प्रोग्रेसिव लिटरेरी एंड कल्चरल सोसाइटी (इंडिया) के “PLCS हिन्दी मंच” ने 22 मई को गूगल मीट ऑनलाइन प्लेटफार्म पर हिन्दी कविता पाठ “हमारी भाषा हमारी पहचान” का आयोजन किया कार्यक्रम की शुरुआत, कार्यक्रम की संचालक मिसेज वंदना त्रिपाठी ने की। उन्होंने कहा की कविता वह विधा है, जिसमें किसी भी मनोभाव को कलात्मक रूप से किसी भी भाषा द्वारा अभिव्यक्त किया जा सकता है। कविता द्वारा आनंद, शांति तथा यथार्थ का अनुभव कर सकते हैं। कविता मन के निष्क्रिय भावों को जागृत करती है। कविता सृष्टि के हर कण-कण में है ,भावनाओं के धरातल पर सृजन का हर क्षण है, कविता विश्व की संवेदनाओं में है, कविता प्रकृति के श्रंगार में है ,कविता सुबह की ताजगी, काष्ठ की अग्नि की तरह है, कविता एक संत के ध्यान की ध्वनि की तरह है । यह संवेदनाओं का उन्मुक्त प्रवाह है।
सबसे पहले वंदना जी ने डॉ नलिनी टंडन (अमेरिका) को आमंत्रित किया अपनी कविता पाठ करने के लिए। उन्होंने पहली कविता, “जीवन के रंग” पढ़ी। उनकी दूसरी कविता,”नमन” प्रकृति की सुंदरता के बारे मे थी। इसके बाद, डॉ शमेनाज़ (इलाहबाद) ने अपनी दो कविताएं “ये जो दरख़्तो की परछाइयाँ” और दूसरी “ये जिंदगी हैं” पढ़ी।
मित्र विपुल जी (लखनऊ) ने कुछ दोहे और एक गीत,”झुक सकी ना अन्यथा टूटी कलम” प्रस्तुत किया। मंजू “मन्न” (स्पेन) – मेरा कॉउंसलर कविता पढ़ी जिसमें उन्होंने चाँद को कॉउंसलर के तौर पर प्रस्तुत किया।उनकी दूसरी कविता, “बारिश”, जिसमें बारिश का अलग अलग लोगो पर जो असर होता हैं उसके बारे मे वर्णन किया।
डॉ परवेज़ शहरयार जी (दिल्ली) ने ने दो प्रेम कविताएं पढ़ी, “उदास रहा करता हूँ” और “फिर एक दिन अचानक”।
जयश्री सांगितराव (मुंबई) ने बहुत ही भावुक कविताएं पढ़ी “माँ का आंचल” और “किस्मत”। रितिका जयसवाल (इलाहबाद) ने कविता लेखन पर अपनी कविता पढ़ी जिसका शीर्षक था, “कविता लिखी नहीं जाती” और दूसरी कविता “मेहनत” बहुत प्रेरणादायक थी। दीपक कोहली (बेंगलुरु) ने कुछ हिन्दी कविताएं पढ़ी “ऐसा कोई ग्रंथ” और एक कुमाऊनी कविता, “ईजा त्यर हाथैक रौट” पढ़ी। सनोबर हुसैन्नी जी (मुंबई) ने एक कविता, “जीने का मक़सद नहीं सूझता” प्रस्तुत की।
आखिर मे दीपक कोहली और डॉ परवेज़ शहरयार ने एक एक कविता और सुनाई। बहुत ही खूबसूरत कविताओं के साथ पुनः मिलन का वादा हुआ और इन महान कवियों ने इस शानदार संध्या को मंत्रमुग्ध कर दिया।