हज़रत अली, हमारे प्यारी नबी हज़रत मुहम्मद साहब के चचेरे भाई थे। आप हज़रत अली को बहुत चाहते थे। हज़रत अली सब से पहले ईमान लाने वालों मैं से एक थे। आप उन लोगों मैं से एक हैं जिन्होंने क़ुरान मजीद को जमा करके हज़रत मुहम्मद साहब की ख़िदमत में पेश किया था . आप ख़लीफ़ा हज़रत अबू बकर सिद्दीक़, हज़रत उमर फ़ारूक़ और हज़रत उस्मान के मुशीर थे। आप हमारे चौथे ख़लीफ़ा थे। आप किसी भी झगड़े या मुक़दमे का फ़ैसला बहुत तेज़ी से करने में माहिर थे। आप बहुत अच्छे मुक़र्रिर थे। बड़े प्यारे अंदाज़ में अपनी बात फ़रमाते थे।
आपका क़द दरमियाना था। बदन दोहरा था। सर के बाल किसी क़दर उड़े हुए थे। लंबी और घनी दाढ़ी थी। गेहुवाँ रंग था। आपको पहलवानी और कुश्ती का बहुत शौक़ था।
जंगे ख़ैबर में हज़रत मुहम्मद साहब ने झंडा आपके हाथ में दिया था और पेशगोई की थी कि ख़ैबर आपके हाथ पर जीता जाएगा। आपने बड़ी बहादुरी से ख़ैबर क़िला जीता। क़िला ख़ैबर का दरवाज़ा जोके बहुत मज़बूत , भारी और बड़ा था, उसे उखाड़ फेंकने का आपका कारनामा बहुत मशहूर है। एक जंग के अलावा, आप हर जंग में शामिल हुए और दिलेरी, हिम्मत और बहादुरी भरे मारके अंजाम दिए। इसी लिए आप हैदर और शेरे- ख़ुदा के लक़ब से जाने जाते हैं। आप बहुत ख़ुदा तरस और ख़ुदा परस्त थे। आप हर काम अल्लाह की ख़ुशी के लिए करते थे।
एक बार का वाक़्या है कि एक मुक़ाबले में हज़रत अली ने अपने मुख़ालिफ़ को पछाड़ दिया और उसके सीने पर चढ़ कर बैठ गये। क़रीब था कि आप की तलवार दुश्मन पर वार करती कि उसने आपके मुबारक चेहरे पर थूक दिया। हज़रत अली ने उसी वक्त अपनी तलवार फेंक दी और उसको छोड़ दिया। मुख़ालिफ़ बहुत हैरान हुआ कि काबू में आये अपने दुश्मन को क़त्ल करने के बजाय छोड़ देने और मुआफ़ करने की क्या वजह हो सकती है ?
जब मुख़ालिफ़ ने अपना सर झुका कर बड़ी इंकिसारी और आजिज़ी से इसकी वजह पूछी तो हज़रत अली फ़रमाया:
मैं अपने लिए कुछ नहीं करता हूं। मैं जो कुछ भी करता हूं, अपने ख़ुदा की रज़ा और ख़ुशनूदी के लिए करता हूँ। मेरी तुम से कोई ज़ाति लड़ाई न थी और न है । मैं तुम से अपने ख़ुदा के पैग़ाम के लिए मुकाबला कर रहा था। जब तुमने मेरे चेहरे पर थूका तो फ़ितरी तौर पर मुझे ग़ुस्सा आगया। अब अगर मैं तुम्हें क़त्ल कर देता तो इसमें मेरे ज़ाती बदले का ग़ुस्सा भी शामिल हो जाता और मैं अल्लाह के कामों में अपना ज़ाती ग़ुस्सा या बदला शामिल नहीं करता हूं !!!