नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को तीनों कृषि कानूनों पर मोदी सरकार को झटका देते हुए रोक लगाने का आदेश दिया। इसके साथ ही सरकार ने एक कमेटी का भी गठन किया, जोकि कोर्ट को कानूनों को लेकर रिपोर्ट देगी। इस कमेटी में बेकीयू अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के डॉ. प्रमोद कुमार जोशी और महाराष्ट्र के शेतकारी संगठन के अनिल धनवट हिस्सा होंगे। कमेटी के गठन के आदेश के बाद से ही समिति के सदस्यों पर सवाल भी उठने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट की बनाई कमेटी में कई ऐसे सदस्य हैं, जोकि पहले ही सरकार के कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। इनमें से कुछ ने कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात करके अपना समर्थन जताया था तो किसी ने कानूनों के पक्ष में बयान दिया था। हालांकि, इस बीच किसान नेताओं ने अभी स्पष्ट नहीं किया है कि क्या वे सरकार की बनाई कमेटी की बात की तरह कोर्ट की कमेटी का भी विरोध करेंगे या फिर उसके पास जाकर कानूनों की कथित कमियों की जानकारी देंगे। यहां हम आपको कमेटी के उन सदस्यों के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने कानूनों का समर्थन किया था…
कमेटी के सदस्य और बीकेयू के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान पहले कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। 14 दिसंबर को हरियाणा, महाराष्ट्र, बिहार, तमिलनाडु से किसानों ने कृषि मंत्री से मुलाकात की थी। उन्होंने कुछ संशोधनों के साथ कानूनों को लागू करने की मांग की थी। यह किसान संगठन ऑल इंडिया किसान कॉर्डिनेशन कमेटी (AIKCC) के बैनर तले कृषि मंत्री से मिला था। इसके अभी चेयरमैन भूपिंदर सिंह मान हैं। उस समय मान ने कहा था कि कृषि को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए सुधारों की आवश्यकता है। हालांकि, किसानों की सुरक्षा के लिए कुछ विसंगतियों को भी ठीक किया जाना चाहिए। इसके अलावा, मान ने कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर को पत्र लिखा था।इसमें उन्होंने कहा था, ”आज भारत की कृषि व्यवस्था को मुक्त करने के लिए पीएम नरेंद्र मोदीजी के नेतृत्व में जो तीन कानून पारित किए गए हैं, हम इन कानूनों के पक्ष में सरकार का समर्थन करने के लिए आगे आए हैं। हम जानते हैं कि उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में एवं विशेषकर दिल्ली में जारी किसान आंदोलन में शामिल कुछ तत्व इन कृषि कानूनों के बारे में किसानों में गलतफहमियां उत्पन्न करने की कोशिश कर रहे हैं।”
कमेटी के सदस्यों में एक शेतकारी संगठन के अनिल धनवट भी हैं। उन्होंने पिछले महीने कहा था कि केंद्र सरकार को कृषि कानूनों को वापस नहीं लेना चाहिए। हालांकि, किसानों की मांग को ध्यान में रखते हुए कुछ संशोधन करने चाहिए। संगठन के अध्यक्ष अनिल धनवत ने कहा था कि सरकार ने कानूनों को पारित कराने से पहले किसानों से विस्तार से बात नहीं की, जिसकी वजह से गलत सूचना फैली। उन्होंने कहा, ”इन कानूनों को वापस लेने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इसने किसानों के लिए अवसरों को पूरी तरह से बढ़ा दिया है।” वहीं, कमेटी के एक अन्य सदस्य अशोक गुलाटी ने इंडियन एक्सप्रेस में आर्टिकल लिख कहा था कि इन कानूनों का मतलब किसानों को अपनी उपज बेचने और खरीदने के लिए खरीदारों को अधिक विकल्प एवं स्वतंत्रता प्रदान करना है, जिससे एग्रीकल्चरल मार्केटिंग में कॉम्प्टीशन पैदा हो सके। यह प्राइवेट इन्वेस्टमेंट को प्रोत्साहित करेगा, जिससे बर्बादी में कमी और मूल्य के अस्थिरता को कम करने में मदद मिलेगी।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी के सदस्यों पर राजनैतिक दलों ने भी सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं। हालांकि, अभी तक किसी नेता का बयान नहीं आया है, लेकिन कांग्रेस ने ट्विटर हैंडल पर सवाल उठाए हैं। मध्य प्रदेश कांग्रेस ने ट्विटर पर लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी के सभी सदस्य पहले ही कृषि बिल का समर्थन कर चुके हैं। इसके अलावा, उसमें कुछ आर्टिकल्स और खबरों के लिंक हैं जोकि कमेटी के सदस्यों से जुड़े हुए हैं। ट्वीट में सरकार पर किसानों के साथ साजिश करने का भी आरोप लगाया गया है। वहीं, कोर्ट के आदेश के तुरंत बाद भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता और किसान नेता राकेश टिकैत ने भी कहा कि वे किसानों के साथ बातचीत करेंगे और कमेटी में कौन-कौन सदस्य शामिल हैं, इसके बाद ही आगे की रणनीति तय करेंगे।
(इनपुट .livehindustan.com)