अभी हाल फिलहाल में एक वीडियो सोशल साइट्स पर बहुत वायरल हो रहा है।वह बालक छठी कक्षा का छात्र हैऔर उसने इधर उधर नहीं सीधे राज्य के मुख्य मंत्री से अच्छे विद्यालय की मांग की है।
(सबके लिए नहीं सिर्फ अपने लिए) क्योंकि उसे ऐसा लगता है कि सरकारी विद्यालय के शिक्षक योग्य नहीं हैं। शौचालय साफ नहीं हैं वगैरह वगैरह…
खैर बात खुली है तो दूर तलक जाएगी…
शिक्षा व्यवस्था सिर्फ शिक्षकों से नहीं बनती है। इसके कई तत्व होते हैं जैसे कि शैक्षिक प्रशासन,शिक्षक,छात्र, अभिभावक और पंचायत।
प्रशासन के आधार पर देखा जाए तो ना ही अधिकारियों की कमी है ना ही बजट की कमी है।
हां आधारभूत संरचना तो कमजोर है। तो चूक हुई तो हुई कहां ? वह है निरीक्षण और नीतियों के कार्यान्वयन पर
विद्यालय में यदि पदाधिकारियों की निश्चित अंतराल पर आवाजाही रहे तो यह नौबत तो बिल्कुल नहीं आएगी कुछ मानसिक दबाव तो रहेगा ही शिक्षकों पर मन से ना सही नौकरी बचाने के लिए ही सही
अध्ययन अध्यापन का कार्य तो मन से होगा।
शिक्षकों की बात करें तो जब से शिक्षक पात्रता परीक्षा वाले शिक्षक की भर्ती प्रारंभ हुई है,
उसमें वैसा शिक्षक तो कोई नहीं होगा जैसा वो बच्चा बता रहा हैऔर जिस प्रकार से शिक्षक का नाम लेकर वीडियो वायरल हो रहे हैं, उससे शिक्षक के मानसिक प्रताड़ना को भी समझा जा सकता है।खैर शिक्षक तो हैं ही बेचारा बिरादरी उससे काहे की सहानुभूति।
प्राताड़ित होता है तो होता रहे।
अभिभावक की भूमिका बच्चे के विकास में बहुत महत्वपूर्ण है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता किन्तु सोनू के वीडियो से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सोनू प्रथम पीढ़ी का अध्येता है। बहुत ही मजबूत शैक्षिक पृष्ठभूमि नहीं होने के बाद भी बच्चा मुख्यमंत्री से आत्मविश्वास से बात करने की क्षमता रखता है तो इसका कुछ क्रेडिट तो विद्यालय को जाना ही चाहिए जो हम नहीं देंगे क्योंकि हम मुफ्त में मिली चीजों के प्रति कृपण होते हैं।
छात्र प्रतिभाशाली है इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन कुछ तो है जो दिख नहीं रहा है और प्रश्न खड़े कर रहा है।
बच्चे को पुलिस और प्रशासन का कार्य पता है ।उसे आई ए एस बनने पर पुलिस मिलेगी उसे यह भी पता है।उसे पब्लिक एप भी पता है। और तो और
वह चालीस बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाता है। उसमें से कोई भी बच्चा स्कूल नहीं जाता है।
आश्चर्य है!
फिर तो उन बच्चों को पोषाहार और पोषाक भी नहीं मिलता होगा ?
ग्राम पंचायत का तो प्रथम दायित्व है कि वह अपने पंचायत के विद्यालय के अकादमिक और विकास गतिविधियों पर निगरानी रखें। विद्यालय प्रबंधन समिति में गांव के चुने हुए सदस्य भी तो होते हैं।आखिर सब लोग किस निद्रा में थे कि बात यहां तक पहुंच गई।
विद्यालय विद्यालय ना रहा
स्थानीय शासन जबतक विद्यालय को मंदिर मस्जिद जितनी प्राथमिकता नहीं देगा तबतक कुछ नहीं बदलने वाला।
हां आधारभूत संरचना तो दयनीय है इसमें कोई दो राय नहीं जिसपर बहुत कार्य करने की आवश्यकता है। कुछ सुझाव
जो करके देखा जा सकता है।
१
कमरे कम हैं तो पार्टीशन करके कमरे बढ़ाए जा सकते है।
प्रांगण मे छायादार वृक्ष लगाए जाएं ताकि आवश्यकता पड़ने पर उस छाया को ही छत के रूप में इस्तेमाल किए जाए।
२
एक चतुर्थश्रेणी कर्मचारी की नियुक्ति अवश्य की जानी चाहिए ताकि साफ सफाई बना रहे। स्थाई नियुक्ति संभव नहीं हो तो अनुबंध पर भी लिए जा सकते हैं। अनुबंध पर भी संभव नहीं हो तो अपने अपने कक्षा की सफाई छात्र स्वयं करें रोटेशन के आधार पर एक या दो महीने में एक दिन ड्यूटी आएगी।
३
कुछ सख्त नियम बनाए जाए जिसका कड़ाई से पालन हो
४
जो बच्चे लंबे अवकाश पर हैं।
उन्हें कोई भी आर्थिक सुविधा ना दी जाए।
५.
टीसी सिर्फ उन्हीं बच्चों को दी जाए जिसकी उपस्थित ७५% से अधिक हो।
ये नहीं कि प्रावेट कोचिंग में पढ़िए और टीसी सरकारी से़ं।
प्राइवेट संस्थान ही वो दीमक है
जो सरकारी व्यवस्था को चाट गया।
६ शिक्षकों के सेवाकालीन प्रशिक्षण को प्राथमिकता दी जाए
७
विद्यालय के आधारभूत संरचना पर अधिकतम खर्च हो जो कि विद्यालय की स्थायी सम्पत्ति होगी
सामर्थ्यवान है को सब्सिडी देना अब तर्क संगत नहीं है।
८
किसी भी शिक्षक का साक्षात्कार लेने के लिए अथवा विद्यालय में प्रवेश करने के लिए
विभागीय अनुमति आवश्यक हो
ये नहीं कि कोई भी कभी भी हाथ में एक माइक लेकर विद्यालय में आ जाए और शिक्षकों को प्रताड़ित करे।
और हां एक आखिरी और महत्वपूर्ण बात का यह ध्यान रहे कि किसी एक विद्यालय को देखकर सभी का मूल्यांकन उसी रुप में ना किया जाए । एक से एक प्रतिभावान शिक्षक और एक से एक विद्यालय हैं बिहार में सबूत /प्रमाण के तौर पर
कुछ फेसबुक पेज हैं जैसे कि टीचर आफ बिहार, शिक्षक दर्पण, टीचर आफ बिहार हिस्ट्री मेकर, शिक्षकों की प्रतिभा बिहार इत्यादि और बहुत सारे यहां पर एक बार विजिट कर
आप चमकते विद्यालय और शिखर को छूते छात्र को देखकर नैना जुड़ा सकते हैं।
और मीडिया बंधु जो वीडियो को वायरल कर रहे हैं। ये बाताईए कि आख़िरी बार आप अपने गांव के विद्यालय कब गए हैं?और आपने क्या योगदान दिया है ?अपने गांव के विद्यालय को?
जो लोग प्रतियोगिता परीक्षा वाले विद्यालय में सोनू का नामांकन करवा रहे हैं एक योग्य छात्र का हक मत मारिए।
सोनू में प्रतिभा है वह खुद क्वालीफाई कर जाएगा।
जो लोग गोद लेने या आर्थिक सहायता की बात कर रहे हैं जरा सम्भलके बिहार में बहुत सोनू है।