वर्तमान स्थिति में, मानव सभ्यता कोविड-19 वैश्विक महामारी के सर्वाधिक बुरे दौर से गुज़र रही है। विश्वव्यापी स्तर पर कोविड-19 वायरस ने लगभग 8 करोड़ लोगों को गिरफ़्त में लिया है जिसमें 17.5 लाख लोग असमय मौत के मुँह में चले गये। भारत में करीब 1 करोड़ लोग इस वायरस की चपेट में आये; तथा 1.47 लाख से अधिक लोग मृत्यु को प्राप्त हुए।
ज़रूरी ऐहतियात का पालन करते हुए हम लोगों ने इस परिस्थिति से समझौता कर लिया है। “भूराजनीतिक असमानताओं को नज़रंदाज़ करते हुए संपूर्ण विश्व ने इस वायरस के इलाज की दिशा में एकजुटता दिखाई और कोविड-19 वैक्सीन ईजाद करने की दिशा में अपने प्रयासों को तेज़ किया,” यह कहना है डॉ अज़हर परवेज़ का जोकि गुड़गाँव-स्थित मेदांता मेडिसिटी अस्पताल में जी.आई. सर्जरी, जी.आई. आन्कोलॉजी ऐंड बैरिऐट्रिक सर्जरी इंस्टीट्यूट ऑफ़ डाइजेस्टिव ऐंड हेपटो-बिलियरी साइंसेज़ विभाग में ऐसोसिएट डिरेक्टर के पद पर कार्यरत हैं।
डॉ परवेज़ आगे कहते हैं कि भारतीय संस्थान मसलन्; सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया, भारत बायोटेक एवं वैश्विक-स्तर की कंपनी फ़ाइज़र्स ने आशाजनक वैक्सीन निर्मित की हैं जिन्हें नैदानिक परीक्षण बतौर मानव शरीर पर आजमाया गया और सीमित सफलताएँ मिलीं।
हाल में इस वैक्सीन को इंग्लैंड, अमेरिका एवं बहरीन जैसे देशों में मानव शरीर पर उपयोग करने के लिए अनुमोदित किया गया और भारत में इस वैक्सीन का उपयोग करने के लिए ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया (डीसीजीआई) के समक्ष आवेदन किया गया। जनवरी, 2020 में यह वैक्सीन नैदानिक वास्तविकता के रूप में उभरकर आयेगी, डॉ परवेज़ का कहना है।
जैसा कि विदित है, कोरोनावायरस ने एक नये एवं भयावह अवतार में इंग्लैंड में प्रवेश किया है और एक नये प्रकोप की आशंका के संदर्भ में, इंग्लैंड के नीति-निर्माताओं ने आधिकारिक तौर पर यह आश्वासन दिया है कि वायरस का यह नया स्वरूप भारत में वैक्सीन के विकास को प्रभावित नहीं कर पायेगा।
इंग्लैंड में “कोविशील्ड” नामक वैक्सीन तैयार की गयी है जोकि संभवतः ज़्यादा सुरक्षित है; और जिसका भारत में उपयोग जनवरी, 2021 माह से शुरू होने की संभावनाएँ हैं।
कोविड वैक्सीन के विषय में विस्तृत विश्लेषण करते हुए डॉ परवेज़ कहते हैं कि अब तक किये गये मानव शरीर पर कोविड वैक्सीन के परीक्षणों के परिणाम संतोषजनक नहीं रहे हैं; ये वैक्सीन 70-80 फ़ीसदी सुरक्षित पाये गये; हालाँकि फ़ाईजर्स एवं मार्डना सरीखी कंपनियाँ अपने वैक्सीन के 95 फ़ीसदी सुरक्षित होने का दावा पेश कर रही हैं।
वस्तुतः वैक्सीन मानव शरीर में मैसेंजर आर एन ए के रूप में प्रवेश करती है जोकि एक प्रकार का आनुवांशिकी कोड (जेनेटिक कोड) है; और इसका स्वरूप कोरोनावायरस की भाँति होता है। एक बार इस कोविड वैक्सीन का इंजेक्शन लगने के पश्चात् शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इस कोड से रोग-प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेती है। बाद में अगर इस वैक्सीन-इंजेक्शन का उपयोग किया हुआ व्यक्ति कोरोनावायरस के संपर्क में आता है, ऐसी स्थिति में शरीर में वैक्सीन से विकसित हुई रोग-प्रतिरोधक क्षमता (एंटीबॉडी) वायरस पर हमला कर उसकी संक्रमणता को गौण कर देती है।
वैक्सीन से जुड़े कुछ अहम् सवालों पर ग़ौर करते हुए डॉक्टर अज़हर कहते हैं कि मानव शरीर पर उपयोग के लिए प्रभावी वैक्सीन की वास्तविकता से जुड़े अहम् मुद्दों को नकारा नहीं जा सकता है; मसलन्; क्या हम संपूर्ण जनसंख्या के लिए वैक्सीन तैयार कर लेंगे?
वैक्सीन का भंडारण करना भी एक समस्या है; और वैक्सीन के लिए अत्यधिक गहन ठंडा करने वाली (फ़्रीज़िंग) प्रणाली को संस्थापित करने की आवश्यकता महसूस होगी और क्या भारत जैसे विकासशील देश में ऐसा कर पाना संभव होगा? क्या वैक्सीन का मानव-शरीर पर प्रभाव लंबे अंतराल तक रह पायेगा? और ऐसी आशंका भी है कि वैक्सीन द्वारा रोग-प्रतिकारक क्षमता-प्राप्त व्यक्ति वायरस का संचरण कर सकता है।
भारत में वैक्सीन के विकास की दिशा में किये गये जा रहे प्रयासों से ऐसा अनुमान है कि जनवरी, 2021 माह के अंतिम सप्ताह में वैक्सीन वास्तविक स्वरूप में उभरकर आयेगी। लेकिन हमें फिर भी कोरोनावायरस से बचने के लिए ज़रूरी ऐहतियातों का पालन जारी रखना चाहिए, डॉ परवेज़ कहते हैं।