कहाँ वो याद से अपनी रिहाई देता है
जहाँ भी देखूँ वही वो दिखाई देता है
सुना जो करता था आहट को दूर से मेरी
पुकारने पे अब कहां सुनाई देता है
कभी जो पूछती हूं मैं कहां थे तुम अब तक
ज़रा भी शक न हो ऐसी सफाई देता है
परख के देखना है इक दिन उसकी चाहत को
ज़बान से तो हमेशा दुहाई देता है
मैं चाहती हूं उसे बहुत खुशनुमा लेकिन
खुदा न जाने मुझे क्यों जुदाई देता है