रमज़ान के महीने में रोज़े रखना हर मुसलमान पर फर्ज़ है। जिसकी अदायगी के ज़रिए ख्वाहिशों को काबू में रखने का मक़सद पैदा होता है और यही तक़वे की बुनियाद है। हक़ीक़तन अगर ग़ौर किया जाए तो रोज़े फर्ज़ करने का मक़सद ही नफ़्स को का़बू में करने की तरग़ीब देना है। ताकि हम तक़वे की राहों पर चलकर मुक्तक़ी बन जाएं। इस वक्त मुल्क के हालाते जा़र से हम सब वाक़िफ हैं करोना नाम की वबा ने तमाम मुल्क को अपनी चपेट में ले लिया है जिसकी वजह से हर तरफ से दिल ख़राश मनाज़िर सामने आकर दिल को दहला रहे हैं। ना क़ब्रिस्तान में दफ़नाने के लिए जगह है ,न श्मशान में जलाने के लिए लकड़ी। खुदाया यह मेरे अज़ीज़ मुल्क और आलमे इंसानियत के लिए कैसी आज़माईश की घड़ी है। प्रदेश सरकार ने भी पूरे प्रदेश में इबादत गाहो में इकट्ठा होने पर पाबंदी लगा रखी है। कोरोना ने हर तरफ दहशत का माहौल तारी कर दिया है ,ऐसी अफ़रा-तफ़री के माहौल में अल्लाह करीम रोशनी के दर खोले हैं। अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने माहे रमज़ान का तोहफ़ा देकर हमको एक बार फिर मौक़ा दिया है कि हम इस महीने की बरकत और फजी़लतों के सदक़े तुफै़ल अपने गुनाहों की तलाफ़ी कर लें, अल्लाह रब्बुल इज्ज़त से इस वबा से निजात के लिए दुआएं करें कि अल्लाह करीम हमारे गुनाहों को बख्श दे , हम पर रहमत और बरकत के दरवाज़े खोल दे ,हम पर करम कर दे मौला , अल्लाह करीम ने अपने बन्दों से वादा किया है इस मुकद्दस महीने की दुआएं रद् नहीं करूंगा। यही वह बा बरकत महीना है जिसमें इंसान नेकियां हासिल करते हुए कमाल की मंजिल तक पहुंच सकता है । ख़ुश क़िस्मत हैं वह लोग जिनको एक बार फिर यह मुक़द्दस महीना नसीब हो रहा है। हमें अपनी खुशनसीबी पर अल्लाह शुक्र अदा करते हुए अल्लाह से बक्शीश की तलब करनी चाहिए। इसके साथ ही हमें अपनी जा़त का मुहासिबा भी ज़रूर करना चाहिए कि क्या वजह है कि इस वक्त अल्लाह करीम इस क़दर गुस्से और गज़ब में है? क्या हम अल्लाह करीम के बताए हुए तरीक़ा ए कार को इख्ति़यार किए हुए हैं? हम में से बहुत का जवाब होगा हां हम पांच वक्त नमाज पढ़ते हैं, क़ुरान के दो पारे रोज़ पढ़ते हैं, रोज़ा भी रखते हैं और यही इबादत है ।लेकिन अगर ग़ोर किया जाए तो क्या सिर्फ पांच वक्त सर को झुकाने का नाम ही इबादत है? कलाम पाक के दो पारों की रोज़ तिलावत का नाम ही इबादत है? कलाम पाक मोमिन पर नाजि़ल किया गया है उसकी रहनुमाई के लिए उसकी हिदायत के लिए लेकिन अगर हम कलाम अल्लाह की हिदायतों को ही ना समझें उससे रहनुमाई हासिल ना करें तो यह कैसी इबादत है ? इबादत के मानी फर्ज़े खुदा बंदी को बजा लाना है इन पर अमल करना है ।जो बात अल्लाह करीम फरमाए इसको अपनी जिंदगी में शामिल करना है और जिस बात को अल्लाह करीम मना फरमाए इनसे दूर रहना है। इबादत आजज़ी वा ताज़ीम की आखिरी हद का नाम है। अपने बीवी बच्चों का ख़्याल, अपने पड़ोसियों से मुहब्बत, अपने मातहतों और मजदूरों पर रहम , अपने बड़ो की अताअत, छोटों से अच्छा सुलूक और अच्छा मामला खुदा के हुकुम के मुताबिक हो ।अगर कोई इंसान यह मामला दुरुस्त नहीं रखता तो वह दिन रात भी इबादत करें तो यह इबादत मुकम्मल ना होगी। इस्लाम ख़ैर ख़्वाही भलाई और तक़वे का दीन है ,इस्लाम मोमिन को हुस्ने अख़लाक का हुक्म देता है, सबके साथ नेकी और अच्छी गुफ्तगू की तरग़ीब देता है ।इस्लाम की बुनियाद तालीम और आमाले सुआलेह और भलाई के कामों पर रखी गई है। आमाले सुआलेह को ईमान का हिस्सा बताया गया है। आमालेह सुआलेह के मानी हैं अच्छे आमाल और अच्छे इरादे। दुनिया और आखिरत की कामयाबी आमाले सुआलेह के बग़ैर मुमकिन नहीं। क़ुरान में सैकड़ों आयात में आमाले सुआलेह की तलक़ीन दी गई है । क्योंकि ईमान का समरह नेक आमाल ही हैं । अगर आपके दिल में लोगों के लिए नफ़रत है , आप हराम रोज़ी ही खा रहे हैं , आपके दस्तरखान पर दुनिया भर की नामतें सजी हैं और आपके पड़ोस में बच्चे भूखे बैठे हैं , वालदेन से बदसलूकी कर रहे हैं, तो क्या आप की इबादतें कुबूल होंगी। रमज़ान उल मुबारक नेकियों और बरकतों वाला महीना है ।यह नेक आमाल का महीना है , यह ग़म ख़्वारी का महीना है, लोगों के दिलों की सफाई का महीना है , लोगों की ज़रूरत पूरी करने का महीना है, सदक़ा खै़रात के करने का महीना है, गरीब और मसाकीन की मदद का महीना है , इसलिए बेवा और मज़दूरों का सहारा बनें, ग़रीबों की ज़रूरत को पूरा करें ,जिनके पास कपड़े नहीं है इन्हें कपड़े पहनाएं , बेवाओं का इलाज कराएं यतीमों की सरपरस्ती करें , मजदूरों का सहारा बने । तभी हमारी इबादतें सही मायनों में मुकम्मल होंगी और हम दीन के फ़र्ज़ को अदा कर सकेंगे।