बिहार में अब नई सरकार का गठन होने जा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए का साथ छोड़ने की औपचारिक घोषणा करने के बाद राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंपा दिया। नई सरकार के गठन को लेकर नीतीश के उतावलेपन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजभवन ने उन्हें राज्यपाल से मिलने के लिए मंगलवार चार बजे का समय दिया गया था, लेकिन नीतीश तय वक्त से 15 मिनट पहले ही राजभवन पहुंच गए। उन्होंने राज्यपाल को 160 विधायकों का समर्थन पत्र भी सौंप दिया। इस घटनाक्रम के बाद सियासतदानों के बयानों की बौछारें शुरू हो गईं। किसी ने उनके इस कदम को ‘विश्वासघात’ बताया तो कोई इसे ‘मील का पत्थर’ बताने लगा। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, नीतीश कुमार ने ‘विश्वासघात’ और ‘मील का पत्थर’, इन दोनों के बीच ‘बिहार’ को ‘महाराष्ट्र’ बनने से रोक दिया।
भाजपा को चूक का कोई भी मौका नहीं दिया
महाराष्ट्र में शिवसेना को तोड़कर एकनाथ शिंदे ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार का गठन कर लिया। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कुछ वैसा ही बिहार में भी होना था, लेकिन नीतीश कुमार समय रहते संभल गए। इससे पहले कि महाराष्ट्र की तर्ज पर ‘जदयू’ में कुछ ऐसी वैसी हलचल होती, नीतीश कुमार ने उसे संभाल लिया। उन्होंने भाजपा को चूक का कोई भी मौका नहीं दिया। जिस भाजपा के साथ मिलकर उन्होंने अभी तक सरकार चलाई, नाता टूटते ही भाजपाई उनकी खिलाफत करने लगे। बिहार के भाजपा प्रदेशाध्यक्ष संजय जायसवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, बिहार की जनता इसे कतई बर्दाश्त नहीं करेगी। नीतीश कुमार ने बिहार की जनता और भाजपा को धोखा दिया है। जदयू के अध्यक्ष रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) ने नीतीश कुमार के इस कदम की आलोचना की है। उन्होंने शनिवार को जदयू से नाता तोड़ लिया था। उन्होंने ट्विटर पर लिखा, ‘बिहार की जनता के द्वारा एनडीए के पक्ष में दिए गए 2020 के जनादेश के साथ विश्वासघात’। गत सप्ताह जदयू ने जब उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया तो आरसीपी सिंह ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।
देश के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा, साल 2020 में बिहार की जनता ने एनडीए को जनादेश दिया था। विधानसभा में जदयू के पास भाजपा से कम सीटें होने के बावजूद पीएम नरेंद्र मोदी के कहने पर नीतीश कुमार को सीएम बनाया गया। अब वे भ्रष्टाचार के सारे मामले कहां चले गए, जिन्हें लेकर 2017 में नीतीश कुमार ने आरजेडी का साथ छोड़ दिया था। जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश के फैसले का स्वागत किया है। उनका यह निर्णय केवल बिहार ही नहीं, बल्कि देश के लिए भी मील का पत्थर साबित होगा। ट्विटर पर उन्होंने लिखा, ‘एनडीए से अलग होने के निर्णय से देश को फिर से रुढ़िवाद के दलदल में धकेलने की साजिश में लगी भाजपा के चक्रव्यूह से हम सब बाहर आ गए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा, बिहार में नीतीश कुमार ने एनडीए से अलग होने का फैसला किया है। मार्च 2020 में, मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए मोदी सरकार ने कोविड-19 लॉकडाउन को आगे बढ़ा दिया था। अब उसे संसद सत्र निर्धारित समय से छोटा करना पड़ा, क्योंकि बिहार में उनके गठबंधन की सरकार जा रही है। उत्थान के बाद पतन तय होता है।
नीतीश को कार्यकाल पूरा करना चाहिए था
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इस मामले में कहा, अगर जनता ने आप पर भरोसा किया है, तो आपको उसकी इज्जत करनी चाहिए थी। जिस गठबंधन के खिलाफ आपने लड़ाई लड़ी, आज उसी के साथ चले गए। इससे तो बेहतर होता कि आप फिर जनता के बीच जाकर नए सिरे मैंडेट लें। बिहार के लोगों ने आपको पांच साल के लिए चुना था। प्रशांत किशोर बोले, मैं इस देश का आम नागरिक होने के नाते कह रहा हूं कि सरकार को यदि पांच साल के लिए चुना गया है तो उसे अपना कार्यकाल पूरा करना चाहिए। प्रशांत किशोर ने इस मामले से खुद को अलग बताया है। उन्होंने कहा, मैं न तो पक्ष में हूं न ही विपक्ष में। जेडीयू की बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि भाजपा ने हमेशा उनकी पार्टी को अपमानित करने का काम किया है। जेडीयू को षडयंत्र के तहत खत्म करने की कोशिश की गई। बिहार विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 243 है। सरकार बनाने के लिए किसी भी दल को 122 सीटों की जरूरत है। राजद के पास विधानसभा में 79 सदस्य हैं। भाजपा के 77 और जदयू के 45 विधायक हैं। कांग्रेस पार्टी के 19 विधायक हैं। कुछ अन्य छोटे दलों के विधायक भी हैं।