बस एक बार कहा ना, नहीं बना सकती
मैं रोज़ रोज़ बहाना नहीं बना सकती
तेरा ख़्याल मेरी रोटियां जलाता है
मैं इत्मीनान से खाना नहीं बना सकती
ज़रूर वो किसी आसेब की गिरफ़्त में है
मैं इस क़दर तो दीवाना नहीं बना सकता
सभी की तंग ख़्याली ने घर को बांट दिया
अकेली सोच घराना नहीं बना सकती
नए नए से ये अंदाज़ चुभ रहे हैं मगर
मैं तुम को फिर से पुराना नहीं बना सकती