यह सर्वविदित है कि कोरोनावायरस का डेल्टा वैरियंट भारत में घातक साबित हुआ। लाखों लोग असमय मौत के शिकार हुए| आज भी काफ़ी संख्या में लोग लॉन्ग-कोविड के लक्षणों के शिकार हैं|
अब दक्षिण अफ्रीका का यह वैरियंट भारत में आ चुका है| यह कितना घातक और कितनी इसकी मारक क्षमता है? इस सन्दर्भ में, सिलसिलेवार जानकारियाँ दे रहे हैं मेदान्ता-मेडिसिटी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक डॉ नरेश त्रेहन।
डॉ त्रेहन विश्लेषण करते हुए कहते हैं कि जब कोरोना का संक्रमण शुरू हुआ था; उस वक्त कोरोना का अल्फा-वैरियंट सक्रिय था। अल्फा- वैरियंट का “आर-नॉट” फैक्टर 2.5 था। वस्तुतः “आर-नॉट” फैक्टर का तात्पर्य यह है कि एक संक्रमित व्यक्ति कितने लोगों में संक्रमण फैला सकता है| उस वक्त संक्रमित लोगों की अधिकतम संख्या एक लाख प्रतिदिन थी| 30 सप्ताह के तत्पश्चात कोरोना की दूसरी लहर ने देश को ग्रसित किया।
दूसरी लहर में कोरोना का डेल्टा वैरियंट सक्रिय था| डेल्टा वैरियंट का “आर-नॉट” फैक्टर 6.5 था। और डेल्टा वैरियंट अल्फा-वैरियंट की तुलना में ज़्यादा तेज़ी से फ़ैलने लगा| डॉ त्रेहन बताते हैं कि उस वक्त संक्रमित व्यक्तियों की अधिकतम संख्या चार लाख प्रतिदिन तक पंजीकृत की गयी| यह ज़ाहिर है कि डेल्टा वैरियंट का यह स्वरूप काफ़ी भयानक था| और इसने काफ़ी संख्या में लोगों को मौत की नींद सुला दिया।
कोरोनावायरस के नये वैरियंट ऑमिक्रॉन की चर्चा करते हुए डॉ त्रेहन कहते हैं कि इस नये वैरियंट में 50 म्यूटेशन पाए गए हैं| और इस 50 की संख्या वाले म्यूटेशन में 30 म्यूटेशन स्पाइक प्रोटीन पर पाए गए हैं| इन तथ्यों के मद्देनज़र, हमें चौकन्ना और पूर्ण सावधानियां बरतने की आवश्यकता है, डॉ त्रेहन कहते हैं| म्यूटेशन रिपोर्टों के आधार पर डॉ त्रेहन यह अनुमान लगाते हैं कि इस वैरियंट का “आर-नॉट” फैक्टर 12 से 18 तक हो सकता है| तात्पर्य यह है कि इस वैरियंट की फ़ैलने की गति तीव्र एवं व्यापक हो सकती है; जैसा कि दक्षिण अफ्रीका में अवलोकित किया गया है।
अब प्रश्न यह होता है कि इस संक्रमण का कितना भयावह स्वरूप होगा; कितने लोग संक्रमित होंगे; तथा कितने लोग गंभीर रूप से बीमार होंगे; तथा कितने लोग मध्यम रूप से बीमार होंगे।
भारत और दक्षिण अफ्रीका में हुए टीकाकरण की वर्तमान स्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए डॉ त्रेहन बताते हैं कि भारत और दक्षिण अफ्रीका में एक बुनियादी अंतर यह है कि दक्षिण अफ्रीका में काफ़ी कम लोगों का टीकाकरण हुआ है| हमारे देश में लगभग 116 करोड़ लोगों का टीकाकरण हो चुका है| इस संख्या में से 50 फीसदी लोगों को दो टीके लग चुके हैं| दोनों देशों के मध्य टीके की सांख्यिकीय अंतर के आधार पर हम अपने आपको आश्वस्त कर सकते हैं कि संक्रमण से हमारी सुरक्षा हो सकती है| जिन लोगों को दो टीके लग चुके हैं; उन लोगों को अगर संक्रमण होगा भी तो संक्रमण मध्यम दर्जे का होगा, ऐसा डॉ त्रेहन का अनुमान है।
डॉ त्रेहन आगे बताते हैं कि ऐसा हो सकता है कि भारत में यह वैरियंट ज़्यादा तबाही नहीं करे। लेकिन फिर भी ऐसी कोई गारंटी नहीं है| डॉ त्रेहन का यह विचार है कि जब तक यह स्थिति स्पष्ट नहीं हो जाती है कि यह वायरस कितना संक्रामक एवं रोगजनक है; हम पुख्ता तौर पर कुछ भी नहीं कह सकते हैं| अतएव हमें अपने आपको सुरक्षित रखना है।
भारत सरकार का एयर-ट्रैवल संबंधी विनियमन (रेगुलेशन) जारी हो गया है| भारत आने वाले यात्रियों को कैसे क्वारंटाइन एवं आइसोलेट (अलग रखा जाए) किया जाए, ये तमाम जानकारियाँ सार्वजनिक पटल पर हैं|
डॉ त्रेहन खेद व्यक्त करते हुए कहते हैं कि लोगों में पूर्णतः लापरवाही अवलोकित की जा रही है| लोग बाज़ार में, शादियों में सम्मिलित होने बिना मास्क लगाए जा रहे हैं| उन लोगों को यह सख्त चेतावनी मिलनी चाहिए कि वे मास्क लगाएं; सोशल डिस्टेंसिंग एवं हैण्ड हाइजीन का पालन करें| जिन लोगों ने एक भी टीका नहीं लगाया है, वे जल्द से जल्द टीका लगवाएं।
अंतर्राष्ट्रीय हवाई यात्रा पर अपने विचार रखते हुए डॉ त्रेहन कहते हैं कि निग्रह (रिस्ट्रिक्शन) लागू कर दी गयी है; परन्तु निषेध (बैन) नहीं किया गया है। इस मुद्दे पर गहन चर्चा हो रही है| आंकड़ों पर भी नज़र रखी जा रही है। विश्व के सभी देश सामूहिक रूप से इस मुद्दे पर विचार कर रहे हैं| मसलन; निषेध (बैन) लागू करना व्यावहारिक कदम होगा या नहीं होगा, क्या निषेध (बैन) लागू करना लोगों के प्रति नाइंसाफी साबित होगी, इत्यादि?
डॉ त्रेहन कहते हैं कि सर्वोपरि पहलु यह है कि हम पूर्ण रूप से सतर्कता बरतें| हमारी तरफ़ से कोई भी चूक तीसरी लहर को आमंत्रण दे सकती है| हमारी ऐसी सावधानियां होनी चाहिए कि अगर यह वैरियंट फैलता भी है तो गंभीर स्थिति से बचा जा सके।
बूस्टर डोज़ (टीकाकरण) पर अपनी राय ज़ाहिर करते हुए डॉ त्रेहन कहते हैं कि बूस्टर डोज़ स्वास्थ्यकर्मियों, चिकित्सकों को दिए जाने की अत्यंत आवश्यकता है| ऐसा विदित है कि स्वास्थ्यकर्मियों एव चिकित्सकों को दो टीके (डोज़) लगाए हुए 8-9 महीने गुज़र चुके हैं| ऐसा अवलोकित किया गया है कि टीका लगाने के 6 महीने के बाद लोगों की एंटी-बॉडी (प्रतिरोधक क्षमता) कम होने लगती है| विशेषकर स्वास्थ्यकर्मियों एवं चिकित्सकों को बूस्टर डोज़ लगाना निहायत ज़रूरी है। ऐसा इसलिए कि संक्रमण की किसी भी लहर का सामना उन लोगों को आगे आकर करना पड़ता है| इस मुद्दे पर एक सीमा यह है कि टीका (वैक्सीन) की उपलब्धता कितनी है। अगर टीके की उपलब्धता है तो बूस्टर डोज़ अवश्य लगवाने चाहिए; जैसा कि बाहर के देशों में किया जा रहा है| पूर्ववत में जैसा हमने किया था कि पहले स्वास्थ्यकर्मियों, चिकित्सकों का टीकाकरण किया। फिर बुज़ुर्ग लोगों का टीकाकरण किया गया। तत्पश्चात अन्य लोगों का बृहद रूप से टीकाकरण किया गया| ऐसा बूस्टर डोज़ के साथ करने की आवश्यकता है। टीके से जुड़े अहम् पहलू पर अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ त्रेहन कहते हैं कि आनेवाले समय में ऐसा संभव है कि हमें टीका (वैक्सीन) बदलना पड़े क्योंकि यह अलग प्रकार का वैरियंट है।
अभी वैरियंट से जुड़े आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। वैरियंट के अभिलक्षणों से हम पूर्णरूपेण अवगत नहीं हुए हैं। अतएव हमारे देश में वर्तमान स्थिति में उपलब्ध टीकों की गुणकारिता पर हम प्रश्नचिन्ह नहीं लगा सकते हैं| हमंउ चार से छह सप्ताह सजग रहने की आवश्यकता है। इसके पश्चात, हमारे समक्ष जैसी स्थिति आयेगी, उस आधार पर हम टीके के बदलाव पर विचार विमर्श करेंगे।