दिल में बस कर कोई गया ही नहीं
दिल से बेहतर कोई जगह ही नहीं
मुझको मंजिल मिलेगी फिर कैसे
दशत में तेरा नक्श प ही नहीं
जिसमें उल्फत की कुछ झलक होती
वह इशारा कभी किया ही नहीं
जिसको अपने क़रीब समझा था
वह मिरे काम का तो था ही नहीं
बात करने से फायदा क्या है
दिल को जब आइना किया ही नहीं
हाल दिल हम बयान किया करते…
हमसे इज़हार हों सका हीं नहीं
कोई देना ख़बर तो उसकी मूझे
सच है अंजुम वह फिर मिला ही नहीं