गर्मियों की शाम हल्की-हल्की बारिश बहुत ही सुहानी लग रही थी, तपी हुई ज़मीन पर पड़ती बारिश की बूदों से उड़ती ख़ुशबू भली लग रही थी।
मैं सुहानी शाम के बाद का वक़्त याद करके सहम सी गयी। ये सुहानी शाम और मुस्कुराती बारिश मेरे लिए नहीं , मेरे लिए तो वही चीखती रात और दर्द ही था जो मेरे जिस्म पर पड़े छालों को रोज़ ताज़ा करता था।
गंगा में डूबते सूरज की लाली और इठलाती हवा जो कही दूर स्वर्ग से आकर मेरे दुपट्टे को उड़ाती थी न जाने कहां खो गयी थी।
मेरी दुनिया तो इन चार दीवारी की घुटन और इसके बाद न जाने कितीनी दीवारें थी जो मुझे ज़िन्दा रखने के लिए काफ़ी थी।
सुखन जा अम्मा से कह दे तेरा सर पोछ दे नहीं तो तू बीमार पड़ जाएगा नहीं दीदी में अभी और नहाउंगा। मुझे मज़ा आ रहा है, देखो न दीदी मेरी नाव सबसे आगे है। नन्की से भी आगे अरे अरे गिर न जाना आओ न दीदी तुम भी हमारे साथ इस बारिश में भीगकर देखो तुम तो सारे दिन खिड़की पर बैठी रहती हो और हमें नसीहतें करती रहती हो। अम्मा कह रही थी तुम्हारे मियां हिटलर हैं, हिटलर से भी कड़क हैं अरे-अरे मेरी नाव डूबी सुख्खन ने झट से पानी में छलागं लगा दी बौछार ने बारिश का रुप ले लिया था, बिजली का चमकना और बादल का गरजना जारी था, दरवाज़े पर खटखट हुई क्या बात है इतना अंधेरा क्यांे है, अभी-अभी बिजली गयी है मैं लालटेन जला देती हूँ ये छतरी अन्दर रख दो जी।
ये खिडकियां क्यों खुली छोड़ी है कितनी तेज़ हवा है तुमसे कितनी बार कहा है खिड़कियां बन्द रखा करो, किसको देखा करती हो कोई यार दोस्त तो नहीं बना रखा है नहीं-नहीं भगवान कसम। मैंने कब कहा कसमें खाओ वैसे झूठे लोग ज़्यादा क़समें खाते हैं। मैं तो सोचता हूं खिड़कियां तुड़वाकर दीवारें ही बनवा दूं क्यों कैसा रहेगा। जी जैसा आप चाहें।
काश की मैं गुनाहगार होती और किसी जेल में बन्द होती हज़ारों धारायें मुझ पर लगी होती कैदी नम्बर से मेरी पहचान होती काश की मेरी पहचान तो होती बिस्तर पर लेेटे सांप बिच्छू काटने और डसने को तैयार थे कहां जाएगी सुमन यही तरेी ज़िन्दगी है। जी चाहता था अपने नाख़ूनों से चेहरे को नोच डालूं काश कि तू बदसूरत होती काली होती तुझसे लोग नफ़रत करते तू बदचलन होती, नहीं नहीं मैं तो एक ठाकुर की बेटी हूँ जिसकी लोग इज़्ज़त करते हैं सारे गांव में जिसकी जय जयकार हैं, गांव के पवित्र आत्माओं में जिनकी गिनती है। हाय रे मैं उस पवित्र आत्मा की बेटी हूँ? सुमन मेरी मदिरा मुझे दे दो जी कहाँ गुम हो? मेरे पास आओ क्या आपने मंच्छी खाया है हाय राम कुछ भगवान से डरो मेरे बालों को छोड़ो मुझे दर्द होता है ये लो तुम्हारी मदिरा क्या ये मदिरा मेरे दर्द को दूर कर सकती थी, मुझे पवित्र आत्मा की बेटी बना सकती थी, वही सुमन जो पेड़ों पर पड़े झूलों पर झूलती थी अपनी सखियों संग खेलती था अम्मा के आंचल तले सोती थी, बापू की पगड़ी सही करती थी पूजा की थाली से पूरा घर पवित्र करती थी , सुमन की पवित्रता के चर्चे पूरे गांव में होते थे क्या सच में मैं वही सुमन हूँ, घृणा आती है मुझे अपने आपसे।
सुमन ठाकुर भीम प्रताप सिंह की इकलौती बेटी थी जो बेहद ख़ूबसूरत और रहम दिल थी। सुमन की शादी पास के शहर में हुई थी। रघुवर प्रताप सिंह उनके पति थे जो किसी कम्पनी में बाबू हैं और बेहद शक्की मिजाज, कहने को तो उनमें कोई बुराई नहीं थी, लड़कियों से वह सौ क़दम दूर रहते, दोस्तों के साथ उठना बैठना था नहीं, आस पड़ोसियों से उनका कोई नाता रिश्ता नहीं। पिता जी बचपन में ही चल बसे थे, माता जी को छः साल गुज़रे हुआ । एक बहन थी जो बड़ी कम उम्र में ब्याह दी गयी, मुश्किल से 18 वर्ष की हुई होगी, रघु अपनी ज़िन्दगी में इतना व्यस्त था कि उसे छोटी बहन की कभी याद न आती और न ही वह कभी उसके सुसराल जाता है उसके ब्याह को पांच साल होने को है, रघु एक बार भी उसके सुसराल नहीं गया।
कुछ दिनों पहले की ख़बर आयी थी कि लाली को बेटी हुई है, रघु मामा बन गए हैं फिर भी रघु उससे मिलना नहीं चाहा हालांकि सुमन ने कई बार कहा लाली को ले आओ पग फेर जाए। सुना था लाली पड़ोस के मोहन को पसन्द करती थी एक बार उसके पत्र जो कि मोहन को लिखे गए थे रघु को मिल गए थे तो रघु उसका बाहर जाना एकदम बन्द करा दिया था और झटपट रिश्ता देखकर उसका ब्याह कर दिया। अब मोहन के भी दो बच्चे थे, रघु मोहन से बहुत नफ़रत करता उसको देखना भी पसंद न करता।
दिन महीने साल गुज़रते गये सुख्खन जो 8 साल का बच्चा था अब वो 16 साल का हो गया था।
सुख्खन बेहद दुबला पतला था इसीलिए बस्ती के लोग उसे सुख्खन बुलाते थे हालाकि सुख्खन का अस्ल नाम चन्द्रशेखर था जिनके पिता रामचन्द्र थे जिनको ग़ुज़रे तीन साल हो गये थे जिनकी पत्नी गिरिजा थी गिरिजा के दो पुत्र एक पुत्री थी सबसे छोटे चन्द्रशेखर थे। गिरिजा कभी, कभार सुमन से मिलने आती सुमन की शादी को 16 बीत गये उसकी गोद नहीं भरी, एक दिन गिरिजा ने सुमन से कहा सुमन तुम क्यो नहीं नामी बाबा के पास जाती हो उनसे मिलने अपनी मुरादे मांगने दूर-दूर से लोग आते है रधु से कहो नामी बाबा से मिल आये। मुझे विश्वास है तुम्हारी मुराद ज़रूर पूरी होगी उनके पास से कोई खाली हाथ नही आया है अगर रधु न माने तो बताना हम। दिखा आयेंगे, हाँ गिरिजा तुम्ही दिखा दो हमे चलके नामी बाबा से मिलवा दो शायद उनकी ही ज़डी, बूटी काम कर जाये।
एक दिन भोर में गिरिजा और सुमन नामी बाबा के दरबार में पहुँच गयी जहाँ पहले से ही लाइन लगी थी सारी रात के जगे लोग मौजूद थे अपनी, अपनी समस्यायें लेकर लोगों को बाबा से मिलने का इन्तेज़ार इस क़दर था जैसे छूटती ट्रेन को पकड़ने वाले यात्रियों की भीड़ हो।
पता नहीं नामी बाबा से अपनी समस्या कैसे कहूँगी गिरिजा तुम्ही बता देना और तुम समझ लेना ठीक गिरिजा। सुमन की बारी क़रीब आ रही थी सुमन हल्की, हल्की ठंड में भी पसीने से तर थी अपने आँचल से माथे का पसीना बार-बार पोछ रही थी। बाबा मेरी चौथी बेटी हुई है। मुझे ससुराल वाले अभागन कहते है कहते है मेरे पति का दूसरा व्याह करा देंगे इसकी बेटियों को अनाथ आश्रम छोड़ दो।
बाबा मुझे ऐसा वरदान दो जिससे उस घर का वारिस पैदा नही हुआ तो मैं कहीं की नहीं रहूँगी बाबा ये सब मैं और नहीं सह सकती, बाबा या मुझे कुछ ऐसा दे दो जिसे खाकर मै इस दुख भरे संसार को हमेशा, हमेशा के लिए छोड़ दूँ घूँघट में बाबा के चरणों में गिरी औरत सर पटख, पटख कर रो रही थी जिसकी आवाज़ सुनकर सुमन और गिरिजा भी रोने लगी थी। कहो बेटी तुम्हारी क्या समस्या है बाबा मैं, मैं, तो सुमन ने हिच किचाकर कहा गिरिजा जल्दी से बोल पड़ी बाबा ये मेरी सहेली है इसकी शादी को 16 साल होने को है इसकी गोद अभी भी सूनी है ऐसा कुछ करो बाबा इस बेचारी की गोद भर जाये चाहे बिटिया ही क्यों न हो जाये बस गोद भर जायें क्यों सुमन हाँ, हाँ बेटियाँ तो लक्ष्मी होती है, वाह रे ऊपर वाले तेरी महिमा अजब है वह बेचारी सूरतगढ़ की चौधरी की बहु है जिसकी सास नन्दे आस, पड़ोस ये कहकर उसका जीना कठिन किये है कि वह बेटी की माँ है और एक तुम, भगवान सब ठीक करेगा मैं तो उसका एक सेवक हूँ।
गिरिजा मेरा दिल क्यों उसको देखना चाहता था जो बाबा के चरणों में रो रही थी तुम परेशान मत हो ये हमारी ललनी नहीं होगी हाँ गिरिजा तुम सही कहती हो। मैं पता नहीं क्यों कुछ का कुछ सोच लेती हूँ।
आज मदिरा मैं दूंगी क्या बात है आजकल बहुत सेवा होने लगी है पति की ऐसा नहीं जी क्या पहले नहीं करती थी घर के और भी तो काम होते हैं पूजा पाठ भी करना होता है आपको तो भगवान से मतलब है नहीं हाँ भयी तुम और तुम्हारे भगवान।
अकेली रहते रहते दिल बहुत घबराता है सोचती हूं कुछ दिनों के लिए अम्मा से मिल आऊं, अच्छा जी अब अम्मा कहां से आ गई इसलिए सेवा हो रही है नहीं नही ऐसी बात नहीं है मेरे जीवन में आपके सिवा है ही क्या, अच्छा ठीक है कुछ दिनों के लिए हो आओ।
ऊंचे ऊंचे आम के पेड़ जिसके आम इक्के पर छू जाते जी चाहता लपक कर तोड़ लूं पर दिल की उदासी ने इस तरह जकड़ रखा था कि पूरा बदन जकड़ सा गया था हंसी भी पराई लगती थी।
कहा जाओगे बिटियां सरसापुर जाऊंगी। काका तिकोनिया चौराहे पर रोक देना काका अच्छा बिटिया अभी तो आधा पौन घंटा लगे।
वहां पर एक ठाकुर भीम प्रताप सिंह हैं हां, हां जानती हो का बिटिया। हां, नहीं जल्दी से इक्कावान बोल पड़ा हम तो बहुत क़रीब से जानत हैं हमार मेहरारू उनके ईहां काम करत है कहत है बहुत दयालू लोग हैं। उनकर एक बिटिया रही जेकर ब्याह बड़े ऊंचे घराने में किये हैं नौकर, चाकर चारोें ओर लगे रहत हैं बड़ी बड़ी गाड़ियन से चलत हैं ठकुराइन तो कहत हैं उनकर दामाद तो साक्षात भगवान है।
ठाकुर साहब कहत हैं इ सब ज़मीन जायदाद दान करके चारों धाम पर चले जाब पर ठकुराइन समझावत हैं तबै रूका हैं नही ंतो कबका दान करका चले गए होते, और का लिए रखै कौन है वारिसं, उनके जैसे बहुत कमै लोग होत हैं। लो बिटिया आ गया तुम्हारा सरसापुर तिकोनिया चौराहा, हां काका।
वही बहती नहर जिसका पानी खेतों तक जा रहा था दोनों तरफ़ खेतों में लहलहाती फ़सलों से वही उड़ती हुई सुगन्ध वही रंग बिरंगी तितलियां जो बचपन की याद दिला रही थीं खेतों के बाद लम्बी लम्बी बल्लियों के पेड़ आम और महुआ के पेड़ जिसके नीचे मैं खेलती थी जिसकी डालियांे पर पड़े झूलों पर मैं झूलती थी, मेरी सखियां सावन के गीत गाती थीं गावं में कुंए पर वैसी ही औरतों की भीड़ थी जो मुड़ मुड़ कर मुझे देख रही थीं बच्चे मेरे पीछे पीछे आ रहे थे जो शायद कुंए पर नहाने आये थे अम्मा मुझे कहीं नज़र नहीं आ रही थी ठकुराइन ओ ठकुराइन देखो तो कौन आया है बाबू जी की आवाज़ थी जो पूरे घर में गूंज उठी थी क्या बात है इतनी ज़ोर से क्यों चिल्ला रहे हैं। ठकुराइन कमरे से निकलते हुए बोली। अरे मेरी सुमन बिटिया तुम कैसे अचानक कुछ संदेश न पत्र सब ठीक तो है न बिटिया और दामाद जी, सब ठीक है अम्मा आप लोगों से मिलने का बहुत जी चाह रहा था इसी लिए अच्छा बिटिया अन्दर आओ बैठो दामाद जी छोड़ने तो आये होंगे चौराहे तक। हां मैना कहती हूं हमारे दामाद जी जैसा किसी का दामाद न मिलेगा। अच्छा अम्मा रामू काका नज़र नहीं आ रहे हैं। अरे तुम्हारे रामू काका के गुज़रे तो साल भर से अधिक हो गया क्यों जी। हां बिटिया संदेश नहीं भेजवाये तुम, दुखी हो जाती जाना तो सभी को है। कोई आगे तो कोई पीछे, तुम लोगों का ख़याल कौन रखता है देख भाल करने वाले हैं बिटिया कुछ पुराने तो कुछ नये नौकर हैं और ठाकुर भीम प्रताप सिंह अभी बूढे़ नहीं हुए हैं। कह कर हंसने लगे। हां बापू तुम कभी बूढे़ नहीं होगे। सुमन बापू को पकड़ कर रोने लगी अम्मा भी रोने लगी हमार बिटिया कहे रोवत है ख़ुशी के आंसू हैं अम्मा। सुमन ने आंसू पोछते हुए कहा।
उठो बिटियां नाश्ता कर लो बहुत थक गयी थी लेटते ही सो गयी तुम्हारे पसंद का नाश्ता बनवाये हैं हां अम्मा बाबू जी नाश्ता कर लिए। वह तो भोरै में निकल जात हैं गांव मा, लोगन की समस्यायें सुनत हैं पंचायत का मुखिया यही हैं अच्छा अम्मा सुबह मा ख़ाली चाय लेते हैं आज कल तो इतने जल्दी मा रहत हैं कि चाय भी न पियत हैं।
अम्मा प्रेमा कैसी है कुछ दिनों पहले सुना था आयी है उसके ससुराल वाले अच्छे न मिले पति बहुत सतवात है बिटिया ससुराल तो पति से ही होत है। हां अम्मा अब कहां है। समझौता हुआ था ठाकुर साहब ही तो समझौता कराये थे। आज कल ससुराल मा है पता नहीं कैसी है कोई ख़बर नहीं भगवान सभी का बिटिया को अच्छा रखे।
बिटिया तुम्हारे लिए बहुत प्रार्थना करत है और न जाने कितने मन्नत मांगत है हम और ठाकुर साहब और सोचत है भगवान तुम्हार गोद भर दे तो सब कुछ दान करके चार धाम पर निकल जाये वही कहीं भगवान का शरण मा पहाड़ी के नीचे कुटिया बना कर रहे। काहे अम्मा ऐसा काहे कह रही हो अब दुनिया की मोह माया से मुक्ति चाहत हैं कुछ अच्छा नहीं लगत है बिटिया बस भगवान से एक ही प्रार्थना है हमार बिटिया का जल्दी से गोद भर दे भगवान का घर देर है अंधेर नहीं है। एक दिन भगवान ज़रूर सुनेगा अरे लो आ गये ठाकुर साहब। शंकर नाश्ता बना दो नहीं नहीं शरबत भेजवा दो नाश्ता करने का जी नहीं चाह रहा है।
क्या बात है जी कुछ परेशान से हो दिन भर कुछ नहीं खाये बात ही कुछ ऐसी सुमन की मां प्रेमा की अम्मा आयी थी कह रही थी प्रेमा तलाक़ लेने को कहती है, तलाक़ ये तो घोर पाप है, हां यही तो समझाये कि बिटिया का समझाओ मानव से भरी दुनिया में कोई मानव न मिलेगा। तलाक शुदा औरत को दुनिया मा कोई जगह नहीं है। तलाक़ एक कलंक है कलंक।
सुमन सो गयी हा यही तो सो रही है अच्छा भगवान का दिया हमारे सुमन के पास सब कुछ है बस ख़ाली गोद के सिवा भगवान यह भी मन्नत पूरी कर दे तो गंगा नहा लेंगे हां जी सही कहत हो।
न जाने किस समय सुमन की आंखे खुल गयी थी सुमन उनकी बातों का कड़वा घोंट पी गयी थी। इ का कर रही हो बिटिया अम्मा रघु अकेले है परेशान होते होंगे मेरी बिटिया कितनी समझादार हो गयी है ज़रूर पिछले जनम मा मूती दान किये होंगे जो इतनी समझदार बिटिया पाये।
दो हम सामान रखवा दे नहीं नहीं अम्मा हम रख लेंगे इ का तुमरे आंख मा आंसू । आंसू पोछ लो बिटिया कोई देख लेगा तो कुछ का कुछ समझेगा और जानती हो गांव मा आग की तरह बात फैलती है। हम जानते हैं अम्मा दरवाज़े के पीछे रोती बिलखती होंगी।
देखो न कौन आया है दरवाज़े पर अच्छा देखती हूं जी डाकिया है यह पत्र दे गया है अच्छा देख तो लो ललनी का है खोल कर देख लो जी क्या पता कोई ज़रूरी बात हो अच्छा तुम कहती हो तो देख लेते हैं। सुमन हमारी ललनी क्या हुआ जी रो क्यों रहे हो हमारी ललनी। अब इस दुनिया में नहीं रही चारों ओर घंघोर अंधेरा सा छा गया था ललनी कहीं दूर सितारों में जा बसी थी।
पत्र में लिखा है ललनी को चौथी बिटियां जब से हुई थी वह बीमार रहती थी उस बीमारी के कारण ही ललनी की मौत हो गयी। रघु पत्र को आंखो से लगा कर रोते रहे मोहल्ले के कुछ लोग भी आ गये थे जो उनको तसल्लियां दे रहे थे गिरिजा ने कहा अब रोने से क्या होगा। जब ज़िन्दगी में मर गयी थी हां मगर बहन तो थी ही सुमन ने धीरे से कहा। पर रघु ने अच्छा नहीं किया ललनी का रघु के सिवा था ही कौन माता पिता भी तो नहीं थे न जाने किस हाल में रही होगी ललनी, हां गिरिजा मेरा जी लगा था बहुत मिलना चाह रही थी ललनी से सोचा था इनको समझा बुझा कर ललनी को घर ले आऊंगा मगर यह सब हो जायेगा कभी सोचा नहीं था। मुझसे तो अच्छी थी ललनी पूरी औरत तो थी मैं तो पूरी औरत भी न हूं मत रोओ सुमन भगवान से प्रार्थना करो।
ललनी को गुज़रे चार साल हो गये न कोई दुआ काम आयी और न दवा गिरिजा मैं क्या करूं कुछ समझ नहीं आ रहा अब तो और ज़्यादा यह बदलते जा रहे हैं मुझे तो कभी कभी शक भी होता है। ऐसा नहीं हो सकता। रघु कूर है पर चरित्रहीन नहीं जहां तक मैं जानती हूं रघु को भगवान करे ऐसा ही हो, दफ़तर से बहुत देर में आते हैं अक्सर कहीं न कहीं जाना होता है भगवान जाने गिरिजा क्या मेरे भाग्य में लिखा है। कुछ भी तो नहीं है। मेरे पास, सूनी धरती सूने आसमान के सिवा अब यह रघु भी जहाज का पंछी जहाज़ पर ही आयेगा यह क्यों नहीं सोचती तुम।
भगवान हमारी परिक्षा कब तक लेगा क्या कमी रह गयी मेरी प्रार्थना में सोचती हूं दुनिया के ताने कब तक सह पाऊंगी। ऐसा न हो एक दिन मैं पागल हो जाऊं। अब नहीं सहा जाता गिरिजा मत रोओ सुमन मैंने तुम्हें इतना असहज कभी नहीं देखा है। यह दुनिया दुखों का संगम है। जब तक जीवन है इसी में डूबते रहना है।
आज सुमन के सब्र का बांध टूट गया था वह आधी बारिश में छतरी लेकर आगे आगे चलते जा रहे थे पीछे पीछे सुमन जल्दी जल्दी भागते हुए कभी छुप जाती कभी चलने लगती आखि़रकार एक इमारत में वो अन्दर गये सुमन भी उनके पीछे दिवार से छुप गयी।
आये साहब बैठे कैसे हैं आप चाय काफ़ी कुछ मंगवाये, नहीं, नहीं वो कैसे हैं। ठीक हैं आप जैसे लोग जिनके साथ होंगे ठीक ही होंगे आप महान हो साहब लिजिए मैडम आ गयी गोरी नन सामने चेयर पर बैठ गयी और बताओ रघु इतने बारिश में और किसी दिन आ जाते बच्चे से मिलने का जी चाह रहा था तो रहा न गया बच्चे कैसे हैं अच्छे हैं बस कभी कभी छोटी, मां को बहुत याद करती है एक दिन मुझसे कह रही थी पिता को तो मैं जानती हूं पर मां कैसी होती हैं मेरे पिता तो बहुत अच्छे हैं अक्सर मिलने आते हैं और खिलौने मिठाइयां भी लाते हैं पर मां-मां तो बहुत दुलार करती है और डांटती भी है, मैं डांटूंगी, दुलार भी करूंगी। तो तुम मुझे क्या कहोगी दोनों हंसने लगे।
लो आ गई चारों लड़कियों को रघु प्यार कर रहे थे छोटी से खेल रहे थे।
मुझे लगा मानो चट्टानों से ऐसा लावा फूट रहा हो जो शहद से भी मीठा हो मखमल से भी कोमल। मैं ये दृश्य देख कर आश्चर्य थी समझ नहीं आ रहा था कि रोऊं की हसूं।
*उक़्बा हमीद
एम.एड ,लखनऊ विशवविधालय,
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