अनुवाद: शहला प्रवीण, दिल्ली विश्वविद्यालय
कमरी हिजरी (चंद्र वर्ष) मुहर्रम के महीने से शुरू होता है, इस प्रकार, यह महीना धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है, लेकिन 10 मुहर्रम 61 हिजरी को हज़रत हुसैन बिन अली (RA) की निर्दोष शहादत के बाद, इस महीने को इस्लामी इतिहास में असाधारण महत्व दिया गया है।इस प्रकार इस्लाम का इतिहास शहादतों से भरा पड़ा है,हज़रत उमर बिन अल-खत्ताब, हज़रत उस्मान बिन अफ्फान, हज़रत अली बिन अबी तालिब, हज़रत हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब और महान सहाबा शहीद हुए।लेकिन उनकी शहादत के दिन को शोक (मातम) का दिन घोषित नहीं किया गया और महीने को अशुभ नहीं घोषित किया गया।इसके विपरीत, न केवल हजरत हुसैन की शहादत का शोक व्यापक रूप से मनाया जाता है, बल्कि मुहर्रम का पूरा महीना अशुभ समझ लिया गया है। यह इस तथ्य से परिलक्षित होता है कि इस महीने के दौरान कोई उत्सव, जैसे कि निकाह, इत्यादि आयोजित नहीं किया जाता है। निकाह एक धन्य कृत्य है। यह किसी भी महीने और किसी भी समय आयोजित किया जा सकता है। इसके लिए, कोई भी महीना श्रेष्ठ नहीं है और न ही किसी महीने को अशुभ माना जा सकता है।पैगंबर के समय में, कुछ लोग शव्वाल के महीने में शादी करना पसंद नहीं करते थे। उम्मुल-मुमिनीन हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहो अंहा ने इस दृष्टिकोण से इनकार किया। उन्होंने कहा “रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुझसे शव्वाल के महीने में निकाह किया और शव्वाल में ही मेरी रुखसती हुई” फिर बताओ आप की बीवियों में कौन है जो आपके नजदीक सबसे महबूब हैं ? कथा में कहा गया है कि हज़रत आयशा अपने परिवार की लड़कियों की शादी शव्वाल में पसंद करती थीं।(मुस्लिम: 1423)
यही नियम उन लोगों पर भी लागू होता है, जो किसी और महीने जैसे मोहर्रम में शादी नापसंद करते हैं, अल्लामा अबुल अब्बास कुर्तबी सही मुस्लिम (صحیح مسلم) में हजरत आयशा रजि अल्लाहुअंहा के कथन में लिखते हैं:
हमारे यहां के अनपढ़, जो मोहर्रम में निकाह को नापसंद करते हैं, यह भी उसी प्रकार के हैं। बल्कि मैं समझता हूं कि निकाह और विदाई (रुखसती) के लिए विशिष्ट रूप से मोहर्रम का महीना अपनाना चाहिए जो बहुत बरकत वाला है। क्योंकि अल्लाह और उसके रसूल ने इस महीने को पवित्रता के साथ महिमामंडित किया है। मुहर्रम में निकाह करके अनपढ़ को उनके मूर्खता से रोका जा सकता है।
(المفھم لما أشکل من تلخیص کتاب مسلم :124/4)
संक्षेप में, मुहर्रम के महीने को अशुभ मानना सही नहीं है। जिस तरह अन्य महीनों में सभी तरह के समारोह आयोजित किए जा सकते हैं, वैसे ही मुहर्रम के महीने में उन्हें आयोजित करने में कोई बुराई नहीं है।