अनुवाद: शहला प्रवीण, दिल्ली विश्वविद्यालय
जिंदगी एक जैसी नहीं रहती।उतार-चढ़ाव जारी रहते हैं। स्थितियां भी बढ़ती और घटती रहती हैं। व्यक्ति के जीवन में भी ऐसा होता है, और यह परिवर्तन समाज में भी होता है। तो कमियों को दूर करना चाहिए, और अच्छाई को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। ईद-उल-फितर के बाद, ईद-उल-अजहा में बेहतर बदलाव आया है। मोमिनों के दिल खुश हूए है। शुक्र रब के नग़मे गाएं हैं। और यह बेहतरी आगे बढ़ती रहेगी।
लेकिन कैद की इस अवधि में कई उतार-चढ़ाव आए हैं, और कई कमियां प्रवेश कर गई है। प्रियजनों से मिलना और सामाजिक मेलजोल ठंडा पर गया है। और इसके नुकसान जन्म ले रहे हैं।
यह कमी परिस्थितियों का परिणाम थी।और अब यह धीरे-धीरे दूर हो रहा है।
इस्लाम के अद्भुत उपदेश जीवन के इस पहलू से संबंधित हैं, और इस्लाम का पुण्य फलता और फूलता है।यह एक मजबूत परिवार का निर्माण करता है, और एक अच्छे समाज का निर्माण करता है। जी हां,, यही वह चीज है जो व्यक्ति के जीवन को सुखी और समृद्ध बनाती है।और इससे समाज को आपसी एकता और परस्पर सहयोग मिलता है।और अभी इसकी सख्त जरूरत है।
इसलिए यहां आने वाली कमियों को हर रास्ते और हर इच्छा से दूर करना होगा।और इसे इस्लामी शिक्षाओं के मोती से सजाया जाना है।याद रखें कि अच्छे और बुरे की मान्यता समाज की परंपरा नहीं है, मनुष्य का मार्गदर्शन नहीं, बल्कि संसार के रब के वचन से बात होगी। वही जो कुरान और सीरत में है।
ईद-उल-अजहा प्रियजनों के साथ जुड़ने और सामूहीकरण करने का एक अच्छा अवसर है। और यही तो ईद है, इसी लिए तो खाने खिलाने का आज्ञा है, और इसी के लिए तो तीन दिनों के लिए ईद है। तो आइए! अपनी स्थिति पर एक नज़र डालें, और अपनी स्थिति देख लें,अपने रिश्तों को पूछ लें, और अपने परिवेश पर नज़र रखें। जब हमारी ईद की खुशी और बढ़ेगी, जब हम बदलेंगे और बेहतर होंगे। वक्त है क़दम उठा लिजिए, वक्त बीत जाने पर पछतावा ही रहता है। अल्लाह हमें सफलता दे।
(लेख में व्यक्त राय लेखक के निजी विचारों पर आधारित हैं, किंदील का उन से सहमत होना आवश्यक नहीं है)