मशहूर फिल्म निर्माता करण जौहर ने शनिवार को कहा कि हिंदी सिनेमा कभी-कभी झुंड में चलने की मानसिकता का शिकार हो जाता है, जहां फिल्म निर्माता कुछ नया करने के बजाय लोकप्रिय चलन वाली चीजों के पीछे भागने लगते हैं। जौहर एबीपी नेटवर्क के ‘भारत के विचार’ सम्मेलन में बोल रहे थे, जहां उन्होंने दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग के उदय और बालीवुड के लिए सीख पर चर्चा की।
जौहर (49) ने फिल्म आलोचक मयंक शेखर से बातचीत में कहा, ‘मैं अपने आप को भी उसी श्रेणी में रख रहा हूं, जब मैं कहता हूं कि हिंदी सिनेमा, मुझे लगता है कि कई बार हम झुंड में चलने की मानसिकता का शिकार हो जाते हैं।’ उन्होंने उदाहरण दिए कि कैसे ऐसी कहानियों की बाढ़ आ गई है जो या तो बायोपिक हैं या छोटे शहरों की कहानियां हैं। उन्होंने कहा, ‘मैंने भी ऐसा ही किया है। मैंने कई रास्ते नहीं बनाए। मैंने चलन का पीछा ही किया है। हिंदी सिनेमा में यही होता है। हम कई बार अपने विश्वास पर अड़े रहने का साहस खो देते हैं।’
जौहर ने कहा कि दक्षिण भारतीय फिल्म उद्योग पिछले कुछ वर्षों से फिल्में बनाने के अलग रास्ते पर चल रहा है। वह देशभर में रिलीज हुई एसएस राजमौली की फिल्म आरआरआर की बाक्स आफिस की कमाई से खासे प्रभावित नजर आए। उन्होंने राजमौली को ‘सबसे बड़ा भारतीय फिल्म निर्माता’ बताया।