वह ग़ुलाब चेहरा वह महकता बदन
तू जो चले तो खुशबूएं साथ चलें।
तुझे देखकर गुलशन में भी बहार आ जाए ,
जो तू हंसे तो कहकशा भी चमक जाएं।
तेरे बालों से मोगरे की खुशबू आए ,
तू सरापा हुस्न है तुझे देखकर इश्क क्यों ना मचल जाए ।
जब वफाओं की बात आए,
तो तेरे वजूद की पाकीज़गी नजर आए ।
आशिक को और क्या चाहिए ,
तेरे हुस्न और वफाओं के अलावा।
मोहब्बत के नगर में,
इश्क वालों को इश्क ही रास आए ।
हर आशिक को अपने महबूब में,
अपना वजूद नजर आए।
तभी तो वह अपने महबूब पर,
अपनी जान भी दे जाए ।
अब हुस्न वालों को यह बात कौन समझाए ,
अपने हुस्न के जलवे सरेआम ना फैलाएं ।
कुछ तो हम मोहब्बत के मारो पर रहम खाएं,
हम आशिक है तेरे हमें ही अपने जलवे दिखाएं।
*पता: डी/१० गैलेक्सी अपार्टमेंट शमशाद मार्केट अलीगढ़।