पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे का अंतिम अध्याय लिखा जा रहा है। महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। इसका भान होते ही हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रमुख जीतनराम मांझी अलग हो चुके हैं। दरअसल, राष्ट्रीय जनता दल व कांग्रेस की ओर से छोटी पार्टियों को खास तवज्जो नहीं मिल रहा है। महागठबंधन में एक खास रणनीति के तहत छोटी पार्टियों को उनकी औकात बताने की कोई कसर नहीं छोड़ रखी गई है। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, विकासशील इनसान पार्टी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भाकपा माले को सीटों को लेकर चिरौरी करनी पड़ रही है।
चुनाव से पहले आरजेडी और कांग्रेस के रुख से आरएलएसपी, वीआइपी और वामपंथी दलों के नेताओं की धड़कनें तेज हो गईं हैं। आरजेडी से सीपीआइ व सीपीएम की दो दौर की बातचीत हो चुकी है। भाकपा माले के नेता अकेले में आरजेडी नेताओं से तीन बार मिल चुके हैं। सीपीआइ व सीपीएम ने जिन 45 सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा प्रकट की है, उसकी सूची आरजेडी को सौंप दी है। इन्हें कितनी सीटें दी जाएंगी, इस बारे में आरजेडी के शीर्ष नेतृत्व ने सीपीआइ व सीपीएम के पोलितब्यूरो को बताया दिया है।
इधर माले ने भी 50 से ज्यादा सीटों की सूची आरजेडी को सौंपी है। माले के राज्य सचिव कुणाल के मुताबिक गेंद महागठबंधन के पाले में डाल दी गई है। अब उत्तर का इंतजार है। वीआइपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने 25 सीटें मांगी हैं। आरएलएसपी प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा ने भी 49 सीटों पर दावेदारी पेश की है।
राजनीतिक गलियारे में छोटी पार्टियों की बड़ी मांग पर तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं। आरजेडी को भी लगता है कि उपेन्द्र कुशवाहा और मुकेश सहनी की पार्टियों को गठबंधन में महत्व दिए जाने के बाद भी वे अपनी जाति के वोटों को ट्रांसफर करने में सक्षम नहीं नजर आ रहे हैं। तर्क दिया जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में आरएलएसपी ने पांच सीटों पर चुनाव लड़ा था। उपेन्द्र कुशवाहा खुद दो सीटों से चुनाव लड़े और हारे। इसी तरह मुकेश सहनी की पार्टी वीआइपी ने तीन सीटों पर उम्मीदवार उतारे और उससे आरजेडी को कोई खास फायदा नहीं हुआ।
अब विधानसभा चुनाव में छोटी पार्टियों की मनचाही सीट डिमांड से आरजेडी का शीर्ष नेतृत्व नाराज है। यही वजह है कि छोटी पार्टियों को सीट शेयरिंग में ज्यादा महत्व नहीं दिया जा रहा है। इस बात का भी कयास लगाया जा रहा है कि आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के निर्देश पर ऐसे दलों को उसकी हद में रखने की कोशिश हो रही है।
(jagran.com)