नफ़रत ही रह गयी है मुहब्बत चली गयी
घर से हमारे रूठ के बरकत चली गयी
हम भी ख़ुशी के नाज़ उठाते कहां तलक
अच्छा हुआकि घर से मुसीबत चली गयी
दो भाइयों के बीच की नफ़रत न पूछिए
घरसे निकल के बात अदालत चली गयी
अच्छाथा हम ग़रीबथे इन्सानियत तो थी
ग़ुरबत से जान छूटी शराफ़त चली गयी
दौलत का ये ग़ुरूर भी कितना अजीब है
दस्तार बच गयी तो रियासत चली गयी
ख़ंजर चला न ख़ून का दरिया बहा कोई
नज़रोंसे क़त्ल करके क़यामत चली गयी
आवाज़अपनेदिलकीमैंसुनताभीकिसतरह
दुनिया के शोरगुल में समाअत चली गयी
* पटना सिटी, मोबाइल नं – +919334317135