शमोइल अहमद(वरिष्ठ उर्दू एवं हिंदी लेखक व साहित्यकार)
अपनी मधुर बयानी के लिए प्रसिद्ध दाग़ देहलवी के शिष्यों में सम्मिलित हिंदुस्तान के प्रसिद्ध कवि अल्लामा इक़बाल की शख्सियत किसी परिचय की मोहताज नही। उर्दू हिन्दी ही नही पूरे विश्व में इस महान कवि ने सम्मान और ख्याति प्राप्त की।उर्दू कविता के संसार में अपना स्थान खुद बनाया और उर्दू नज़्मों को नया आयाम प्रदान किया। इक़बाल का नाम उर्दू के उन महान लेखकों की सूचि में सम्मिलित हैं जिन पर सब से ज़्यादा लिखा और पढ़ा जाता है। ये हालात केवल हिंदुस्तान ही नही बल्कि पाकिस्तान और विश्व के दूसरे देशो मे भी हैं। जहां जहां उर्दू से प्रेम करने वाले लोग हैं वहां वहां अल्लामा इक़बाल के चाहने वाले भी मिलेंगे ,उनको पढ़ने और समझने वाले भी मिलेंगे।
उर्दू कविता में मिर्ज़ा ग़ालिब के बाद इक़बाल को उर्दू का सूतून कहा जाता हैं।जिस से उर्दू का कोई भी पाठक इंकार नहीं कर सकता ।
अल्लामा इक़बाल की कविताओं की विशेषताओं उनकी कविताओं में रचि बसी फिक्र व फन के विभिन्न पहलुओ पर विश्व भर के महानविशेषग्यो,दार्शनिकों,लेखकों ऊर्दू हिन्दी व अन्य भाषाओं के लेखकों ने अपने विचार व्यक्त किए। अल्लामा इक़बाल उर्दू के उन महान लेखकों में है जिन पर सब से ज़्यादा लिखा गया और आज भी ये सिलसिला जारी है।
अल्लामा इक़बाल के जीवन उनकी रचनाओं पर आज तक बहुत कुछ लिखा ,पढ़ा और समझा जाता रहा है परंतु डॉ सलेहा सिद्दीकी ने उनके जीवन के उस पहलु को लिखा जिस पर बहुत कम लिखा गया या नज़रअंदाज़ कर दिया गया। सलेहा सिद्दीकी की मैं इस मामले में सराहना भी करता हूँ कि उन्होंने इक़बाल के जीवन के उस पहलू पर क़लम उठाया और ड्रामा लिखा जिस पर इक़बाल के ज्ञानि विशेषज्ञ भी क़लम उठाने से घबराते हैं और वह हैं उनका वैवाहिक जीवन। इक़बाल ने तीन विवाह किया।लेकिन उनको खुशी नही मिली।कोई ऐसा जीवन साथी नही मिला जिस से वो अपने मानसिक विचार को साझा कर सके।अपनी सोच जीवन के प्रति अपने विचार को व्यक्त कर सके।
अतः मैं डॉ सलेहा सिद्दीकी के इस प्रयास की सराहना और बधाई देता हूँ कि उन्होंने उनके वैवाहिक जीवन को अपने ड्रामे का विषय चुना और उनकी तीनों पत्नियों( करीम बी, सरदार बेग़म, मुख्तार बेग़म) को आधार बना कर इक़बाल की मानसिकता को ध्यान मै रख कर उनके ज़माने के रहन सहन को रेखांकित कर उनके काल को जीवित कर इस सुंदर ड्रामे(अल्लामा) की रचना की और इक़बाल के जीवन से संबंधित उन अनछुए पहलुओं पर लिखा जिस पर उर्दू विशेषज्ञ या इक़बाल प्रेमी बात नही करते। सलेहा सिद्दीकी ने इक़बाल के जीवन के इस महत्वपूर्ण अंग को एक आम आदमी के तौर पर समझने की कोशिश की और इस ड्रामे के द्वारा दुनिया को ये बताने का प्रयास किया कि वो महान कवि या दार्शनिक होने से पहले एक इंसान थे जिनके सीने में दिल धड़कता था।जो ऐसा जीवनसाथी की तलाश में था जो उसकी भावनाओं को समझें, उस से प्रेम करे।
इक़बाल के जीवन पर आधारित इस ड्रामा में कुल सात दृश्य सम्मिलित हैं।इस ड्रामा में इक़बाल के जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण व्यक्तिओ को दर्शाया गया है।जिन में उनकी तीनों पत्नियों के अतिरिक्त इक़बाल का नोकर अलिबख़्स,उनके दोस्त अब्दुल क़ादिर सरवर, बशीर हैदर, शेख गुलबुद्दीन वकील, डाकिया,मिसिज़ डोरस,इक़बाल के बच्चे आफ़ताब ,मुनीरा और जावेद।
ये ड्रामा सरदार बेग़म के स्कूल के दृश्य से शुरू होता हैं और इक़बाल की मौत पर खत्म होता है। इस दौरान इक़बाल के जीवन मे घटित सभी महत्वपूर्ण घटनाओं को इस ड्रामे में बड़ी सुंदरता से दर्शया गया है जो देखने और पढ़ने योग्य हैं।
इस ड्रामे का ये मंज़र देखिये जब इक़बाल कहते है कि..
” मुठ्ठी भर रेत बटोरी थी मैने……… सोचा था मेरी मुठ्ठी में उजले , चमकीले रेत के रेशे क़ैद हैं……… उंगलियों के पोरो से जाने कब बह गई वह रेत पता ही ना चला ……. जब मुठ्ठी खोली तो कुछ नही था। ( पेज़ 7)
अल्लामा इक़बाल एक शायर से पहले एक इंसान थे , इस ड्रामे में उनके आम इंसान के उसी आम दर्द को पेश करने की कोशिश की गई है जो क़ाबिल ए तारीफ हैं।
मेरे ख्याल से इक़बाल को इस नज़रिये से समझने और उन्हें इस अंदाज में कागज पर उतारने की ये पहली कोशिश हैं।इक़बाक के जीवन पर आधारित दुनिया का पहला ड्रामा लिखने पर मैं सलेहा सिद्दीकी की हिम्मत की दाद देता हूँ और उनको बधाई भी देता हूँ। उम्मीद है इस ड्रामे का लोग खुले दिल से स्वागत करेंगे ।