शाहरुख़ अबीर
दिल खिज़ाओं में भी फूलों की तरह होता है
जब तिरा ज़िक्र किताबों की तरह होता है
हुस्न की छाओं में गुज़रा हुआ एक इक ल्महा
धूप में सर्द हवाओं की तरह होता है
मुझ को जोगी ने सिखाया है अनोखा जादू
ये भी धोका तिरी आँखों की तरह होता है
तेरी पाज़ेब की झंकार से होता है गुमां
हर कोई वज्द में मस्तों की तरह होता है
चन्द ल्महों में बदल जाता है ग़म का मोसम
ज़ीस्त का खेल खिलोनो की तरह होता है
बात सुन दश्त में ऐ ख़ाक उड़ाने वाले
एक दिन शहर में सदयों की तरह होता है