नई दिल्ली:मुंशी प्रेमचंद की 140 वीं जयंती के दिन हंस प्रकाशन हिदी के सबसे बड़े प्रकाशन समूह राजकमल प्रकाशन समूह में शामिल हो गया है। 31 जुलाई हिदी-उर्दू की दुनिया में एक बहुत खास तारीख है। इसी दिन 140 साल पहले प्रेमचंद का जन्म हुआ था। बता दें राजकमल प्रकाशन की स्थापना 1947 में हुई थी और इन दोनों प्रकाशनों की प्रकाशन-नीति की बुनियाद प्रगतिशीलता ही रही है। ऐसे में यह हिदी के प्रबुद्ध समाज के लिए खुशी और सुकून की खबर है।
हंस प्रकाशन के राजकमल प्रकाशन समूह में विलय होने पर अमृतराय के सुपुत्र और विद्वान आलोचक-लेखक आलोक राय ने बताया कि सन 1948 में जब अमृतराय ने हंस प्रकाशन की स्थापना की तो उनकी उम्र 27 वर्ष थी। रगों में आंदोलन की गर्मी थी, आंखों में इंकलाब का सपना था। व्यावसायिकता की थोड़ी कमी जरूर थी, जिसकी पूर्ति प्रेमचंद के कॉपीराइट ने की। उसके बाद 1986 में एक धक्का जरूर लगा जिसके बाद दस साल तक माता-पिता ने प्रकाशन को चलाया। उनके जाने के बाद महेंद्र पाल सिंह व ननकू लाल पाल के सहारे चला था। अब संयोग से राजकमल प्रकाशन समूह में शामिल होकर, उम्मीद यही है कि हंस प्रकाशन जीवित होगा और फिर से फलता-फूलता दिखेगा।
वहीं, राजकमल प्रकाशन समूह के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने बताया कि समानधर्मा प्रकाशनों का संरक्षण बहुत सारी महत्वपूर्ण कृतियों को भावी पीढ़ी के लिए उपलब्ध कराने और गुणग्राही प्रकाशकों के कार्यो का सम्मान भी है। यह कई लेखकों की पाठक-समाज में पुन:वापसी का समय है।