एस. टी. एस. स्कूल (मिंटो सर्किल) ए.एम.यू.,अलीगढ़.
अगर आप घूमने के शौक़ीन हैं तो आपको एक बार हाजीपुर का रुख जरूर करना चाहिये। किसी भी शहर की खास पहचान उसके इतिहास, कला एवं संस्कृति से सहज ही लगाया जा सकता है। बिहार की राजधानी पटना से सटे गंगा और गंडक के संगम पर बसा एक शहर है हाजीपुर । बस यूँ समझिए कि पटना और हाजीपुर के बीच ‘महात्मा गांधी सेतु’ है।
ऐसा कहा जाता है कि गयासुद्दीन तुगलक के एक गर्वनर (बिहार) अबुल मुजफ्फर हाजी शम्सुद्दीन इलियास शाह (1345-58 ई०) ने दो शहर बसाए हाजीपुर और शम्सुद्दीनपुर (अब, समस्तीपुर)। हाजी इलियास द्वारा बनाया गया रंगमहल और ‘शीशमहल जिसे हम ‘अन्दर क़िला’ कहते हैं शायद ही किसी को याद हो। किले के दक्षिण में क़नाती मस्जिद या ईदगाह के निशानात आज भी देखे जा सकते हैं। वर्तमान में हाजीपुर, वैशाली जिला का मुख्यालय है, जो 1972 ई0 में मुजफ्फरपुर से अलग होकर एक नया जिला बना था।
कही- सुनी कहानियां
कहा जाता है कि शहर के उत्तर में ‘अनवार खाँ’ की सराय थी, जहाँ आज हाजीपुर रेलवे स्टेशन है, (आज भी अनवारपुर नाम से एक मोहल्ला है, जिसे आम बोलचाल में अनवरपुर कहते हैं )। हाजीपुर की बनी ‘हाथी दाँत की चटाई और काँच की चूड़ियाँ प्रसिद्ध थी। जो अब लुप्त प्रायः हो चली है हाजीपुर में दो मोहल्ले चूड़ियों के थे। एक मस्जिद के पास ‘चूड़ीहाड़ा मोहल्ला’ और दूसरा मवेशी अस्पताल के पास पश्चिम की तरफ ‘जौहरी मौहल्ला’ था। ऐसा कहा जाता है कि हाजीपुर की मिट्टी की सुराही भी प्रसिद्ध थी। जिसकी मिट्टी साल भर में तैयार की जाती थी।
हाजीपुर अमीरों या रईसों का भी गढ़ हुआ करता था। उसी में एक रईस ‘शेख़ साहब’ भी थे जिनकी पालकी सोलह कहारों की हुआ करती थी। हाजीपुर के रईसों के कहानियों में एक कहानी यह भी है। एक कश्मीरी व्यापारी केसर के बोरों से लदे हुए दस ऊँट लेकर कश्मीर से चला और दिल ही दिल में यह ठान लिया कि यह सारा केसर किसी एक ही रईस को देंगे और कीमत में सिर्फ एक सन ई0 का रुपया लेंगे। व्यापारी कश्मीर से पटना पहुँच गया मगर दोनों शर्तों पर कोई खरीदार नहीं मिला। आख़िरकार हाजीपुर के एक रईस ‘मीर साहब’ ने उस व्यापारी के शर्तो के अनुसार सारा केसर खरीद लिया और बन रहे मकान की नींव में सारा केसर डाल दिया। इससे हाजीपुर की सम्पन्नता का अन्दाजा सहज की लगाया जा सकता है।
सांस्कृतिक विरासत
यह शहर जैन, बौध, हिन्दुओं के साथ-साथ सूफी परम्परा का भी द्योतक है। हाजीपुर की ‘जामी मस्जिद हाजी इलियास द्वारा निर्मित है, कोनहरा (कौन हारा?) के समीप एक नेपाली मन्दिर भी है। जो नेपाली सेनाधिकारी ‘मातवर सिंह थापा’ द्वारा बनाया गाया था। इसी मस्जिद के पूरब एक मुस्लिम संत ‘हज़रत अब्दुल’ की मज़ार भी है। आप हाजीपुर रेल स्टेशन के समीप स्थित गांधी आश्रम भी जा सकते हैं। यहाँ गांधी जी के स्वतंत्रता संग्राम के समय उनकी हाजीपुर की यात्रा से जुड़ी स्मृतियाँ भी देख सकते हैं। यदि आप चाहें तो जढुआ स्थित हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक ‘मामू-भांजा का मज़ार’ भी देख सकते हैं। इसके अलावा रामचौरा मंदिर, पातालेश्वर स्थान, भुईयाँ स्थान के भी दर्शन कर सकते हैं।
हाजीपुर से सटे सोनपुर (सारण) अपने प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र मेला (स्थानीय लोगों में छत्तर मेला के नाम से प्रसिद्ध है) के लिए विश्व विख्यात है। इस मेले के सम्बन्ध में सर जॉन हॉल्टन ने अपनी पुस्तक ‘बिहारः द हार्ट ऑफ इण्डिया’ में लिखा है – “यह भारत के पशुओं, घोड़ों और हाथियों का मुख्य बाजार है” यह मेला भले ही पशु मेला के नाम से विख्यात है लेकिन इसके बारे में प्रचलित है कि यहाँ सुई से लेकर हाथी तक की खरीदारी कर सकते हैं। वर्ष 2003 में पशु-पक्षियों की बिक्री पर प्रतिबन्ध के कारण अब मेले की रौनक थोड़ी फीकी हो गयी है अब तो शायद अनन्त सिंह के हाथी और लालू प्रसाद के घोड़े के भी दर्शन भी दुर्लभ हो जायें। हाँ, लोक-कला के नाम पर मनोरंजन देखने को जरूर मिल जायेंगे।
वैशाली महोत्सव
विश्व की प्रथम गणतंत्र, महात्मा बुद्ध एवं भगवान महावीर की धरती वैशाली की अपनी ऐतिहासिक पहचान रही है, प्रतिवर्ष वैशाली महोत्सव का आयोजन भगवान महावीर के जन्म दिवस पर मनाया जाता है। इस राजकीय उत्सव में देश भर के संगीत और कला प्रेमी भाग लेते है। “वैशाली महोत्सव” के दौरान आप अशोक स्तम्भ, अभिषेक पुष्करिणी, विश्व शांति स्तूप, मीरा साहब की मज़ार भी घूम सकते हैं इसके अलावा चौथी शताब्दी में गुप्त वंश द्वारा निर्मित,कम्मन छपरा स्थित शिव को समर्पित ‘चौहूमुखी महादेव मन्दिर’ के दर्शन का आनन्द भी ले सकते हैं। मैं पहली बार यहाँ वर्ष 2010 ‘सेंट जेवियर स्कूल’ (मुजफफरपुर) की ओर से गया था, प्रभू की कृपा रही अब आना जाना लगा रहता है।
स्वादिष्ट केले
ह्वेनसांग (चीनी बौद्ध भिक्षु) जिसने फयीशीली (वैशाली) के सम्बंध में लिखा है यहाँ कि भूमि उत्तम और उपजाऊ है, फल और फूल बहुत अधिक होते हैं, विशेषकर आम और मोच (केला), तथा लोग इनकी कद्र भी बहुत करते हैं I हाजीपुर अपने विशिष्ट प्रकार के केलों के लिये भी जाना जाता है। ‘मालभोग’ और ‘चीनिया’ केलों का क्या ही कहना, स्वाद लेना है तो हाजीपुर पधारिए I राजेन्द्र चौक स्थित वर्षों पुरानी ‘पातालेश्वर मिष्ठान भण्डार’ के काजू बर्फी की बात ही अलग है। यदि आप जहाज में बैठकर नाना प्रकार के व्यंजनों का आनन्द लेना चाहते हैं तो बागमली (बाग इमाम अली) के ‘माय फर्स्ट फ्लाइट रेस्टोरेन्ट’ भी जा सकते हैं। इसके अलावा राजेन्द्र चौक से पासवान चौक तक पान, सत्तू , लिट्टी-चोखा, समोसा-कचौड़ी, दही-चूड़ा, गांजा (एक प्रकार की मिठाई) पूड़ी-सब्जी, लांग-लत्ती की छोटी-छोटी दुकानें आपको अपनी तरफ आकर्षित करेंगी। हाजीपुर की शीरनी वाली ‘खजली’ अब तो गुलर के फूल हो चले है।
औद्योगिक नगरी
राम विलास पासवान (1946-2020) का यह शहर आज अपनी पहचान औद्योगिक नगरी के रूप में बना चुका है। यहाँ मुख्यतः लघू उद्योगों का विकास हुआ है जिनमें फर्टिलाइजर,प्लास्टिक, टिम्बर, खादी ग्राम उद्योग एवं पॉलिट्री उद्योग प्रमुख है। हाजीपुर को बिहार की इलैक्ट्रॉनिक नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यह शहर पूर्व मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है। 1998 में बना होटल प्रबन्ध संस्थान (I.H.M.) जो युवाओं को शिक्षा एवं रोजगार के लिये अपनी ओर आकर्षित करता है। औद्योगिकरण के चलते सड़के सिकुड़ती और शहर फैलता जा रहा है फिर भी राजधानी पटना से सटे होने का जितना फ़ायदा इसे मिलना चाहिए वह नहीं मिला। यह शहर उपेक्षित जरूर है पर निराश नहीं। चलते-चलते बस इतना ही:
ख़ामोश शहर की चीख़ती रातें।
चुप हैं, पर कहने को हज़ार बातें
(अज्ञात)