ट्रेन की खिड़की से बाहर……..परतापुर स्टेशन लिखा है। परता…..पुर…..। गले में लिपटे स्कार्फ का कोना सिर पर ढक लिया मैंने। अब यहाँ से आगे देहरादून नहीं जा सकूँगी। एक अदद सफरी बैग के साथ मैं अपने परतापुर स्टेशन पर उतर गई। दूर कहीं आवाज़् आई….. ‘‘बेबी बेटा….सलाम….! लाइए सामान।’’ मैंने मुड़कर देखा, वहाँ रिक्शे वाले चाचा रफीक़ नहीं थे। सामने बैटरी रिक्शा वाले लाइन से खड़े थे। ‘‘भैया मोहल्ला क़ाजि़्ायान…।’’ बालों में धारीदार कटिंग और गले में नारंगी तिकोना रुमाल बांधे चमकदार काले रंग वाला नौ उम्र रिक्शा ड्राइवर मेरे बताए पते पर मुँह बिगाड़ने लगा। ‘‘सरकार हुसैन का बड़ा घर।’’ उसका मुँह ऐसे ही बिगड़ा रहा। नए ज़्ामाने के फैशनेबल बैटरी रिक्शा वाले हम पुराने ख़ानदानों से बिल्कुल जानकार नहीं। ‘‘ऊँचे बाज़ारों , पुरानी चुँगी के सामने।’’ उसकी नज़रें अब सेल फोन में चिपक गईं। वह ऐयरफोन कानों में लगाए गानों के बोल बिगड़े मुँह में दोहराने लगा। मेरी तरफ नज़्र उठाए बग़ैर गर्दन हिलाते हुए उसने मुझे रिक्शा में बैठने का इशारा किया। बड़े घर से ज़्रा सा दूर ऊँचे बाज़ार के कोने पे मैं रिक्शा से उतर गई। हमारे घर का मेन दरवाज़् कभी बन्द नहीं होता था। लेकिन आज लकड़ी का भारी फाटक भिड़ा हुआ था….। कॉल बेल बजाने की ज़्रूरत नहीं थी। मैं भी इसी घर की सदस्य हूँ। फाटक के अन्दर पापा की पुरानी कार की क़बर कफ़न आढ़े मौजूद थी। नई होंडा मोटर बाइक शानो शौकत के साथ पापा के पुराने वेस्पा स्कूटर को शर्मिंदा कर रही थी। अन्दरूनी दरवाज़े के एक पट में स्टॉपर लग गया था और दूसरा पट पूरा खुला हुआ था। सामने डॉली….मेरे छोटे भाई की बीवी मेहराबदार ऊँचे दर के दालान में अम्मी की नमाज़् की चौकी पर बैठी नज़्र आई। उसका एक पैर पेडीक्योर के लिए पानी में डूबा था। स्टॉपर वाला दरवाज़े मेरे अन्दर क़दम रखते ही धड़ से बन्द हो गया। डॉली ने दूसरा पैर भी छप से पानी से भरे टब में डाल दिया। घुटनों तक खुली पिंडलियाँ और छोटा सा बग़ैर आस्तीन का पेटखुला टी-शर्ट पहने डॉली बेहयाई से मेरी तरफ़ सवालिया निशान सी देखती रही। एक नौजवान लाल सैंडो बनियान पहने फड़कती मछलियों वाले बाज़ुओं से उसकी बेदाग़ पिंडलियों से पैरों की उंगलियों तक मसाज करने में पूरे ध्यान से लगा हुआ था। ‘सलाम बाजी’ डॉली ने अपने बालों में जकड़े करलर्स छूते हुए कहा। वह उससे ज़्यादा बोल नहीं सकी क्योंकि उसके चेहरे पर मिट्टी के रंग का मास्क चिपका हुआ था। मेरी नज़्रें अम्मी के कमरे की तरफ घूम गईं। मैंने जैसे ही क़दम उस तरफ़ बढ़ाए। ‘पानी’ स्मार्ट मुलाजि़्ामा महंगे क्रिस्टल गिलास में पानी लिए तेज़्ाी से मेरे क़रीब आई। ‘‘अम्मी…..?’’ मैंने डॉली की सवालिया नज़्रों का जवाब दिया। डॉली ने सामन की कोठरी की तरफ आंखें घुमा कर इशारा कर दिया। क्रिस्टल गिलास में पानी पीने से ज़्यादा मुझे अम्मी को देखने की जलदी थी। सामान की कोठरी के टिमटिमाते बल्ब की रौशनी में अम्मी तुड़ी-मुड़ी मैले बिस्तर पर बैठी थीं। सामने ऊँचे मचान पर धूल में अटे जस्ती संदूक़ और ठुंसे बिस्तरबन्द अम्मी को देख रहे थे। दाईं तरफ कोने में तांबे की बड़ी पतीलियाँ एक के ऊपर एक अपने साइज़ के हिसाब से मीनार की शक्ल में रखी थीं। मेरी अम्मी इतनी छोटी सी कैसे हो गईं…? अम्मी का सेहतमंद चेहरा……अम्मी की मुस्कुराहट…..और अम्मी की रौबदार आवाज़्……अम्मी की शानदार शख़्सियत और अम्मी का सागवान का छपरखट। अम्मी का बड़ा सा रौशन बेडरूम, सब मेरे दिमाग़्ा में घूम गए। मैं अम्मी के पास उनके घुटने से लग कर बैठ गई। अम्मी के गोरे मुलायम हाथ…..अब बिल्कुल ख़ुश्क पंजों की शकल में उनकी ज़्रा सी गोद में रखे थे। अम्मी के भारी स्लेटी बाल उलझे हुए थे और माँग ख़ूब चौड़ी हो गई थी। ‘‘मुमानी जि़्ाद्दी हो गई हैं, आप ख़ुद ही देख लीजिए। न नहाती हैं, न ढंग के कपड़े, और न कमरे से बाहर आती हैं।’’ मेनीक्योर से चिकनी चमकती हुई कलाइयों में अम्मी के ठोस कंगन पहनते हुए डॉली अम्मी के मैले बिस्तर के पास आ गई। उसकी नाक में अम्मी की बड़ी सी लौंग थी। अम्मी के पीले चेहरे की झुर्रियों में ज़्र्दी गहरी होने लगी। अम्मी ने मुझे अब तक नहीं देखा था। मैं अम्मी के सीने से लग गई। गर्दन में खड़ी नोकदार हड्डियों के बीच अम्मी के दिल की कमज़ोर धड़कनें तेज़् हो गईं। मैंने अम्मी के पंजेनुमा हाथ की काली झुलसी हुई खाल पर अपनी हथेली रख दी। मोटी उभरी हुई नीली नसें अकड़ी हुई थीं। अम्मी की हरकत करती पुतलियाँ हाथ में घूमती तस्बीह के दानों की गिनती के साथ हिल रही थीं। ऊपर का होंठ बाईं तरफ से उठा हुआ था। सामने का इकलौता दाँत अभी था। ‘‘बाजी.! मुमानी, कान, नाक, हाथ सब नंगे रखती हैं।’’ अम्मी के नौरत्न टॉप्स अपने कानों में डालते हुए डॉली ने कहा। मुझमें हिम्मत नहीं थी अम्मी का चेहरा एक बार फिर देख सकूँ। ‘‘सोनी..! मुमानी को तैयार कर दो। आज कुछ दोस्तों को डिनर पर इंवाइट किया है’’ स्मार्ट मुलाजि़्ामा को हुक्म मिला। मैंने डॉली की दी हुई साड़ी सोनी के हाथ से ले ली। अम्मी के पंजों की काली खाल को रगड़ने में मुझे हर एक साँस को टुकड़ों में लेना पड़ा….. सूखे बालों की गांठे सुलझाने में दिल टूट-टूट गया। अम्मी डॉली की दी हुई आर्टीफीशियल सिल्क की साड़ी में ड्राइंगरूम के सेवेन सीटर सोफे पर बिठा दी गईं। भाई ने अम्मी के गले में सुर्ख़ गुलाब का हार पहनाया…. और डॉली ने सफेद गुलाब का। ‘‘डियर फ्रैंड्स….ये सफेद गुलाब मैंने ऑन लाइन मंगवाए हैं। हॉलैंड से इम्पोर्ट होते हैं और हाँ…….इस हार की क़ीमत यू एस डॉलर में पेड हैं।’’ ‘‘वाओ…..हाऊ लकी….ग्रान्ड मॉम….।’’ डॉली के फ्रैंड्स हैरत से अम्मी की ख़ुशनसीबी को तकते रह गए। पास रखी हुई बड़ी मेज़्ा गिफ्टस पैकिटों से लद गई। लेकिन….इन पैकिटों में अम्मी के इस्तेमाल के लिए कोई गिफट न था। फोटोग्राफर अम्मी को हिदायत देता रहा, कि पहले भाई के गाल सें गाल टच करें और फिर डॉली के गाल से गाल। सब दोस्तों ने कोरस में ‘हैप्पी मदर्स डे‘ गाया। अम्मी को बार-बार मुसकुराने को कहा गया, अम्मी ने हुक्म माना। इस वक़्त वे डॉली को जि़्ाददी बनकर नहीं दिखा रही थीं। अम्मी ने अपनी बहू को एक बहुत बड़ा सा ज़ेवर का डिब्बा दिया…..और भाई को पापा की ‘राडो‘ घड़ी। ‘हैप्पी मदर्स-डे‘ फिर से सबने ज़्यादा जोश से दो बार गया। डॉली ने अम्मी को मदर्स डे गिफट में महंगा डिशवॉशर दिया, क्योंकि अम्मी अब बर्तन साफ और जल्दी नहीं धो सकती हैं ना…. और भाई ने अम्मी को ऑटोमैटिक वॉशिंगमशीन दी…… क्योंकि अम्मी अब कपड़े बस रस्सी पर फैला सकती हैं। एक बार फिर ज़्बरदस्त चीख़ व पुकार के साथ ‘हैप्पी मदर्स-डे’ गाया गया। इस बार तीन तालियों के साथ। अम्मी की कांपती गर्दन में भारी फूलों के हार ऊपर नीचे धड़क उठे। अम्मी तमाशबीनों के इशारों पे मुस्कुराने लगतीं और उनके सिर पर हाथ रख के मुँह में दुआएँ पढ़ती जातीं, तालियाँ रुक नहीं रही थीं। अम्मी हमेशा से ही बहुत रहमदिल और बड़ी हस्सास रही हैं। पापा ने एक बार रास्ते में कार रोक कर अम्मी को और मुझे बंदरिया का तमाशा दिखाया था। बंदरिया का तमाशा जारी था। बंदरिया लोगों की फरमाइशें पूरी करती जा रही थी। अम्मी बंदरिया की आँखों में घिर आई बेबसी और शर्मिंदगी को देखकर पापा से नाराज़् हो गई थीं। अम्मी ने पापा का हाथ छुड़ाया था और सड़क की साइड में खड़ी कार में बैठ गई थीं। पापा बहुत देर तक अम्मी को मनाते रहे थे। इस वक़्त अम्मी की आँखों में……उसी बंदरिया की आँखें, वही बंदगी के शर्मिंदा साये लहरा रहे हैं………. अम्मी घर की मुखिया हैं। इसलिए जब तक सारे मेहमान नहीं बिदा हुए अम्मी सजी सजाई फूलों के हार गर्दन में डाले डाइनिंग टेबल की ऊँची कुर्सी पर बैठी रहीं और आधी रात को उनको डिनर दिया गया। उबली लौकी का भुर्ता और दोपहर की बासी चपाती। ‘‘दाँत पूरे नहीं हैं। ताज़ी रोटी से ज़्यादा आसानी से बासी रोटी चबा लेती हैं। इस वक़्त तो कैटर्स आए थे। कांटीनेंटल फूड्स नहीं हज़्म कर सकतीं. मुमानी का हाज़्मा कमज़ोर है।’’ डॉली ने अम्मी का दिया हुआ भारी भरकम ज़ेवर का डिब्बा खोल लिया और नीलम जड़ा नेकलेस अपने गले से लगाते हुए बताया। अम्मी को स्टील के धुंधले गिलास में पानी और तामचीनी के किनारे झड़ी प्लेट में डिनर दिया गया। ‘‘खाना गिराती बहुत हैं….सोनी…..इनके बिस्तर पर ही पुराना अख़बार बिछा दो जल्दी से।’’ डॉली सेट की अँगूठी उंगली में ज़्बरदस्ती डालने लगी। मेरी आँखों में भरे दर्द के सेहरा से रेत उड़ कर भाई की आँखों में जलन न पैदा कर दे इसलिए उसने मुझे देखे बग़ैर ही बताना शुरु किया….. ‘‘बाजी..! अम्मी को रोज़ा एक केला खिला देता हूँ। अम्मी की मच्छरदानी लगा देता हूँ।’’ अम्मी के हाथों और बाहों पर तनी मोटी नसों के जाल में मच्छरों के अनगिनत काले डंक भाई की ज़ूबान में चुभने में नाकाम थे। ‘‘बाजी..! मुमानी ने अपने पुराने ज़्माने के ढंग नहीं बदले। इंगलिश पढ़ती हैं लेकिन उर्दू अख़बार की जि़्ाद…..तीन अख़बार तो पहले से ही आते हैं इस पर से एक उर्दूू का और…..घर में जगह की तंगी की वजह से उर्दू अख़बार कैसे……. अब तो टी.वी. तक नहीं देख पातीं, आँखों में मोतिया उतर आया है, इन्होंने बताया ही नहीं। अब डॉक्टर ने कहा कि देर हो गई है…. ऑप्रेशन नहीं हो सकता।’’ ‘‘बाजी, आप तो ख़ूब जानती हैं कि इस उम्र में हाथ-पाँव जाम होने का ख़तरा रहता है। इसलिए इनके कमरे में नौकरों का गुज़्र नहीं। फिर एक बात और भी है कि ये नौकरों से बेजा मुहब्बत दिखाने लगती हैं जिससे वे कामचोर हो जाते हैं।’’ अम्मी दोनों में से किसी की किसी भी बात को सुन नहीं रही हैं। पैरों की एड़ियों में उखड़ी सूखी मुर्दा खाल नोचे जा रही हैं। ‘‘बाजी, तुमने तो साढ़े तीन साल से ऊपर हुआ एक पैसा नहीं भेजा अम्मी के लिए। कभी-कभी अम्मी के लिए कपड़े या खाने पीने का सामान भेज देती हो। तुमने ये नहीं सोचा कि मेरे और कितने ख़र्चे हैं। अरे कुछ दिन इनके साथ रहकर दिखाओ, हर वक़्त परेशान करती हैं। ये तुम्हारी भी तो अम्मी हैं।’’ अम्मी की एड़ी की उधड़ी खाल से ख़ून छलकने लगा। ‘‘और उस दिन…………तुमने मेरी मासूम डॉली को कितना हर्ट किया था…..वो रो-रो कर बेहोश हो गई थीं। तुम भी तो अम्मी के बाथरूम में गिरने की ख़बर सुनकर ही आई थीं ना। अब डॉली बाज़ार , घर के काम से ही गई थीं, अम्मी को क्या ज़्रूरत थी बाथरूम में जाकर भीगे कपड़े धोने की, बाहर ही धो लेतीं। डॉली नए ज़्माने की लड़की हैं। क्या हुआ अगर ग़्ारीब घर की हैं तो। अरमान हैं डॉली के दिल में। बाजी, अगर तुम उस दिन सारा इल्ज़ाम अम्मी के गिरने का डॉली के सिर पर न डाल देतीं तो……। तो मुझे इतना ग़ुस्सा न आता और मैं……मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हें यूँ इस घर से निकल जाने को न कहता। तुम बड़ी हो। अपनी ग़्लती मान लेतीं और डॉली से माफी माँग लेतीं…..अम्मी का तो ख़्याल किया होता।‘‘ यहाँ नहीं आईं तो कोई बात नहीं लेकिन इन साढ़े तीन साल में तुमने अम्मी को भी अपने घर न बुला कर रखा।’’ ‘‘मैं अगर छोटा हूँ तो अम्मी मेरे हिस्से में ही क्यों हैं ? तुम भी तो नौकरी करती हो, अम्मी का ख़र्च उठा सकती हो।’’ अम्मी की हल्की सी सिसकी निकली, अम्मी ने अपनी ऐड़ी की मुर्दा खाल को ज़्ाोर से खींच लिया। ‘‘बाजी, मैंने आपकी बदतमीज़ी को दिल से माफ किया। मेरा अल्लाह जानता है मैं साफ और बड़े दिल की मालिक हूँ। अब देखिए मुमानी से मुझे कितनी मुहब्बत है, आपको तो मालूम है। ये मेरी सगी मुमानी नहीं हैं फिर भी….मैं कितनी ख़िदमत करती हूँ इनकी।’’ ‘‘इस वक़्त भी मुमानी आपको न देख के बस मुझे ही एकटक देखे जा रही हैं।’’ अम्मी बेटा बहू के सफेद झूठ सुनकर गदली आँखों से उन्हें तक रही थीं। ‘‘रात में मुमानी वाशरूम जाती नहीं। डाइपर बीस रूपए का एक आता है, इसलिए रबड़ बिछा दी है। बिस्तर गीला कर लेती हैं। मुमानी को अपने पर खर्चा पसंद नहीं। सबसे सस्ती वाली दवा की गोलियाँ कहती हैं लाने को।‘‘ ‘‘अरे हाँ…….बाजी……। ये बची हुई गोलियाँ मैं मेडिकल स्टोर वाले से बदल कर अपना फेस वॉश ले आऊँगी। आप इनकी दवा का पर्चा रख लीजिएगा।’’ अम्मी के गले में पड़े फूल अब मुर्झाने लगे हैं। ‘‘बेबी आओ…..दादी को किस करो……..दादी को फिर एक बार विश करो। अब अगले साल ‘मदर्स डे‘ पर दादी यहाँ नहीं होंगी ना।’’ बेबी ने दादी के गाल पर चट से किस किया और ज़ोर से कहा। ‘दादी, हैप्पी मदर्स डे।’ अम्मी के गले में पड़े फूल कुछ और मुर्झा गए। मैंने अम्मी को कंधों से पकड़ लिया। वे लड़खड़ाए बग़ैर चल पड़ीं। ‘‘अरे हाँ…..स्वीट हार्ट…! मदर्स डे का सरप्राइज़्गि फट तो ले आएँ ज़्रा।’’ डॉली ने भाई को दौड़ाया। डॉली के ‘स्वीट हार्ट‘ ने ख़ाकी रंग की मैली से फाइल खोली और अम्मी ने डॉली की उंगली के इशारे वाली जगह पर साइन कर दिया। डॉली ने झुक कर अम्मी के माथे की गहरी लकीरों पर अपना गुलाबी गाल टच किया। ‘‘मुमानी फेमिनिस्ट हैं न बाजी। ये घर मुझे मदर्स डे पर गिफट दिया है। मां-बाप के मकान उनके बेटे, बहू और पोतों, पोतियों के ही तो होते हैं। मुमानी दुआओं में याद रखिएगा। बुज़ुर्गों र्की दुआओं की हम बच्चों को हमेशा ज़्रूरत रहती है।’’ डॉली की कमर में एक बांह और दूसरे हाथ से अपनी बेबी की कलाई पकड़े मेरा छोटा भाई मेन गेट के अन्दर ही खड़ा हाथ हिलाता रहा……….. सदर दरवाज़े के बाहर बैटरी वाला रिक्शा मिल गया। अम्मी के और मेरे रिक्शा में बैठने से पहले ही अम्मी की नेम प्लेट वाला बड़ा सा गेट बन्द हो गया। शुक्र ख़ुदा का बैटरी रिक्शा वाला नए ज़्ामाने का लड़का है। हमारे पुराने घराने को नहीं पहचानता। अम्मी के नाम की प्लेट को मैंने अपने स्कार्फ के कोने से साफ किया। और स्कार्फ के इसी कोने को अपने सिर पर ढक लिया। अम्मी की कांपती गर्दन में मुर्झाते सफेद इंपोर्टिड गुलाबों का हार मैंने उतार दिया। अम्मी ने अपनी गर्दन में सुर्ख़ गुलाबों वाला हार अपनी ठंडी और सूखी मुट्ठी में कसकर जकड़ लिया। अम्मी के कमज़ोर कंधे ज़ोर-ज़ोर से हिले। उनकी आँखों में गदला पानी रुका हुआ था। मैंने अम्मी की गर्दन में खड़ी हड्डियों के बीच भड़कती नसों पर अपना सिर रख दिया। अम्मी के बिल्कुल ख़ुश्क होंठ पहली बार फड़फड़ाए। ‘हैप्पी मदर्स-डे।’ बैटरी रिक्शा वाला अपने कानों में ऐयर फोन लगाए….. और हमारा रिक्शा स्टेश्न की तरफ़ चल पड़ा। ’’’
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