आरिफ इक़बाल (ईटीवी भारत उर्दू, पटना)
कल *पूनम* की रात थी, बाहर खूब चर्चा रहा, मगर चर्चा पूनम के चांदनी का नही, बल्कि मद्धयम पड़ते उस “पूनम” का, जो अमावस की रातों में प्रकट होकर पूरी कायनात को रौशन कर देती है, काली अंधेरी रात को पूनम की चांदनी से जगमगाने वाली “पूनम” अब हमेशा के लिए आसमान के माथे पर बिंदिया बनकर जगमगाएगी, जैसे बेरंग से ज़िन्दा आशियाने में रंगों की बरसात करने वाली “पूनम” को आसमान ने बलाई ली हो, पूनम से न जाने कितनी ज़िन्दगी रौशन थी, एक पूनम के जाने से न जाने कितनी ज़िन्दगी काले बादल में छुप गए। पूनम के जाने से सब जगमग जीवन खत्म हो गयी, जिस अंधेरों को पूनम अपने दम से मिटा दे आज वो खुद अमावस हो चुकी है, अब रातें कई आएंगी मगर उस रात को जगमगाने पूनम नही होगी, उसका चमकदार चेहरा होगा और न उसकी अठखेलियाँ होगी।
अब तक कि जिंदगी में कभी इस मोड़ से नही गुज़रा कि अपने दोस्तों में से किसी पर दुखे दिल से क़लम उठाने को मजबूर हुआ, आज इस से सामना है, कल जिस वक़्त से सड़क दुर्घटना में पूनम की मौत की खबर सुनी है तबसे दिल बोझल है, ऐसा लगता है कोई आसपास की चीज़ दूर चली गयी है, एक पल के लिए खुद को झटकता हूँ, ये कौन नई बात है, ये दुनिया की रीत है, आने जाने वालों का तांता लगा रहता है, आने जाने का सिलसिला क़यामत तक रहेगा, किस को अपने उम्र की ख़बर है? दुसरों को क्या पता सामने वाला हमारे दरम्यान कितने दिन रहेगा? लेकिन उसके बावजूद आदमी सेहतमंद, तन्दरुस्त देख कर , जवानी देखकर अंदाज़ा करता है कि अभी उम्र लम्बी है, अभी और जीना है, अभी मरने वाली न उम्र है न सेहत, फिर ऐसा होता है वो अपनी उम्र की गिनती पूरी करके चल देता है, तो इस से तअल्लुक़ रखने वाले, मोहब्बत करने वाले, हक्का बक्का होकर एक दूसरे से पूछने लगते हैं ये क्या हुआ, अभी तो कल बात हुई थी, अच्छी खासी थी, अभी उम्र ही क्या थी, अरे इस का वहम गुमान भी नही था, लेकिन अब तो हो गया जो होना था।
पूनम से हफ्ता दो हफ्ता दिन की नही, पुरानी मुलाक़त थी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पूनम पत्रकारिता की क्लासमेट थी, हमारा बैच तो 40 लोगों का था मगर मैं यक़ीन से कहता हूं उन 40 में पूनम अपनी कई खूबियों की वजह से बिल्कुल अलग थी, जामिया स्टूडेंट लाइफ की कई खूबसूरत यादें इस वक़्त मेरे आंखों में फिल्म कैसेट की तरह चल पड़ी है, क्लास में तिर्यमूर्ति की शक्ल में पूनम, यासिर भाई और मुईद भाई मशहूर थें। ये तीनों हमेशा साथ दिखाई पड़ते, आते जाते, घूमते फिरते, सड़क बस स्टैंड, सभी जगह ये तीनों नज़र आते, किसी एक को ढूंढो साथ मे दो फ्री में मिल जाते, हमे ये बाद में मालूम हुआ कि ये तीनो पुराने दोस्त हैं और एक जगह से आते हैं। क्लास में बहुत दिनों तक मेरी किसी से बात नही हुई, मेरा कोई दोस्त या जानने वाला नही था, चुपचाप आना, क्लास करना और चले जाना, बस इतना ही काम था। क्लास में और भी कई लड़कियां थीं मगर कुछ बात थी जो औरों से पूनम को अलग करती थी, वो बेहद सादगी पसन्द, होशमंद, मिलनसार, ज्ञानपूर्वक और दुसरों की क़द्र करने वाली थी, क्लास में रहते हुए हमारी बातचीत बहुत दिन बाद हुई, वो भी जब पढ़ने के दौरान ही इन तीनों ने मिलकर “नई आवाज़” के नाम से हिंदी साप्ताहिक अख़बार निकालने की शुरुआत की, इस वक़्त मुझे ठीक से याद नही अख़बार का नाम नई आवाज़ था या कुछ और, पढ़ाई करते हुए अख़बार निकालना उस वक़्त आसान काम नही था, मगर इन तीनों ने खूब मेहनत की थी अखबार निकालने में, किसी से इन्हें मालूम हुआ हो कि मैं भी कुछ लिखता हूँ तो इन तीनों ने भी मुझे अपने साथ लिया, मगर मैं ज्यादा दिनों तक इनका साथ नही दे सका, उस वक़्त मैं खुद एक प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था, मगर तालमेल अच्छा बैठ गया , फिर इस तरह हम लोगों की जानपहचान बढ़ी जो आगे दोस्ती में बदल गयी। क्लास में सवाल जवाब का वक़्त होता तो पूनम जवाब देने में आगे रहती, पूनम शांत जरूर थी मगर वो अपने आस पास की चीज़ो से बेखबर नही थी उसकी निगाह सब पर रहती। रमज़ान के दिनों दिल्ली जामा मस्जिद में इफ्तार के वक़्त वो भी साथ देती, उनके दिल मे तमाम धर्मों को लेकर बहुत सम्मान था। जर्नलिज्म करने के बाद उसने मीडिया फील्ड को नही चुना, उसका एम्बिशन टीचिंग लाइन था, वो प्रोफ़ेसर बनना चाहती थी इस लिए वो हरिद्वार यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में पी एच डी कर रही थी। व्हाट्सएप पर अक्सर खबर ख़ैरियत पुछती रहती, भाई की तरह आदर करती, बहुत दिनों बाद जब दिल्ली एक शादी में हम लोग एक साथ हुए तो लगा जैसे फिर वो पुराने दिन लौट आए, हम लोग पुरानी पुरानी बातें निकाल कर खूब एक दूसरे की खिंचाई कर इन्जॉय किए, वो मुझे आरिफ जी कहकर पुकारती थी, मेरी रिपोर्ट देखती तो बहुत खुश होती और गुड विश करती, स्टूडेंट लाइफ के बाद बहुत कम होते हैं जो इस तरह दोस्ती बना कर रखते हैं, पूनम उनमें से एक थीं जिनकी मैं दिल से इज़्ज़त करता था।
पूनम के जाने का जितना दुख मुझे है इतना ही तमाम दोस्तों को है, उनके जाने पर सभी दोस्तों की आँखे नम है, वो ऐसी प्यारी ही थीं, अभी ज़िन्दगी की कितने बहारें उन्हें देखना था, कितनी ख्वाहिशें दिल मे दबी थी, ज़िन्दगी के कितने अरमान दिल मे संजोए थे, सब साथ लेकर चली गयी, आखिरी बार जब दिल्ली में मुलाक़ात हुई थी तो मैं ने हंसते हुए कहा था, अब बहुत हुआ, जल्दी से अपनी शादी में बुलाइए, वो भी हंसते हुए बोली, आरिफ जी दुआ कीजिए जल्द ही बुलाऊंगी। पूनम की उठते डोली को नही देख सका, उसकी उठती अर्थी को कैसे देखूं, कई दोस्तों ने दिल्ली से आख़री पल के वीडयो फ़ोटो भेजे है, उन्हें खोल कर देखने की हिम्मत नही जुटा पा रहा हूँ। मैं अपनी यादों में पूनम का वही मुस्कुराता हुआ चेहरा रखना चाहता हूं जैसे जामिया क्लास में देखा करता था।
पूनम तुम जहाँ भी रहो ख़ुश रहो, तुम्हारी आत्मा को शांति मिले, दिल करे तो कभी कभी व्हाट्सएप पर पूछ लेना “आरिफ जी” कैसे हैं? मैं जवाब दूंगा
“पूनम” के चांद से खिल तो गयी रात में भी रौशनी।
पर तेरे जाने से न हो सकी जगमग ये कहानी।