आज हमने सच को देखा
सड़क पर एक दम अकेला खड़ा था
कपड़े फटे थे
बेचारा कई दिनों का भूखा प्यासा था
रो रहा था गिड़गिड़ा रहा था
मैं ठिठक गई और रूक गई
उसका हाल पूछने
अरे तुम्हारा यह हाल कैसे हो गया
तुम तो बहुत संपन्न हुआ करते थे
बहुत गर्व था स्वयं पर
कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया
और यह कहते नहीं थकते थेकि
सच का सिर सदैव ऊंचा रहता है
सच सर झुकाए मेरी बातें सुनता रहा
बिना किसी पश्चाताप के
चेहरा जैसे भावविहीन था
उसकी आंखों में कोई आंसू भी ना था
अचानक बोल पड़ा
मेरा दुश्मन झूठ जीत गया
हालांकि उसके पांव नहीं थे
मगर उसका साथ देने वाले संख्या में बहुत अधिक थे
और वहसबके सब अस्त्र शस्त्र से लैस थे
मैं निहत्था था मेरा साथ देने वाले बहुत कम थे
क्योंकि वह सब झूठ की मज़बूत फौज से डर गए थे
फिर भी मैं अंत तक लड़ता रहा अपने उसूलों के लिए
आप सबकी आशाओं के लिए
आप सबकी सुरक्षा के लिए
और अंततः…..
यह कहते कहते वह आकाश को निहारने लगा
मैंने उसकी तंद्रा भंग करते हुए पूछ ही लिया
तो फिर ऐसा क्यों हुआ???
वह बोला दोष मेरा नहीं है
मेरे पुरखों ने मुझे सदा से यही शिक्षा दी थी
कि तुम कभी झुकना मत
अडिग रहना
तुम केवल तुम ही रहना
कोई मिलावट नहीं
और निर्भीक रहना
क्योंकि सच की राह बहुत कठिन है परंतु ताकतवर भी
मेरे शिक्षकों ने भी यही पढ़ाया था
और पाला था मुझे उसूल बनाकर
तो फिर तुम इस हाल में क्यों??
कहां गई तुम्हारी वह ताक़त और स्वाभिमान मैंने पूछा
अब सच मुस्कुराया और बोला
मेरी लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई
धैर्य मेरा शस्त्र है
मैं यहां खड़ा उसी की बाट जोह रहा हूं
मगर अडिग हूं क्योंकि
“सत्यमेव जयते”