लेख : मसूद जावेद
किसी भी आपातकालीन जैसे बारिश होने लगी और छत के नीचे इतनी जगह नहीं कि सभी नमाज़ी वहां नमाज़ अदा कर सकें तो ऐसी स्थिति में शरीयत सुविधा अनुसार टुकड़ियों में सामूहिक नमाज़ अदा करने
की अनुमति देती है। नमाज़ी १००० लेकिन मस्जिद परिसर के अंदर जगह ५०० की है तो दो बार जमाअत की जाए । एक इमाम ५०० नमाज़ियों को नमाज़ पढ़ाकर हट जाए उसके बाद दूसरा इमाम बचे हुए ५०० को नमाज़ पढ़ाए।
जगह की कमी के कारण ही सही , आप जुमआ और ईद की सामूहिक नमाज़ मस्जिद परिसर से बाहर अदा करके दूसरों के लिए असुविधा के कारण बनते हैं ऐसी नमाज़ और प्रार्थना अल्लाह तक नहीं पहुंचती है।
इसलिए कि सड़क पर नमाज़ अदा करने से किसी का अर्जेंट काम ; हस्पताल पहुंचना, ट्रेन पकड़ना, इंटरव्यू के लिए उपस्थित होना , मेडिकल स्टोर पहुंचना वगैरह बाधित हो सकता है।
अल्लाह के रसूल पैग़म्बर मुहम्मद स.अ.व.स. ने फ़रमाया ” तुम में सब से अच्छा इंसान वह है जो दूसरों के लिए अधिक से अधिक लाभदायक हो “. और फ़रमाया कि “रास्ते से ईंट पत्थर और तकलीफ देने वाली चीज़ का हटाना भी पुन्य का काम है”। तो आप अपनी इबादत से दूसरे को तकलीफ देकर पुन्य कैसे कमा सकते हैं।
हमारी बहुत सी गतिविधियां दूसरे धर्म वालों से प्रभावित हैं और अंजाने में हम उन गतिविधियों को इस्लाम और पुन्य का कार्य समझ कर करते हैं।
मस्जिद परिसर से बाहर के लोगों को प्रवचन सुनाने की आवश्यकता नहीं है। केवल पांच वक्त सामूहिक नमाज़ के लिए बुलाना/अज़ान देना/ ज़रूरी है। लाउडस्पीकर का इस्तेमाल सिर्फ अज़ान के लिए ही होना चाहिए। मस्जिद परिसर के अंदर के लोगों के लिए साउंड सिस्टम काफी है।
लेकिन कुछ लोगों ने हिन्दू भाइयों से बराबरी करते हुए बहुत से काम करना शुरू किया है। जैसे सुबह में उनके मंदिरों से भजन कीर्तन लाउडस्पीकर से मंदिर परिसर से बाहर वालों को सुनाया जाता है तो मुसलमानों का एक समूह भी सुबह सुबह मस्जिद के लाउडस्पीकर से दरूद सलाम सुनाता है!
राम नवमी के जुलूस की देखा देखी मुसलमानों ने भी मुहर्रम निकालना शुरू किया। भला सून्नी मुसलमानों का मुहर्रम से क्या लेना देना है और वह भी जुलूस और खुशियां मनाते हुए बैंड बाजे के साथ !
हनुमान शोभा यात्रा हो या नवरात्र, इन जुलूसों से बराबरी करते हुए ईद मिलादुन्नबी का जुलूस ! ताज्जुब है!
वास्तविकता में देखा जाए तो इस्लाम में देखावा, जुलूस और शोभा यात्रा का कंसेप्ट नहीं है। इबादत खामुशी और सुकून से करने का हुक्म है। इसी लिए सामूहिक नमाज़ में भी सिर्फ इमाम पढ़ते हैं और सारे नमाज़ी खामोश रह कर सुनते हैं।
इस्लामी इतिहास में दो घटनाएं सब से महत्वपूर्ण हैं।
१- मक्का से मदीना हिजरत करना। इसी महत्वपूर्ण घटना से इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत होती है और इस कैलेंडर को हिजरी कैलेंडर कहा जाता है। इस्लामी कैलेंडर परंपरागत पैग़म्बर मुहम्मद स.अ.व.स. के जन्मदिन से होना चाहिए था लेकिन हिजरत से होना उसकी महत्व को दर्शाता है।
२- दूसरी बड़ी घटना मक्का फतह करना। उस दिन मदीना से मक्का आना। लेकिन उस दिन भी कोई जश्न नहीं कोई जुलूस नहीं।
तो फिर हम क्यों शाह से ज्यादा शाह परस्त बनते हैं।
ये लाउडस्पीकर और डी जे , झंडे , घोड़े, बैंड बाजे और शक्ति प्रदर्शन इबादत नहीं दूसरे समुदायों से बराबरी है जिसकी आवश्यकता नहीं है और न पुन्य का कार्य है।