पल भर में बरसों का रिश्ता तोड़ दिया
पत्थर दिल ने आख़िर शीशा तोड़ दिया
देख के उसको फिर दानिस्ता देख लिया .
एक लग़्ज़िश ने मेरा रोज़ा तोड़ दिया
शायद उसकी फ़ितरी ग़ैरत जाग उठे
हमने इक साइल का कासा तोड़ दिया
झूट में आख़िर इतनी ताक़त क्यूँ आयी
इक सा’अत को सच का लहजा तोड़ दिया
अपनी इस जुर्रत पर हैरत है मुझ को
ख़्वाब में मैंने, तुझ से रिश्ता तोड़ दिया
दानिस्ता-जान बूझ कर
लग़्ज़िश-चूक ,भूल ,ग़लती
फ़ितरी- स्वाभाविक ,हक़ीक़ी
ग़ैरत-आत्मसम्मान
साइल- भिकारी, मंगता
कासा -प्याला
सा’अत-पल ,लम्हा,क्षण
जुर्रत-हिमत , दिलेरी
रईस सिद्दीक़ी
पूर्व आई.बी.एस.अधिकारी दूरदर्शन / आकाशवाणी
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