इश्क़ में नार हुए जाते हैं
और गुलज़ार हुए जाते हैं
ख़ुद से इन्कार हुए जाते हैं
तेरा इज़हार हुए जाते हैं
जब से आया हूँ गली में तेरी
यार अग़-यार हुए जाते हैं
अब तो निर्वान की सूरत निकले
जिस्म मिस्मार हुए जाते हैं
अपनी ज़ात रफ़ू कैसे करें
ज़ख्म सरशार हुए जाते हैं
रोज़ ही मौत जज़ा देती है
रोज़ ही वार हुए जाते हैं
रोशनी कोई इशारा कर दे
ख़ुद में हम ग़ार हुए जाते हैं