नई दिल्ली 30 अक्तूबर2020
अध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिन्द मौलाना सैयद अरशद मदनी ने कहा कि पिछले दिनों फ्रांस में जो कुछ हुआ और अब भी हो रहा है उसे कुछ लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता साबित कर रहे हैं और इसका समर्थन भी कर रहे हैं, लेकिन क्या एक सभय समाज में इस प्रकार के व्यवहार को सही ठहराया जा सकता है? उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया की जितने भी धार्मिक और महान लोग हैं उन सब का सम्मान किया जाना चाहीए चाहे उनका सम्बंध किसी भी धर्म से हो। हमें हमारे नबी ने यह शिक्षा दी है कि किसी भी धर्म और किसी भी धार्मिक व्यक्ति को बुरा मत कहो, पूरी दुनिया के मुसलमान इस आदेश का पालन कर रहे हैं, किसी भी धर्म का मानने वाला यह दावा नहीं कर सकता कि किसी मुसलमान ने उसके धर्म के किसी धर्मिक व्यक्ति का अपमान किया हो या उसका मज़ाक उड़ाया हो। उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति द्वारा अपमानजनक खाकों के प्रकाशन और इस कुकर्म के समर्थन की घोर निंदा करते हुए कहा कि यह असहनीय है, यहां तक कि ऐसे लोगों का समर्थन करना जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में करोड़ों लोगों की ही नहीं बल्कि अरबों लोगों की असहनीय पीड़ा का कारण बनें, जो अति दुख का कारण ही नहीं बल्कि एक प्रकार का आतंक है।
क्योंकि ऐसे अहंकारी लोगों के दिल दुखाने से चरमपंथी प्रतिक्रिया को बढ़ावा मिलता है और दुनिया की शांति को खतरा पैदा हो जाता है, विशेषकर किसी शासक की ओर से ऐसी अपवित्र कृतियों का समर्थन गंभीर जुर्म और अक्षम्य कार्य है, अगर इस्लामी दुनिया इस तरह की हरकत पर आक्रोष में कड़ा रुख अपनाती है तो इसको अक्षम माना जाना चाहिये। मौलाना मदनी ने कहा कि इस्लाम एक शांतिप्रिय धर्म है जो अन्य किसी भी धर्म के सम्मानित व्यक्तियों के मज़ाक को कदापि पसंद नहीं करता और तमाम धार्मिक शक्तियों की भावनाओं का सम्मान करता है, मगर दुनिया की कुछ ताकतें बार बार मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं। यह बात निश्चय ही अस्वीकार्य है, हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं। अंत में मौलाना मदनी ने कहा कि कोई भी मुसलमान अपने प्रिय पैगंबर हजरत मुहम्मद मुस्तफा की शान में मामूली अपमान भी सहन नहीं कर सकता फिर भी तमाम मुसलमानों के लिए जरूरी है कि वो भावनाओं से ऊपर उठकर अच्छे विचार और सहनशीलता से इसका मुकाबला करें। उन्होंने कहा कि हमें बहुत दुख है कि हमारे देश की सरकार ने फ्रांस के रुख का समर्थन किया है जिसका अर्थ है कि वह सारी दुनिया के मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को ठोकर मार कर दिलों को ठेस पहुंचाने वाले कानून का समर्थन कर रही है, इससे मालूम होताहै कि खुद अपने देश के अंदर सरकार का रुख क्या है और वो बीस करोड़ मुसलमानों के सिलसिले में क्या दृष्टिकोण रखती है? हमारा विचार है कि फ्रांस के रुख के समर्थन के मुकाबले खामोश रहना अधिक उचित होता।