डाॅ.राम पण्डित
मराठी का नया अफसाना नवकथा नाम से जाना जाता है। ये हमारे तरक्कीपसंद अफसाने को साथ मंजरे आम पर उभरा।
वि स खांडेकर, ना सी फडके, वामन चोरघडे जैसे पहले दौर के अफसाना निगारों ने बयानिया अफसाने की नींव डाली थी। मगर आजादी से कुछ साल पहले नवकथा की पहल हुई।इसमें बेदी,मंटो,कृष्णचंदर,इस्मत चुगताई इन चार नामों की तरह पु भा भावे,गंगाधर गाडगील,अरविंद गोखले और व्यंकटेश माडगुलकर ये चार ना अहम थे। इन अफसाना निगारों ने अपने दौर के,मआश्रे के सभीं पहलू और बुनियादी मसाईल को मद्देनजर रखते हुए कई शाहकार अफसाने लिखे। अफसानों में कई तकनीक का भी इस्तेमाल किया।
इसी दौरान जब नवकथा अपने उरूज पर थी तब मराठी में एक नया नाम उभर कर सामने आया ।ये नाम था जी ए कुलकर्णी । जी ए के इब्तदाई अफसाने नवकथा के ही रंग के थे।मगर वे जल्द ही उस असर से बाहर आ गये। जी ए के अफसाने खासकर उनके आखरी चार अफसानवी मज्मुए (पिंगलावेल,रमलखुणा,सांजशकुन और काजलमाया) के सभीं अफसाने,उनके मौजूं, अलामती,तम्सीली बयानियां की वजह से
उनके हमअस्र अफसाना निगारों के अफसानों से मुख्तलिफ शनाख्त रखते है। अ जर्नी फाॅरएव्हर,‘शॅडोज इन द डेझर्ट’ और ‘विदूषक अॅन्ड अदर स्टोरीज’ इन उन्वानों से ये सभीं अफसानवी मज्मुए अंग्रेजी में मुंतकिल हो चुके है।
हमारे उर्दू के मोतबर अफसाननिगार इंतज़ार हुसैन के अफसानों का जी ए के अफसानों का तकाबुली मुताला बड़ी हद तक मुमकिन है। दोनों के कुछ अफसानों में मायथाॅलाॅजी का अलामती इजहार नजर आता है। दोनों के अफसानों में माजी और नाॅस्टल्जीक थीम नज़र आती है।
आज के मोतबर उर्दू हिन्दी अफसाना निगार सलाम बिन रज्जाक ने जी ए के अफसानों का गहरा मुताला किया है। जी ए उनके पसंदीदा अफसाना निगारों में से है।और उन पर जी ए का असर भी है। सलाम भाई ने बचपन और जवानी पनवेल जैसे मराठी कल्चर्ड शहर में गुजारी है।इसलिए वे मराठी जुबान से भी पुरी तरह वाकिफ है। उन्हें इसी वजह से मराठी अदब उर्दू में लाने के लिए हिन्दी या अंग्रेजी जैसी फिल्टर लॅग्वेज की जरुरत कतई महसूस नही होती।
सलाम भाई ने जी ए के बारह शाहकार अफसानों का तरजुमा उर्दू में किया है। यहाँ पेश किया गया अफसाना ‘दूत’ याने ‘कासिद’ में अलामत और बयानिया का गैरमामुली संगम है। पूरा अलामत ही अलामत बनके आता है। ये एक काॅम्पेक्ट ,चुस्त अफसाना है। कारी को शुरू से आखिर तक पढने पर मजबूर करता है। मराठी में कथाकथन की एक रिवायत है।इस में कहानीकार कहानी सामईन को किस्सागो के अंदाज में सुनाता है।दूत यह अफसाना इसी बयानिया अस्लूब का अफसाना है।
सलाम भाई ने दूत का तर्जुमा करते वक़्त जुबान की चाशनी और रवानी बरकरार ही नहीं बल्कि चार चाँद लगा दिये।इसमें उर्दू जबान की मिठास का भी हाथ है यह बात कबूल करनी होगी।
मैं ने दूत को पढा और सलाम भाई को उसका उर्दू व्हर्जन पढते हुए भी सुना है। ओरिजिनल कहानी से तर्जुमा खुद जी ए सुनते तो उन्हें भी ज्यादा पसंद आता। इसकी वजह ये है कि जी ए की जुबान बड़ी हद तक शायराना है ,और अफसाना मुंतकिल हुआ है शायराना जुबान उर्दू में । दूत की मराठी भाषा कहीं कहीं संस्कृत आमेज है इसलिए सलाम भाई ने कारी/सामईन तक अफसाना पंहुचाने के लिये फारसी अल्फ़ाज़ इस्तेमाल किये है ( गुबारे खातिर की हद तक नहीं) जो भाते भी है। मुतरज्जिम खुद अदीब हो तो तर्जुमे में उसकी जबान, अस्लूब की दखलअंदाजी होने का धोका रहता है।पर दूत का तर्जुमा पढते सुनते वक़्त यह जी ए का ही अफसाना है इस बात का मुझे एहसास रहता है। उनके अंदाजे बयां को कही ठेंस नहीं पंहुचे इसका एहतियात बरता है।’कासिद ‘ एक शाहकार अफसाने का यह शाहकार तर्जुमा है।
कासिद पढते या सुनते समय ज्यो ज्यो अफसाना आगे बढता है
आदमी बेचैन सा हो जाता है।आखरी जुम्ले तो वह सांस रोके पढता या सुनता है। जी ए ने अफसाना मोपासां की तर चौंका देनेवाला एन्ड देकर रोक दिया है।यहीं इसकी खूबी है।सलाम भाईने वहीं सांस रोकनेवाली दिलचस्पी इस तर्जुमे में कायम रखी है।
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