नई दिल्ली:दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि प्राइवेट स्कूलों के पास पैसे की कोई कमी नहीं है बल्कि उनके पास जरूरत से ज्यादा फंड है। दिल्ली हाई कोर्ट ने प्राइवेट स्कूलों को एनुअल फी और डिवेलपमेंट फी में बदलाव की अनुमति दी थी जिसे सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सरकार ने शीर्ष अदालत के सामने दावा किया कि प्राइवेट स्कूलों के पास 1 करोड़ से 48 करोड़ रुपये तक ज्यादा फंड हैं।
हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई दिल्ली सरकार
दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) सरकार ने निर्देश दिया था कि कोविड-19 के कारण स्कूल पिछले साल से ही बंद हैं, इसलिए वो सिर्फ ट्यूशन फी ही वसूल सकते हैं, ऐनुअल और डिवेलपमेंटल फी नहीं। प्राइवेट स्कूलों के असोसिएशन ऐक्शन कमिटी ने इस निर्देश के खिलाफ दरवाजा खटखटाया तो अदालत ने ऐनुअल चार्ज वसूली पर लगा प्रतिबंध 31 मई से हटा दिया।
सुप्रीम कोर्ट को दी 35 स्कूलों की लिस्ट
दिल्ली सरकार हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई। वहां सरकार ने 35 स्कूलों की लिस्ट दी जिनके पास सरप्लस फंड होने का दावा किया गया। सरकार ने कहा कि लिस्ट में टॉप पर रहे वसंत कुंज स्थित दिल्ली पब्लिक स्कूल के पास तो 48 करोड़ रुपये का अतिरिक्त फंड है। इसका आकलन सत्र 2020-21 के लिए प्रस्तावित फी हाइक और सत्र 2021-22 के लिए अनुमानित फी हाइक के आधार पर किया गया है। इसी आधार पर कहा गया कि दिल्ली पब्लिक स्कूल के चार और ब्रांच के पास 11 से 34 करोड़ रुपये का सरप्लस है।
दिल्ली सरकार का दावा- प्राइवेट स्कूलों के पास सरप्लस फंड
जिन स्कूलों के पास 10 करोड़ से ज्यादा का सरप्लस होने का दावा किया गया है, उनमें एयर फोर्स बाल भारती, बिरला विद्या निकेतन, बाल भारती स्कूल के दो ब्रांच, मयूर विहार स्थित मदर मेरी स्कूल, संत मेरी सीनियर सेकंड्री स्कूल और अर्वाचीन भारती भवन सीनियर सेंकड्री स्कूल शामिल हैं। दिल्ली सरकार ने लिस्ट में शामिल बाकी स्कूलों के पास 1 से 9 करोड़ रुपये का अतिरिक्त फंड बताया।
ट्यूशन फी से जुटाई रकम ही खर्च नहीं हो पाती: सरकार
अरविंद केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आंकड़े गिनाते हुए कहा कि ज्यादातर स्कूलों ने ट्यूशन फी का 60% से भी कम हिस्सा शिक्षकों के वेतन पर खर्च किया है। सरकार ने कहा कि सैलरी, डीए, बोनस आदि के लिए ट्यूइशन फी लेने का प्रावधान है जबकि ऐनुअल फी उन खर्चों के लिए ली जाती है जिन पर ट्यूशन फी के मद से खर्च नहीं किए जा सकते। सरकार ने कहा कि चूंकि महामारी के कारण स्कूलों को खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रम नहीं करने पड़े, इसलिए उनसे जुड़े खर्च तो हुए ही नहीं। सरकार की दलील है कि जब स्कूलों ने खर्च ही नहीं किया तो उसे वसूली का हक कैसे है?
दिल्ली सरकार ने कहा कि ज्यादातर स्कूल ट्यूशन फी के रूप में प्राप्त आय का 40-50 प्रतिशत ही सैलरी एवं संबंधित मद में खर्च करते हैं। कुछ स्कूल इस मद में 70% तक खर्च कर देते हैं, फिर भी उनके पास बाकी खर्चे निपटाने के लिहाज से पर्याप्त फंड बच जाते हैं। उसने कहा कि लॉकडाउन में डिवेलपमेंट भी का भी उचित उपयोग नहीं हुआ है। साथ ही कहा कि फर्नीचर और फिक्सचर्स के अलावा सारे पूंजीगत व्यय स्कूल का संचालन करने वाली सोसाइटी को उठाना पड़ता है तो फिर ट्यूशन फी की बची रकम का क्या होगा?