मुजाहिद चौधरी एडवोकेट
हसनपुर, अमरोहा
उ.प्र.शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन वसीम रिज़वी द्वारा कुरान पाक की कुछ आयतों पर भड़काऊ होने का आरोप लगाते हुए सर्वोच्च न्यायालय में जो याचिका प्रस्तुत की गई है । देशभर में उसका भरपूर विरोध हो रहा है और यह विरोध जायज़ है । वसीम रिजवी को कुरान पाक का विरोध करने और इस तरह की याचिका डालने का कोई नैतिक, धार्मिक अथवा संवैधानिक अधिकार नहीं है । और ना ही सुप्रीम कोर्ट को इस प्रकार की याचिकाओं की ग्राहय्ता अथवा उस पर निर्णय देने का कोई संवैधानिक अधिकार प्राप्त है । निश्चित तौर पर यह आस्था, विश्वाश और एक धर्म का अंदरूनी मामला है । इसमें किसी भी तरह के हस्तक्षेप/संशोधन/निर्देशन अथवा न्यायिक हस्तक्षेप/कार्यवाही की न तो कोई आवश्यकता है और ना ही स्वीकार्य है । ना ही देश और दुनिया की कोई एजेंसी या न्यायालय इसके लिए अधिकृत हैं । हमारी नमाज़ या पूजा करने का तरीका क्या होगा, हम अपनी पूजा या नमाज के अंदर क्या पढ़ेंगे ? हम क्या दुआ मांगेंगे ? कुरान में क्या लिखा है, वेद और पुराण में क्या लिखा है ? गीता और बाइबिल में क्या लिखा है,गुरुबाणी और तौरैत में क्या लिखा है, ज़ुबूर क्या कहती है ? इसका फैसला कोई न्यायालय, संस्था सरकार अथवा कोई व्यक्ति नहीं कर सकता । जिसको इन धार्मिक किताबों को नहीं मानना है,वह ना मानने के लिए स्वतंत्र हैं । लेकिन वह अपनी इच्छा अनुसार किसी धार्मिक ग्रंथ में कोई संशोधन कराने का अधिकार नहीं रखता । हालांकि संविधान नागरिकों की धार्मिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है और देश के नागरिकों को अपने धर्म को अपनी इच्छा से मानने का अधिकार प्रदान करता है । यह याचिका धार्मिक अधिकारों के स्पष्ट उल्लंघन और संविधान के उल्लघन का मामला भी है । कुछ व्यक्तियों द्वारा इस याचिका का समर्थन भी निंदनीय है । सवाल यह है कि यदि कोई ईसाई बाइबल में कोई हिंदू समाज का व्यक्ति पुराण, उपनिषद,वेदों या रामायण में अथवा कोई सिख गुरूबाणी में संशोधन अथवा उसके किसी खंड को हटाने की मांग करता है । तो क्या उसका भी समर्थन ऐसे ही किया जाएगा ? समाज के प्रत्येक वर्ग,मजहब, जाति के व्यक्ति को इस प्रकार के कुप्रयासों की निंदा करनी चाहिए और कड़ा विरोध करना चाहिए । सर्वोच्च न्यायालय में भी इस याचिका के विरुद्ध कड़ा प्रतिवाद करना चाहिए और अधिक से अधिक संख्या में पक्षकार बन कर इसका विरोध करना चाहिए । साथ ही ऐसे तुच्छ,विनाशकारी और स्वार्थी सोच वाले व्यक्ति के विरुद्ध अलग से भी देश के विभिन्न न्यायालयों में धार्मिक मामलों में अवैध हस्तक्षेप करने,धार्मिक भावनाओं को भड़काने,शांति व्यवस्था भंग करने, आपसी वैमनस्य को बढ़ावा देने आदि संबंधित धाराओं के अंतर्गत कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए । लेकिन देश हित में स्वयं शांति व्यवस्था और कानून को चुनौती वाले बयान देने से बचना चाहिए । देश में सजा देने का काम नागरिकों को नहीं बल्कि न्यायालयों को प्राप्त है । तो देश के सभी समाजों विशेषकर मुस्लिम समाज के नेताओं, बुद्धिजीवियों और उलमाओं विशेष तौर पर अधिवक्ताओं को कानून सम्मत तरीके से,शांति पूर्वक,कानून की सीमाओं का सम्मान करते हुए पुुुरजोर विरोध करना चाहिए । और जो नागरिक किसी कारणवश स्वयं इस कुप्रयास का विरोध करने में सक्षम और समर्थ नहीं हैं,तो उन्हें ऐसे कुप्रयासों का समर्थन भी नहीं करना चाहिए । किसी भी कानून को किसी भी न्यायालय को किसी धर्म विशेष के ग्रंथों में संशोधन,किसी आयत किसी सूरत अथवा खंड के निष्कासन का कोई विधिक अधिकार प्राप्त नहीं है । यदि इस याचिका को ग्राहय कर सुनवाई का अवसर प्रदान किया गया तो निश्चित तौर पर देश के न्यायालयों में इस प्रकार की याचिकाओं की बाढ़ सी आ जाएगी । वसीम रिजवी जैसे व्यक्ति की याचिका प्रथम दृष्टया अनावश्यक,प्रसिद्धि एवं प्रचार हेतु तथा व्यक्तिगत स्वार्थ तथा राजनीतिक लाभ हेतु प्रस्तुत की गई है और निश्चित तौर पर बिना सुनवाई निरस्त होने योग्य है । हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय में तथा देश के अन्य न्यायालयों में भी विद्वान न्यायाधीश मौजूद हैं ।जिन पर सभी धर्म,जाति,वर्ण और वर्ग के नागरिकों को पूरा विश्वास और आस्था है कि वह निश्चित तौर पर इस प्रकार के संविधान विरोधी, देश विरोधी, धर्म विरोधी और शांति विरोधी प्रयासों को सफल नहीं होने देंगे । वसीम रिजवी जैसे स्वार्थी मानसिकता वाले व्यक्तियों को यह अवश्य जान लेना चाहिए कि मुस्लिम समाज देश हित में,शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए कानून कानून का पूरा सम्मान करता है । परंतु यदि उनके ईमान पर,उनके कुरान पर, उनके नबी पर उनके रसूल पर और उनके मजहब पर कोई आंख उठाएगा, कोई विरोध करेगा तो उसका पुरजोर विरोध करने की हिम्मत, ताकत और हौसला समाज के प्रत्येक व्यक्ति में है,देश के सेकुलर ढांचे में है,देश की संवैधानिक व्यवस्था और परंपराओं में है,हमारी गंगा जमुनी तहजीब में है और देश के न्यायालयों में है ।
और जब खुद कुरान में अल्लाह ताला फरमाता है,
इन्ना नहनू नज़्ज़लनज़ ज़िकरा वा इन्ना लहू लहाफी़ज़ून- बेशक हमने ही कुरान नाजि़ल किया और हम ही तो उसके निगेहबान भी हैं । कु़रान सिर्फ एक आसमानी किताब ही नहीं,दुनियाभर के करोड़ों मुसलमानों के दिलों में महफूज़ अल्लाह ताला का फ़रमान है,जो रहती दुनिया तक इसी तरह का़यमो दायम और महफूज़ रहेगा ।