पटना: कृषि बिल पर जब से भाजपा की सबसे पुराने सहयोगियों में से एक शिरोमणि अकाली दल की एकमात्र केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने इस्तीफा दिया है, इसका प्रभाव बिहार विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ NDA में खासकर सीटों के बंटवारे पर देखा जा रहा है. एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस्तीफे की अगली सुबह शुक्रवार को बिहार के मुख्यमंत्री और के मुख्यमंत्री का चेहरा नीतीश कुमार के बारे में यहां तक कह डाला कि नीतीश बाबू जैसा सहयोगी हो तो कुछ भी संभव है. वहीं माना जा रहा है कि नीतीश और बिहार भाजपा के नेताओं के एक गुट के दबाव में अब केंद्रीय नेतृत्व लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान को गठबंधन से अलग करने के बजाय किसी भी शर्त पर अब साथ रखेगी.
अकालियों के सरकार से निकलने के बाद बिहार भाजपा के नेता मान रहे हैं कि सीटों के समझौते में नीतीश कुमार की चलेगी, क्योंकि फिलहाल उन्हें नाराज करने की स्थिति में भाजपा अब नहीं रही. भले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह कहें कि बिहार में मंडियों को खत्म करने वाले नीतीश बाबू पहले मुख्यमंत्री थे लेकिन यह भी सच है कि धान की खरीद का NDA शासन में कभी लक्ष्य नहीं पूरा किया जा सका हैं, जबकि कृषि और सहकारिता दोनों विभाग भाजपा के पास वर्षों से हैं. भले बिहार में यह मुद्दा नहीं बनता है लेकिन फिलहाल शिवसेना और अकाली दल की नाराजगी के बाद भाजपा जनता दल यूनाइटेड की नाराजगी नहीं झेल सकती. हालांकि उनका मानना है कि भाजपा अपने सहयोगियों को कैसे नीचा दिखाती है, इस कटु सच को जनता दल यूनाइटेड और नीतीश कुमार से बेहतर कौन जानता है.
जनता दल यूनाइटेड के नेताओं का कहना है कि BJP के साथ 2017 में सरकार बनाने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पटना विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में जैसे ही केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की नीतीश कुमार की मांग को खारिज किया, उसी दिन लग गया था कि नरेंद्र मोदी अपने सहयोगियों को कुछ ज्यादा भाव नहीं देते हैं. दूसरा प्रकरण लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद हुआ, जब नीतीश कुमार ने 40 सीटें बिहार से लोकसभा चुनाव में दिलाने के वादे के बाद 39 सीटों पर विजय के बाद संख्या के आधार पर जब मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी की मांग की तो पीएम मोदी ने उनकी इस मांग को भी खारिज कर दिया और नीतीश कुमार ने भी सांकेतिक रूप से मंत्रिमंडल में शामिल होने के न्योता को ठुकरा दिया था, लेकिन अब अकालियों के इस्तीफे के बाद भाजपा के पास सीटों के तालमेल में नीतीश कुमार की बातें मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.
भाजपा के पास नीतीश के अलावा अब चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी की शर्तों को मानने के अलावा कोई और चारा नहीं है. चिराग पासवान ने पांच दिनों पहले तक सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि सीटों के समझौते पर फिलहाल BJP के किसी भी नेता ने उनसे कोई बातचीत नहीं की है लेकिन अब BJP के नेता मानते हैं कि पहले से जो चिराग को अलग-थलग रखने की नीतीश कुमार की योजना पर बिहार भाजपा की एक प्रभावशाली नेताओं का गुट काम कर रहा था, इसको बदली परिस्थिति में प्राप्त करने के अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है. इन नेताओं का कहना है कि अगर चिराग बागी हो गए तो भले ही नीतीश कुमार और BJP मिलकर चुनाव जीत लें लेकिन कई राज्यों में दलितों के सेंटीमेंट पर उसका काफी प्रतिकूल असर पड़ेगा. इन नेताओं का कहना है कि पहले ही बिहार के दलित नेताओं ने सार्वजनिक रूप से यह बात कही थी कि कैसे BJP के 6 वर्षों के शासनकाल में दलित छात्र हो या सरकारी नौकरी में काम करने वाले दलित कर्मचारी, उनके हितों के खिलाफ फैसले आए हैं और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रह गई. इस पृष्ठभूमि में अब BJP के नेता कह रहे हैं कि उनको भी साथ लेकर चलना अब हमारी मजबूरी है.
(इनपुट khabar.ndtv.com)