीज़ो पर तफ्सील से बात हुई। खूब सारी दुआएँ दी और कहा हमारे लिए भी अच्छी सेहत की दुआ करे।
हज़रत से वादा किया था इंशाल्लाह जल्द ही सोशल मीडिया पर लौट जाऊंगा मगर इतनी जल्दी लौटने की मुझे खुद उम्मीद नही थी, हज़रत से हुई आख़री बातें शायद हमारे लिए एक हुक्म था जिस पर आज से अमल करते हुए खुद को वापस कर रहा हूँ और अल्लाह से दुआ है कि हज़रत की बाल बाल मग़फ़िरत करे, जन्नतुल फिरदौस में आला मक़ाम अता करे।
तअल्लुक़ के 10 साल की यादें, बातें चंद लाइनों में समेटना मुश्किल है, एक वक्त दरकार है। हज़रत के रुख्सत होने का अब भी यक़ीन नही होता, काश ये बातें वहम में लिख रहा होता और कोई झटका देकर बेदार कर देता।