अतिथि देवो भव: संस्कृत की प्रख्यात कहावत है जिसका अभिप्राय होता है, की मेहमान भगवान का रूप है। यह कहावत सदियों से भारतीय समाज का एक हिस्सा है, इसमें यह कहीं भी नहीं कहा गया है कि किसी जाति या धर्म विशेष का मेहमान ही हमारा भगवान है बल्कि यहां केवल यह कहा गया है कि” अतिथि देवो भव:” यानी मेहमान भगवान का रूप है ,अर्थात मेहमान किसी भी जाति का हो, किसी भी धर्म का हो, किसी भी रंग का हो वह भगवान का ही रूप है। बचपन से ही हमें मेहमानों का आदर सत्कार उनकी इज़्ज़त करना और मोहब्बत से उनकी देखभाल करना सिखाया जाता है। जब भी कोई अतिथि हमारे घर आता है तो हमारी दिल के अंदर एक खुशी की लहर दौड़ जाती है और हम उसकी सेवा सत्कार में कोई कमी न रह जाए इसका खूब ख्याल रखते हैं। जिस तरह हम ईश्वर की आराधना करते हैं उसी तरह से हम मेहमानों को ईश्वर का रूप समझकर उसकी आराधना करते हैं। सदियों से भारत में चली आ रही इस परंपरा को शर्मसार कर देने वाली एक घटना उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की है जहां इस वक्त एक बड़ा हंगामा खड़ा हो गया जब कोलकाता से अजमेर के लिए निकले तीर्थयात्रियों को नेशनल हाईवे पर सड़क के किनारे नमाज पढ़ते हुए कुछ कट्टरपंथियों ने देख लिया और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं को बुलवा लिया٫ इन कार्यकर्ताओं ने जमकर हंगामा किया और कट्टरपंथीता की हद यह हो गई इन कट्टरपंथियों ने नमाज़ पढ़ने वाले नमाजि़यों से कान पकड़कर उठक बैठक लगवाई ,जिसमें कई बुज़ुर्ग भी शामिल थे और उन्हें धमकी दी गई की उत्तर प्रदेश की सर ज़मीन पर कहीं नमाज मत पढ़ लेना। हद तब हो गई जब पुलिस मौके पर पहुंची तो उसने इन बेचारे सीधे-साधे तीर्थ यात्रियों की मदद के बजाय सड़क पर बस खड़ी करने के जुर्म में चालान काट दिया बेचारे कहते रहे कि हमें उत्तर प्रदेश के कानून का नहीं मालूम था इसलिए हमने नमाज पढ़ ली। यह पूरा मामला तिलहर थाने के नेशनल हाईवे के कछियाना खेड़ा के करीब का है जहां यात्रियों के साथ कोलकाता से अजमेर जा रही बस मंगल की देर शाम ढाबे पर रुकी थी। इन तीर्थयात्रियों को दूर तक कोई मस्जिद नज़र नहीं आई और इन्होंने सड़क पर कपड़ा बिछाकर नमाज़ पढ़नी शुरू कर दी। सवाल यह पैदा होता है क्या आज भारत में “अतिथि देवो भव:” का अर्थ बदल गया है? कोलकाता से अजमेर जा रहे यह तीर्थयात्री क्या हमारे अतिथि नहीं थे? भारत सदा गंगा जमुनी तहजीब का गहवारा रहा है। यह वही भारतवर्ष है जिसकी मिट्टी में हर धर्म हर मज़हब के लोगों का ख़ून शामिल है। यह वही भारतवर्ष है जिसकी जिसकी आज़ादी के लिए हर धर्म हर मज़हब के लोगों ने लड़ते लड़ते अपनी जान दे दी, और इस धरती के सीने में समा गए। लेकिन अंग्रेजों की गुलामी क़ुबूल नहीं की। जिस धरती की मांग हर धर्म के शहीदों के खून से भरी गई हो फिर किसी धर्म विशेष के लोगों का ईश्वर की आराधना करना इतना बड़ा गुनाह कैसे हो सकता है जिसकी सज़ा में उन्हें कान पकड़ कर उठा बैठी लगाई जाए?
वर्तमान समय में भारत सरकार “अतिथि देवो भव:” का उपयोग भारतीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए कर रही है। वह 2003 में “अतिथि देवो भाव:” को अतुल्य भारत के अंतर्गत इस्तेमाल करना प्रारंभ किया गया ताकि विभिन्न देशों के लोग भारत में पर्यटन करने आएं, इसकी ट्रेडमार्क राजदूत के रूप में मशहूर अदाकार आमिर खान को नियुक्त किया गया इस अभियान की वजह से वर्ष दर वर्ष भारतीय पर्यटन में 40% बढ़ोतरी होती रही है। “अतिथि देवो भव:” के इस अभियान के द्वारा आज हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को अतिथियों के प्रति उदारता के भाव को रखने का पाठ सिखला ला रहे हैं, इस अभियान से हम भारतीयों को मेहमानों के प्रति अच्छा व्यवहार रखने और उन्हे सहायता देने के लिए प्रेरित करते हैं। लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि भारत सरकार “अतिथि देवो भव:” के जिस भाव को भारतीयों में पैदा करने की कोशिश कर रही है ,क्या यह भाव उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए नहीं है? क्या उत्तर प्रदेश भारत का अभिन्न अंग नहीं है? और यदि है तो क्या केवल किसी धर्म विशेष के अतिथि ही हमारे अतिथि हैं ? यह तीर्थ यात्री कोलकाता से अजमेर के लिए तीर्थ यात्रा पर निकले थे , तो क्या यह उत्तर प्रदेश में हमारे अतिथि नहीं थे? जिनके साथ इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना घटी। अपने इस लेख के माध्यम से हम भारत सरकार का ध्यान इस और आकर्षित करना चाहते हैं कि अतिथियों के साथ हुए इस दुर्व्यवहार के ख़िलाफ़ सख़्त क़दम उठाया जाय।