हिन्दी अनुवाद :शहला प्रवीण
बात शिक्षा की है तो यह दो प्रकार के काम होते हैं। पढ़ना भी पढ़ाना भी। दोनों एक दूसरे की पूरक हैं। शिक्षित लोगों को पढ़ाने की इच्छा, और पढ़ने वालों को पढ़ने की इच्छा। अतः इन दोनों बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
धर्म की भारी व्यसकता के कारण शिक्षा का उचित क्रम नहीं है। इसलामी निशानियों और संस्कृति व इतिहास से संबंधित एक दूसरे को बांध रखें। इसकी आवश्यकता स्कूल के स्तर के बाद माध्यमिक व उच्च स्तर तक होती है। और यहां अधिक बड़ा रिक्त हैं। वर्तमान समय के टेक्नोलॉजी की सहायता से शिक्षा की दूरी अलग अलग तरीके से इसकी आवश्यकता की ओर कदम बन सकते हैं।
लेकिन बात अभी पढ़ने और उस परिवारों की है जो शिक्षा से जुड़े हुए हैं। ऐसे परिवार हर शहर में बसे हुए हैं, तो यह चिंता हर परिवार को करना होगा कि वहां यह शिक्षा पहुंचे, और नए बच्चे अपने धर्म, संस्कृति और सभ्यता को समझ लें। और आधी अधूरी नहीं ठोस और पूरी उत्तेजना के साथ जाने। यह जानकारी पहले भी आवश्यक थी और अब भी आवश्यक है। और अब नहीं जाने तो जीवन क़दम क़दम पर मुश्किल होगी और अज्ञानता अनगिनत हानियां जन्म देंगी। वहीं की फिर आरोप और अपमानित किए जाने की घृणा, और हिंसा की ललकार होगी और नए आने वाली पीढ़ियां घृणा और अपमानित की शिकार होगी, तो क्या हम अपने नए आने वाले पीढ़ियों को बेबसी में बसने और अपमानित जनक बनाने के लिए तैयार हैं? तो हम अपने परिवार व यात्रा के साथी को देखें, अपने बच्चों और अपनों के बच्चों को देखें उच्च शिक्षा व्यवस्था से उसे शिक्षाओं से जोड़ें। यह शिक्षा ही उस परिश्रम के फल को मीठा और जीवन को सुखमय और सुंदर बनाएगा। हम पढ़ना चाहेंगे तो पढ़ाने वाले आते जाएंगे। कहते हैं न कि आवश्यकता आविष्कार की मां है। तो पढ़ने वालों की आवश्यकता पढ़ाने वालों का उत्साह बढ़ाएगा। प्रणाली निकलेगी और परिणाम आएगा। फिर सामाजिक मीडिया के चैनल द्वारा दूर से शिक्षा का कार्यक्रम, बाहरी कार्य और सही समय के उपयोग से इस शिक्षा को आसान बनाएगी। आवश्यकता को वास्तविकता में सांचा जाएगा फिर यही समय के आधार पर संसार की भाषाओं और संस्कृतियों की पहचान होगी, तो हम यह कार्य विचार कर के कर सकते हैं।
परिचित रहिए की निम्न स्तर से उच्च स्तर तक शिक्षा आवश्यक होगी तब ही सशक्त और जागरूक शिक्षा प्राप्त होगी। तब ही असत्य पर रोक और सत्य को शक्ति प्राप्त होगी और तब ही सर उठा कर जीने की गुणवत्ता मिलेगी। और यही स्वर्ग के प्राप्ति का संकेत बनेगा। तो इस बात पर जितना विचार करें उतना ही अच्छा परिणाम निकलेगा। कच्चा तो कच्चा पक्का तो पक्का।
अपने बच्चों को पढ़ाईऐ और स्वंय भी पढ़िए। घर घर पढ़ाइए , और पढ़ने वालों की बढ़ती इच्छा पढ़ाने वालों को हर ओर से बुलाएगी और हर राह में पढ़ने का वातावरण बनाएगी।
हम पढ़ेंगे, हम बढ़ेंगे। सब पढ़ेंगे सब बढ़ेंगे।