कोई सिपाही नहीं बच सका निशानों से
गली में तीर बरसते रहे मकानों से!
यह बुर्दबारी अचानक से थोड़ी आई है
कलाम करना पड़ा मुझको बद’ज़बानों से!
तुम्हारे हाथ सलामत रहें तो शहज़ादे
यह शाल यूँही सरकती रहेगी शानों से!
हमारी राह में दीवार बन गए वह लोग
जिन्हें सुनाई नहीं दे रहा था कानों से!
तमाशे यूँही नहीं कामयाब हो जाते
मकीन खींच के लाए गए मकानों से!
बहुत से शे’र सुनाए हैं गुनगुना के मगर
यह जंग जीती नहीं जा रही तरानों से!