मार्क ट्वेन ने कहा था – लोगों को यह शक करने दीजिए कि आप बेवकूफ हैं। मुंह खोलकर आप उनके शक को यकीन में मत बदलिये। देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अचानक भाजपा की मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं। राफेल की खरीदी के वक्त राफेल में नीबू मिर्ची टांग कर उन्होंने यह तो दिखा ही दिया था कि वे भाजपा की मुख्यधारा का हिस्सा हैं, मगर इतने दिनों की खामोशी से यह भरम होने लगा था कि वे कुछ अलग हैं। सावरकर पर बयान देकर उन्होंने न सिर्फ यह साबित किया कि वे नई भाजपा की नई मुख्यधारा का हिस्सा हैं बल्कि उन्होंने यह भी ज़ाहिर कर दिया कि वे मार्गदर्शक मंडल में जाने की बजाय अभी सक्रिय राजनीति में रहना चाहते हैं और अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना चाहते हैं। इस बयान के बाद उनकी उपेक्षा करना आसान नहीं होगा। भाजपा की मुख्यधारा ऐसी बातें करना और ऐसे बयान देना है कि पढ़े-लिखे, समझदार लोग पगला जाएं। उन्हें यह समझ ही नहीं आए कि इस बयान का करना क्या है।
आज तक जो बात किसी किताब में नहीं लिखी, किसी और ने नहीं कही, वो बात राजनाथ सिंह ने कही है। राजनाथ सिंह ने कहा कि सावरकर को माफी मांगकर जेल से बाहर आने की सलाह गांधी जी ने दी थी। एक एतिहासिक तथ्य यह है कि सावरकर को गांधी की हत्या के षड्यंत्रकर्ताओं में से एक माना जाता रहा है। गांधी की हत्या में उन पर शक किया गया था, मगर सबूतों के अभाव में उन पर मुकदमा नहीं चला। यह भी कहा जाता है कि वे अंग्रेजों के मुखबिर थे और उन्हें साठ रुपया महीना पेंशन इसी एवज में प्राप्त होती थी।
बहरहाल राजनाथ सिंह के कथनानुसार सावरकर ने माफी गांधी के कहने पर मांगी थी। गांधी जी अहिंसा के पैरोकार थे, सावरकर ने अहिंसा का रास्ता गांधी के कहने पर नहीं चुना। जब पहली बार विदेश में गांधी जी सावरकर से मिले और उन्हें अपनी मुहिम में शामिल होने के लिए कहा, तो सावरकर ने यह बात भी नहीं मानी थी। अपनी पूरी ज़िंदगी में सावरकर ने गांधी की कही केवल एक ही बात मानी और वो बात थी माफी की। जाहिर है राजनाथ के पास इसकी पुष्टि के लिए कोई खत, कोई सबूत नहीं है। अगर होता तो संघ परिवार अभी तक उसे सहेज कर नहीं बैठा होता बल्कि अब तक तो सावरकर को गांधी अनुयायी साबित कर चुका होता। इतिहास का क्या होगा यह सोचना छोड़ दीजिए। इस पर नज़र रखना ज़रूरी है कि अब संघ परिवार दबाव डालकर राजनाथ सिंह को क्या ईनाम दिलवाता है। हो सकता है कि उन्हें यूपी का आगामी मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर दिया जाए। कोई बड़ी जिम्मेदारी दे दी जाए। कोई और बड़ा पद, मिल जाए। यह भी संभव है कि अगले आम चुनाव के बाद अगर स्पष्ट बहुमत ना मिले तो राजनाथ सिंह को अटल जी की तरह सभी दलों का समर्थन लेने भेज दिया जाए। इतना तय है कि इस बयान के बाद राजनाथ सिंह बेरोज़गार नहीं रहेंगे।