डॉक्टर मुहम्मद नजीब क़ासमी
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कुछ दिनों पुर्व “स्वीडन” में कुरआन करीम की प्रति जलाने की निंदनीय प्रयास की गई। पिछले वर्ष भी युरोप के ही एक दूसरे देश “नारवे” में इस प्रकार का वाकेया पेश आया था। ना सिर्फ मुसलमान बल्कि अक्ले सलीम रखनेवाला प्रत्येक व्यक्ति इस वाकेया की भर्त्सना कर रहा है। दुनिया में अमन व सुकून के तथाकथित ठीकेदार पाश्चात्य देशों में मुसलमानों की धार्मिक किताब को आग लगाने की निंदनीय प्रयास इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ नफरत और तअस्सुब के कारण है जो इस्लाम विरोधी ताकतें अपने नापाक योजनाओं को कार्यान्वित करने के लिए इस प्रकार के वाकेयात कराती हैं। हम इन वाकेयात की भर्त्सना करते हैं और वैश्विक बिरादरी से अपील करते हैं कि किसी भी धार्मिक किताब या धार्मिक रहनुमा के विरुध्द इस प्रकार के वाकेयात पर दण्ड देने के सख्त कानून बनाया जाये क्योंकि इस प्रकार के वाकेयात से दुनिया में अमन व अमान के बजाय अफरातफरी, अमानवीय और असहिष्णुता में बृधी ही होगी, जिससे लोगों में नफरत और अदावत पैदा होगी। प्रत्येक मुसलमान को चाहिए कि वह ऐसे अवसर पर कुरआन करीम के सम्बन्ध में अपने कौल व अमल से साधारण जनमानस को बताये कि यह कलामे इलाही है जो सिर्फ और सिर्फ इंसानियत की रहनुमाई के लिए नाजिल किया गया है, इस में दहशतगर्दी की नहीं बल्कि अमन व सुकून की शिक्षा दी गई है। कुरआन करीम के एलान के अनुसार किसी व्यक्ति को इस्लाम धर्म कबूल करने पर मजबूर नहीं किया जाता है।
कुरान क्या है?: कुरान करीम अल्लाह तआला का पाक कलाम है, जो अल्लाह तआला ने क़यामत तक आने वाले इंसान व जिन्नात की रहनुमाई के लिए आखरी नबी हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर वही के जरिया अरबी ज़बान में 23 साल के अरसा में नाजि़ल फरमाया। कुरान करीम अल्लाह तआला की सिफत है, मखलूक नहीं और वह लौहे महफूज़ में हमेशा से है।
कुरान के नुज़ूल का मकसद?: अल्लाह तआला ने कुरान करीम को क़यामत तक आने वाले इंसानों की हिदायत के लिए नाजि़ल फरमाया है मगर अल्लाह तआला से डरने वाले ही इस किताब से फायदा उठाते हैं। जैसा कि अल्लाह तआला ने इरशाद फरमाया ‘‘यह किताब ऐसी है कि इसमें कोई शक नहीं, यह हिदायत है (अल्लाह से) डर रखने वालों के लिए।” (सूरह अलबकरा आयत 2)
कुरान करीम किस तरह और कब नाजि़ल हुआ?: रमज़ान के महीने की एक बाबरकत रात ‘‘लैलतुल कदर’’ में अल्लाह तआला ने लौहे महफूज़ से आसमने दुनिया (ज़मीन से करीब वाला आसमान) पर कुरान करीम नाजि़ल फरमाया और इसके बाद हस्बे जरूरत थोड़ा-थोड़ा हूजुर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाजि़ल होता रहा और लगभग 23 साल के अरसा में कुरान करीम मुकम्मल नाजि़ल हुआ। कुरान करीम का तदरीजी नुज़ूल उस वक्त शुरू हुआ जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्र मुबारक चालीस साल थी। कुरान करीम की सबसे पहली जो आयतें ग़ारे हिरा में उतरी वह सूरह अलक़ की इब्तिदाई आयात हैं: ‘‘पढ़ो अपने उस परवरदिगार के नाम से जिसने पैदा किया, जिसने इंसान को जमे हुए खून से पैदा किया, पढ़ो और तुम्हारा परवरदिगार सबसे ज्यादा करीम है।” इस पहली वही के नुज़ूल के बाद तीन साल तक वही के नुज़ूल का सिलसिला बन्द रहा। तीन साल के बाद वही फरिश्ता जो ग़ारे हिरा में आया था आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आया और सूरह अलमुदस्सिर की इब्तिदाई चंद आयात आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाजि़ल फरमाई: ‘‘ऐ कपड़े में लिपटने वाले उठो और लोगों को खबरदार करो और अपने परवरदिगार की तकबीर कहो और अपने कपड़ों को पाक रखो और गंदगी से किनारा करलो।” इस के बाद हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफात तक वही के नुजूल का आहिस्ता आहिस्ता सिलसिला जारी रहा। ग़रज कि 23 साल के अरसा में कुरान करीम पूरा नाजि़ल हुआ।
कुरान करीम किस तरह हमारे पास पहुंचा?: कुरान करीम एक ही दफा में नाजि़ल नहीं हुआ बल्कि ज़रूरत और हालात के एतबार से मुख्तलिफ आयात नाजि़ल होती रहीं। कुरान करीम की हिफाज़त के लिए सबसे पहले हिफ्ज़े कुरान पर ज़ोर दिया गया, चुनांचे खुद हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्फाज़ को उसी वक्त दोहराने लगते थे ताकि वह अच्छी तरह याद हो जाएं। इस पर अल्लाह तआला की जानिब से वही नाजि़ल हुई कि, वही के नुज़ूल के वक्त जल्दी जल्दी अल्फाज़ दोहराने की जरूरत नहीं है बल्कि अल्लाह तआला खुद आप में एसा हाफ्ज़ा पैदा फरमा देगा कि एक मर्तबा नुजूले वही के बाद आप उसे भुल नहीं सकेंगे। इस तरह हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पहले हाफ़िज़े कुरान हैं। फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबा-ए-कराम को कुरान के माना की तालीम ही नहीं देते थे बल्कि उसके अल्फाज़ भी याद कराते थे। खुद सहाबा-ए-कराम को कुरान करीम याद करने का इतना शौक था कि हर शख्स एक दूसरे से आगे बढ़ने की फिक्र में रहता था। चुनांचे हमेशा सहाबा-ए-कराम में एक अच्छी खासी जमाअत ऐसी रहती जो नाजि़लशुदा कुरान की आयात को याद कर लेती और रातों को नमाज़ में उसे दोहराती थी। गरज़ कि कुरान की हिफाज़त के लिए सबसे पहले हिफ्ज़े कुरान पर ज़ोर दिया गया और उस वक्त के लिहाज़ से यही तरीका ज्यादा महफूज़ और काबिले एतेमाद था।
कुरान करीम की हिफाज़त के लिए हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुरान करीम को लिखवाने का भी खास इहतिमाम फरमाया चुनांचे नुज़ूले वही के बाद आप कातेबीने वही को लिखवा दिया करते थे। हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मामूल यह था कि जब कुरान करीम का कोई हिस्सा नाजि़ल होता तो आप कातिबे वही को यह हिदायत भी फरमाते थे कि इसे फ्लाँ सूरत में फ्लाँ आयात के बाद लिखा जाए। उस ज़माने में कागज नहीं होता था इसलिए यह कुरानी आयात ज्यादातर पत्थर की सिलों, चमड़े के पारचों, खजूर की शाखों, बांस के टुकड़ों, पेड़ के पत्तों और जानवरों की हडिडयों पर लिखी जाती थीं। कातेबीने वही में हज़रत जैद बिन साबित, खुलफाए राशेदीन, हज़रत ओबय बिन काब, हज़रत जुबैर बिन अव्वाम और हज़रत मुआविया (रज़ी अल्लाहु अन्हुम) के नाम खास तौर पर जि़क्र किए जाते हैं।
हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम के ज़माने में जितने कुरान1 करीम के नुसखे लिखे गए थे वह अमूमन मुख्तलिफ चीजों पर लिखे हुए थे। हज़रत अबु बकर सिद्दीक (रज़ी अल्लाहु अन्हु) के अहदे खिलाफत में जब जंगे यमामा के दौरान हुफ्फाज़े कुरान की एक बड़ी जमात शहीद हो गई तो हज़रत उमर फारूक (रज़ी अल्लाहु अन्हु) ने हज़रत अबु बकर सिद्दीक (रज़ी अल्लाहु अन्हु) को कुरान करीम एक जगह जमा करवाने का मशविरा दिया। हज़रत अबु बकर सिद्दीक (रज़ी अल्लाहु अन्हु) शुरू में इस काम के लिए तैयार नहीं थे लेकिन शरहे सद्र के बाद वह भी इस अज़ीम काम के लिए तैयार हो गए और कातिबे वही हज़रत जैद बिन साबित को इस अहम व अज़ीम अमल का जि़म्मेदार बनाया। इस तरह कुरान करीम को एक जगह जमा करने का अहम काम शुरू हो गया।1
हज़रत जैद बिन साबित खुद कातिबे वही होने के साथ पूरे कुरान करीम के हाफिज़ थे। वह अपनी याददाशत से भी पूरा कुरान लिख सकते थे, उनके अलावा उस वक्त सैकड़ों हुफ्फाज़े कुरान मौजूद थे मगर उन्होंने एहतियात के पेशेनज़र सिर्फ एक तरीका पर बस नहीं किया बल्कि उन तमाम ज़राए से बयकवक्त काम लेकर उस वक्त तक कोई आयत अपने सहीफे में दर्ज नहीं की जब तक उसके मोतवातिर होने की तहरीरी और ज़बानी शहादतें नहीं मिल गईं। इसके अलावा हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुरान की जो आयात अपनी निगरानी में लिखवाई थी वह मुख्तलिफ सहाबा-ए-कराम के पास महफूज़ थीं। हज़रत जैद बिन साबित ने उन्हें यकजा (जमा) फरमाया ताकि नया नुसखा उन्ही से नकल किया जाए। इस तरह खलीफा अव्वल हज़रत अबु बकर सिद्दीक के अहदे खिलाफत में कुरान करीम एक जगह जमा कर दिया गया।
जब हज़रत उसमान ग़नी (रज़ी अल्लाहु अन्हु) खलीफा बने तो इस्लाम अरब से निकल कर दूर दराज़ गैर अरब इलाकों तक फैल गया था। हर नए इलाका के लोग इन सहाबा व ताबेईन से कुरान सिखते जिनकी बदौलत उन्हें इस्लाम की नेमत हासिल हुई थी। सहाबा ने कुरान करीम हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुख्तलिफ किरातों के मुताबिक सिखा था। इसलिए हर सहाबी ने अपने शागिर्दों को उसी किरात के मुताबिक कुरान पढ़ाया जिसके मुताबिक खुद उन्होंने हुजूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पढ़ा था। इस तरह किरातों का यह इख्तिलाफ दूरदराज़ मुल्कों तक पहुंच गया। लोगों ने अपनी किरात को हक और दूसरी किरातों को गलत समझना शुरू कर दिया हालांकि अल्लाह तआला ही की तरफ से इजाज़त है कि मुख्तलिफ किरातों में कुरान करीम पढ़ा जाए। हज़रत उसमान ग़नी ने हज़रत हफसा के पास पैग़ाम भेजा कि उनके पास (हज़रत अबू बकर के तैयार कराये हुए) जो सहीफे मौजूद हैं, वह हमारे पास भेज दें। चुनांचे हज़रत जैद बिन साबित की सरपरस्ती में एक कमेटी तशकील देकर उनको मुकल्लफ किया गया कि वह हज़रत अबू बकर सिद्दीक के सहीफे से नकल करके कुरान करीम के चंद एसे नुसखे तैयार करें जिनमें सूरतें भी मुरत्तब हों। चुनांचे कुरान करीम के चंद नुसखे तैयार हुए और उनको मुख्तलिफ जगहों पर भेज दिया गया ताकि इसी के मुताबिक नुसखे तैयार करके तकसीम कर दिए जाएं। इस तरह उम्मते मुस्लिमा में इख्तिलाफ बाकी न रहा और पूरी उम्मते मुस्लिमा इसी नुसखे के मुताबिक कुरान करीम पढ़ने लगी। बाद में लोगों की सहूलत के लिए कुरान करीम पर नुकते व हरकात (यानी ज़बर, जेर और पेश) भी लगाए गए और बच्चों को पढ़ाने की सहूलत के मद्देनज़र कुरान करीम को तीस पारों में तकसीम किया गया। नमाज़ में तिलावत कुरान की सहूलत के लिए रूकू की तरतीब भी रखी गई।
मालूमाते कुरानी:
मनजिलें: क़ुरान करीम में 7 मंजि़लें हैं। यह मंजि़लें इसलिए मोकरर्र की गई हैं ताकि जो लोग एक हफ्ता में खत्म क़ुरान करीम करना चाहें तो वह रोज़ाना एक मंजि़ल तिलावत फरमाऐं।
पारे: क़ुरान करीम में 30 पारे हैं। इन्हीं को जुज़ भी कहा जाता है। जो हज़रात एक माह में क़ुरान करीम खत्म करना चाहें वो रोज़ाना एक पारा तिलावत फरमाऐं। बच्चों को क़ुरान करीम सिखने के लिए भी इससे सहुलत होती है।
सूरतें: क़ुरान करीम में 114 सूरतें हैं। हर सूरत के शुरू में बिस्मिल्लाह लिखी हुई है, सिवाए सूरह तौबा के। सूरह अन नमल में बिस्मिल्लाह एक आयत का जुज़ भी है, इस तरह क़ुरान करीम में बिस्मिल्लाह की तादाद भी सूरतों की तरह 114 ही है। इन तमाम सूरतों के नाम भी हैं जो बतौर अलामत रखे गए हैं बतौर उनवान नहीं। मसलन सूरतुलफील का मतलब यह नहीं कि वह सूरह जो हाथी के मौज़ु पर नाज़िल हुई, बल्कि इसका मतलब सिर्फ यह है कि वह सूरह जिसमें हाथी का जि़क्र आया है। इसी तरह सूरतुलबकर का मतलब वह सूरह जिसमें गाए का जि़क्र आया है।
आयात: क़ुरान करीम में छः हज़ार से कुछ ज्यादा आयात हैं।
सजदा-ए-तिलावत: क़ुरान करीम में 14 आयात हैं, जिनकी तिलावत के वक्त और सुनने के वक्त सजदा करना वाजिब हो जाता है।
मक्की व मदनी आयात व सूरतें: हिजरते मदिना से पहले तकरीबन 13 साल तक क़ुरान करीम के नुज़ूल की आयात व सूरतों को मक्की और मदिना मुनव्वरा पहुंचने के बाद तकरीबन 10 साल तक क़ुरान करीम के नुजूल की आयात व सूरतों को मदनी कहा जाता है।
क़ुरान में किया हे: उलमा-ए-कराम ने क़ुरान करीम के मुख्तलिफ किसमें जि़क्र फरमाए हैं, तफसिलात से कत-ए-नज़र उन मज़ामीन की बुनियादी तकसीम इस तरह है।
(1) अकाएद (2) अहकाम (3) किस्से
क़ुरान करीम में ओमुमी तौर पर सिर्फ ओसुल जि़क्र किए गए हैं, लिहाज़ा अकाएद व अहकाम की तफसील अहादीस नबविया में ही मिलती है यानी क़ुरान करीम के मज़ामीन को हम अहादीस नबविया के बेगैर नहीं समझ सकते हैं।
(1) अकाएद: तौहीद, रिसालत, आखिरत वगैरह के मज़ामीन इसी के तहत आते हैं। अकाएद पर क़ुरान करीम ने बहुत ज्यादा ज़ोर दिया है और इन बुनियादी अकाएद को मुख्तलिफ अल्फाज़ से बार बार जि़क्र फरमाया है। इन के अलावा फरिश्तों पर इमान लाना, आसमानी किताबों पर इमान लाना, तकदीर पर इमान लाना, जज़ा व सज़ा, जन्नत व दोज़ख, अज़ाबे कब्र, सवाबे कब्र, क़यामत की तफसीलात वगैरह भी मुख्तलिफ अकीदों पर क़ुरान करीम में रौशनी डाली गई है।
(2) अहकाम: इसके तहत निचे दिए गए अहकाम और उनसे मुतअल्लिक मसाइल आते हैं:
इबादती अहकाम नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज वगैरह के अहकाम व मसाइल। क़ुरान करीम में सबसे ज्यादा ताकीद नमाज़ पढ़ने के मुतअल्लिक आया है। क़ुरान करीम में नमाज़ की अदाएगी के हूकूम के साथ ओमुमन ज़कात का भी हूकूम भी आया है।
मुआशरती अहकाम मसलन हुकूकूल इबाद की सारी तफसीलात।
मआशी अहकाम खरीद व फरोख्त, हलाल व हराम और माल कमाने और खर्च करने के मसाइल।
अखलाकी व समाजी अहकाम इंफिरादी व इजतिमाई जिन्दगी से मुतअल्लिक अहकाम व मसाइल।
सियासी अहकाम हुकूमत और रिआया के हुकूक से मुतअल्लिक व मसाइल।
अदालती अहकाम हुदूद व ताजि़रात के अहकाम व मसाइल।
(3) किस्से: गुज़शता अम्बिय-ए-कराम और उनकी उम्मतों के वाक्यात की तफसीलात।
कुरान करीम का हमारे ऊपर क्या हक है?
(1) ‘‘तिलावते कुरान‘‘ अहादीस में तिलावते कुरान की बड़ी फज़ीलत लिखी हुई है, चुनांचे हज़रत अबदुल्लाह बिन मसूद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) की रिवायत है कि हुजूर अकरम सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया ‘‘जिसने कुरान पाक का एक हर्फ पढ़ा उसके लिए एक नेकी है और एक नेकी दस नेकियों के बराबर होती है। मैं यह नहीं कहता कि अलिफ लाम मीम एक हर्फ है बल्कि अलिफ एक हर्फ है, लाम एक हर्फ है और मीम एक हर्फ है।‘‘ (तिर्मीज़ी)
(2) ‘‘हिफ्ज़े कुरान‘‘ हज़रत अबदुल्लाह बिन उमर फरमाते हैं कि रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि क़यामत के दिन साहिबे कुरान से कहा जाएगा कि कुरान पढ़ता जा और जन्नत के दर्जो पर चढ़ता जा और ठहर ठहर कर पढ़ जैसा कि तु दुनिया में ठहर ठहर कर पढ़ता था। और तेरा मर्तबा वही है जहां आखरी आयत पर पहुंचे। (सही मुस्लिम)
(3) ‘‘कुरान फहमी‘‘ चूंकि कुरान करीम के नुज़ूल का एक अहम मकसद बनी नौऐे इंसान की हिदायत है और अगर समझे बेगैर कुरान पढ़ा जाएगा तो इसका अहम मकसद ही खत्म हो जाता है। लिहाजा हमें चाहिए कि हम उलमा जिन्होंने कुरान व हदीस को समझने और समझाने में अपनी जिन्दगी का कीमती हिस्सा लगाया, उनकी सरपरस्ती में कुरान करीम को समझ कर पढ़े। कुरान व हदीस की रौशनी में यह बात रोज़े रौशन की तरह वाज़ेह है कि जिस ज़ात आली पर कुरान करीम नाजि़ल हुआ उसके अकवाल व अफआल के बेगैर कुरान करीम को कैसे समझा जा सकता है? खुद अल्लाह तआला ने कुरान करीम में जगह जगह इस हकीकत को ब्यान फरमाया है, ‘‘यह किताब हमने आप की तरफ उतारी है ताकि लोगों की जानिब जो हुकुम नाजि़ल फरमाया गया है, आप उसे खोल खोल कर बयान करदें, शायद कि वह गौर व फिक्र करें‘‘ (सूरह अल नहल 44)। लिाहाज़ा हम रोज़ाना तिलावते कुरान के एहतिमाम के साथ साथ कम से कम उलमा और अइम्मा मसाजिद के दरसे कुरान में पाबंदी से शरीक हों।
(4) ‘‘अल-अम्ल बिल कुरान‘‘ यह कुरान करीम में अल्लाह तआला की दी हुई हिदायत की ततबीक है और इसी बनी नौए इंसानी की दुनियावी व उखरवी सआदत पोशिदा है, और नुजूले कुरान की गायत है। अगर हम कुरान करीम के अहकाम पर अमल पैरा नहीं हैं तो गोया हम कुरान करीम के नुजूल का सबसे अहम मकसद ही छोड़ रहे हैं। लिहाज़ा जिन उमूर का अल्लाह तआला ने हुकुम दिया है उनको बजा लाएं और जिन चीजों से मना किया है उनसे रूक जाएं।
(5) ‘‘कुरानी पैगाम दूसरों तक पहुंचाना‘‘ उम्मते मुस्लिमा पर यह जिम्मेदारी आएद की गई है कि अपनी ज़ात से कुरान व हदीस पर अमल करके इस बात की कोशिश व फिक्र की जाए कि हमारे बच्चे, खानदान वाले, मुहल्ला वाले, शहर वाले बल्कि इंसानियत का हर हर आदमी अल्लाह को माबूदे हकीकी मान कर कुरान व हदीस के मुताबिक जिन्दगी गुजारने वाला बन जाए। अमर बिल मारूफ और नहीं अनिल मुनकर (अच्छाईयों का हुकुम करना और बुराईयों से रोकना) की जिम्मेदारी को अल्लाह तआला ने कुरान करीम में बार बार बयान किया है। सूरह अलअसर में अल्लाह तआला ने इंसानों की कामयाबी के लिए चार सिफात में से एक सिफत दूसरों को हक बात की तलकीन करना जरूरी करार दिया। लिहाज़ा हम अहकाम-ए-इलाही पर खुद भी अमल करें और दूसरों को भी उन पर अमल करने की दावत दें।
क़ुरान करीम और हम: यह किताब मुकद्दस हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माना से लेकर रहती दुनिया तक मशअले राह बनी रहेगी क्योंकि अल्लाह तआला ने इस किताब को इतना जामे और माने बनाया है कि ईमानियात, इबादात, मामलात, समाजीयात, मुआशियात व इकतिसादियात के ओसूल क़ुरान करीम में मज़कुर हैं। हाँ! इन की तफसीलात अहादीस नबविया में मौजूद हैं मगर बड़े अफसोस की बात है कि हमरा तअल्लुक इस किताब से रोज़ बरोज़ खत्म होता जा रहा है। यह किताब हमारी मस्जिदों और घरों में गिलाफों में कैद हो कर रह गई हैं, नह तिलावत है नह तदब्बुर है और नह ही उसके अहकाम पर अमल। आज का मुस्लिमामन दुनिया की दौर में इस तरह गुम हो गया है कि क़ुरान करीम के अहकाम व मसाइल को समझना तो दर किनार उसकी तिलावत के लिए भी वक्त नहीं है। अल्लामा इकबाल ने अपने दौर के मुस्लिमानों के हाल पर रोना रोते हुए असलाफ से उस वक्त के मुस्लिमान का मुकरिराना इन अल्फाज़ में किया था:
वो ज़माने में मुअज्ज थे मुस्लिमा हो कर और हम ख्वार हुए तारिके क़ुरान होकर
आज हम अपने बच्चों की दुनियावी तालिम के बारे में सोचते हैं, उन्हें असरी ओलूम की तालीम देने पर अपनी मेहनत व तवज्जह सर्फ करते हैं और हमारी नज़र सिर्फ और सिर्फ इस आरजी दुनियावी और इस आराम व असाईश पर होती है और उस अबदी व लाफानी दुनिया के लिए कोई खास कोशिश नहीं करते मगर सिवाए एक दो के। लिहाज़ा हमें चाहिए कि हम अपना और अपने बच्चों का तअल्लुक क़ुरान व हदीस से जोड़े, उसकी तिलावत का इहतिमाम करें, उलमा की सरपरस्ती में क़ुरान व हदीस के अहकाम समझ कर उनपर अमल करें और इस बात की कोशिश करें कि हमारे साथ हमारे बच्चे, घर वाले, पड़ोसी, दोस्त व अहबाब व मुतअल्लेकीन भी हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लाए हुए तरीका पर जिंदगी गुजारने वाले बन जाएं।
आज असरी तालीम को इस कदर फौकियत दी जा रही है कि लड़कों और लड़कियों को क़ुरान करीम नाजि़रह की भी तालीम नहीं दी जा रही है क्योंकि उनको स्कूल जाना, होमवर्क करना, परोजेक्ट तैयार करना, इमतिहानात की तैयारी करनी है वगैरह वगैरह यानी दुनियावी जिंदगी की तालीम के लिए हर तरह की जान व माल और वक्त की कुर्बानी देना आसान है लेकिन अल्लाह तआला के कलाम को सीखने में हमें दुशवारी महसूस होती है। गौर फरमाऐं कि क़ुरान करीम अल्लाह तआला का कलाम है जो उसने हमारी रहनुमाई के लिए नाज़िल फरमाया और उसके पढ़ने पर अल्लाह तआला ने बड़ा सवाब रखा है। अल्लाह तआला हम सबको हिदायत अता फरमाए और क़ुरान करीम को समझने वाला और क़ुरान व हदीस के अहकाम पर अमल करने वाला बनाए, आमीन।