एक सवाल बार-बार मेरे मन में उठता है
उन बेगुनाहों का क्या जो तिल तिल जीता है तिल तिल मरता है
बरसों बाद जब कोई बेगुनाह घर लौटता है
मां की ममता से लिपटकर बस यही कहता है
मां मैं बेगुनाह था अब सब यही कहते हैं
एक सवाल……।
मां मैं बेगुनाह हूं रो रो कर बार-बार यह कहता था
मगर मेरे सच्चाई पर कोई भरोसा नहीं करता था
थक हार कर कारागार में सो जाया करता था
कब आंखें खुलती थी पता भी नहीं चलता था
क्या करता मैं बस तेरे यादों के सहारे जी लिया करता था
एक सवाल……
मां की आंखों में आंसू है खुशी के यह तो सबको दिखता है
मगर उन आंसुओं के पीछे का दर्द किसी को क्यों नहीं दिखता है
बूढ़ी मां के वर्षों के तपस्या का फल तो सबको दिखता है
मगर उन तपस्याओं मैं रात रात भर जगना क्यों नहीं दिखता है
एक सवाल….
मेरा लाल कैसा था रे तू तेरे बिना
हर ईद, हर दिवाली फीकी होती थी
आंखों में ग़म के आंसू लिए जिया करती थी
कि मेरा लाल तो बेगुनाह है एक दिन घर ज़रूर लोटेगा
एक सवाल…….
अधिकारियों का क्या जो किसी बेगुनाह को उठाता है
अब हमारा media और हमारी सरकारें चुप क्यों हो जाती हैं
के बेगुनाह कमज़ोर भला उसकी आवाज कौन उठाता है
तो मैं शमीम डंके की चोट पर कहता हूं
क्यों ना अधिकारियों को भी उतनी ही सज़ा मिले
जितना कोई बेगुनाह काट कर आता है
एक सवाल…..
क्या उन बेगुनाहों के लिए हमारा मन कुछ सोचता है
आज वह हैं कल हम भी तो हो सकते हैं सोचना कैसा लगता है
सरकारों से, judiciary से मेरा क़लम बार-बार यह कहता है
इस तरह के मुद्दे पर गंभीरता से सोचो
हिंदुस्तान का आवाम यही चाहता है
एक सवाल…..
हमारा system ऐसे लोगों को इतना मदद करता है
बेगुनाह अपने जीवन की पटरी को ठीक-ठाक चला पाता है
अगर हां तो अच्छी बात है अगर नहीं तो system आखिर क्या सोचता है
तो हिंदुस्तान का आवाम यह जानना चाहता है
हिंदुस्तान की जनता यह जानना चाहती है
के बेगुनाहों के हक़ का मुआवज़ा क्या दिया जाता है
एक सवाल…..