फिर वही दिसंबर की कड़कड़ाती ठंड और दिल्ली की सड़कों पर रात दिन आंदोलनकारियों का डेरा, सरकार विरोधी नारे। 2019 की दिसंबर यह की छवि अभी मस्तिष्क पटल पर धुंधलाई भी न थी ,की 2020 की दिसंबर में भी दिल्ली की सड़कों पर वही नजारे दिखाई दे रहे हैं । यू लगता है देश 70, 80 साल पीछे चला गया है । जैसे अंग्रेजों के शासनकाल में एक के बाद एक आंदोलन होते रहते थे इसी प्रकार देश की जनता बार-बार आंदोलन पर मजबूर है । इस समय देश के कोने कोने से आकर किसानों ने दिल्ली को घेर लिया है ।2019 में सी ए० ए ०एन०आरसी के विरोध में स्त्री पुरुष बच्चे सब सड़कों पर उतरे हुए थे। इस आंदोलन को एक वर्ग विशेष से जोड़ कर धार्मिक रंग देने की पूरी कोशिश की गई थी। लेकिन देश की जनता ने इसे पूरी तरह नकार दिया ।इसी समय करोना के कहर ने सारी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया और आंदोलन ठंडा पड़ गया। लेकिन अभी करोना कि इस मार से निकले भी न थे कि कृषि विधेयक बिल पास हो गया। देशभर के किसानों ने इसका विरोध किया और बिल वापसी के लिए आंदोलन शुरू कर दिए किसान धरने पर बैठे, रेल रोको आंदोलन किया, लेकिन सरकार के कान पर जूं तक न रेंगी। वर्तमान सरकार को सातवां साल लग गया, यह साल किस तरह गुज़रे हैं ऊपर वाला ही जानता है। हर दिन किसी अनहोनी का डर रहता है। जब पता चलता है प्रधानमंत्री रात के 9:00 बजे राष्ट्र के नाम संदेश देना चाहते हैं ,तो जनता की सांसे रुक जाती हैं। रात की 9:00 बजे नोटबंदी की घोषणा की गई जिसके नुकसान की भरपाई आज तक नहीं हो सकी है । अफ़रा-तफ़री के आलम में न जाने कितनी ही जाने चली गई रात के 9:00 बजे अचानक लॉक डाउन का ऐलान हो जाता है जिससे जनता भुखमरी के कगार पर पहुंच गयी , देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह डगमगा गयी । इस समय देश चारों ओर से परेशानियों में घिरा है पाकिस्तानी सीमाएं तो आजादी के बाद से ही असुरक्षित मानी जाती रही हैं चीन भी हमारा दुश्मन हो गया है इसने भारतीय सुरक्षाकर्मियों की चैन छीन रखी है करोना से पूरा देश जूझ रहा है ,लॉक डाउन की मार से जनता अभी उभरी भी नहीं है ऐसे में एक नया बिल पारित हो गया, सरकार ने कृषि से संबंधित 3 बिल ऑर्डिनेंस की शक्ल में पारित किए जिन्हें तुरंत ही कानूनी स्थान भी दे दिया गया। इन बिलों के नुकसान जगजाहिर हैं इस बिल के तहत गरीब और अनपढ़ किसान की हैसियत बंधुआ गुलाम की होकर रह जाएगी, कानून सरमाया दारो को ज़रूरी सामान की जमाखोरी करने और दाम बढ़ाकर बेचने का मार्ग प्रशस्त करेगा जिसका सीधा असर आम आदमी और गरीब किसान पर पड़ेगा । वह किसान जो दिन भर खून पसीना बहा कर खेतों में हल चलाकर अन्न पैदा करता है। जो किसी वर्ग विशेष का नहीं अपितु सारे समाज का पेट भरता है ।सरकार उसी किसान को भूखे मरने पर मजबूर कर देना चाहती है उसे सरमाया दारों का गुलाम बना देना चाहते हैं।
सींचता है लहू से फ़सलों को
फिर भी भूखा किसान रहता है।
कृषि बिल के नुकसान का अंदाजा उन 70% ग़रीब किसानों को भी है जो इस का विरोध कर रहे हैं और उन ३०% पूंजी पतियों को भी जो इसका समर्थन कर रहे हैं फर्क सिर्फ इतना है पूंजी पति जिनको फायदा है वह समर्थन कर रहे हैं जिनको नुकसान हैं वह विरोध कर रहे हैं
वर्ष 2014 में माननीय श्री नरेंद्र मोदी की सरकार इस नारे के साथ आई थी “सबका साथ सबका विकास” हमारा सवाल यह है “यह कैसा विकास है” जिसमें गरीब रो रहा है और सर धनवान खुश है।
कुछ तो कोई बताए कि मेरा सवाल है
अच्छे दिनों की क्या यह अनोखी मिसाल है।
मौसम तो खुशगवार है ज़रदार के लिए
चेहरे पर एक ग़रीब के लेकिन मलाल है।
देश के विकास के लिए किसी भी कानून में बदलाव करने का सरकार को अधिकार है लेकिन ऐसे किसी बदलाव को करने से पहले सरकार को यह सोचना चाहिए कि इसका देश की जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह कानून देश की जनता के हित में हैं या नहीं इस काले कानून का देश के किसानों पर क्या प्रभाव पड़ेगा। यह काला कानून देश को फिर उसी अंग्रेजी शासन में लौटना चाहता है जिससे लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की कुर्बानी देकर निकाला था ।पिछले 7 सालों से जिस तेजी से कानून पारित किए जा रहे हैं इससे तो ऐसा लगता है कि भारत में किसी नए संविधान का गठन होने वाला है। मैं सरकार से सवाल करती हूं कि कोई भी कानून पारित करने से पहले आप जनता को अपने विश्वास में क्यों नहीं लेते, जब भी आप कोई नया कानून बनाते हैं या बिल पास करते हैं बुद्धिजीवी वर्ग इसका विरोध करता है। आप तलाक बिल लाए पढ़ी लिखी मुस्लिम महिलाओं ने इसका खुलकर विरोध किया। आपने 370 हटाया, कश्मीरियों ने इसे स्वीकार नहीं किया। आप सी० ए ०ए० लाए देश की अधिकतर जनता ने इसका विरोध किया। अब आप फिर से नया बिल ले आए देश के किसान , बुद्धि जीवी वर्ग , चारों ओर से इसका विरोध हो रहा है। देश की नामचीन हस्तियां अपने पुरस्कार सम्मान वापस कर रहे हैं। विपक्ष तो विपक्ष लेकिन अकाली दल आरएलपी हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सब इसका विरोध कर रहे हैं सब गरीब किसान के साथ हैं ।आखिर संविधान और लोकतंत्र का कुछ पास है कि नहीं या फिर हिटलर की तरह जनता पर अपने फैसले थोपते ही जा रहे हैं , हिटलर ने तानाशाही से राज किया जनता की भावनाओं को पैरों तले कुचल दिया फिर उसका अंजाम दुनिया ने देखा। तीन तलाक, एनआरसी , 370 एक कमजोर वर्ग से संबंधित फैसले थे ।लेकिन अब बारी किसानों की है किसानों से बातचीत करके किसानों के मजबूत इरादों का अंदाजा हो ही गया होगा ,उन्होंने न सिर्फ सरकार का खाना ठुकरा दिया बल्कि उनके प्रस्ताव को भी नामंजूर कर दिया। अधिकतर किसान गरीब अनपढ़ है, जिसे सरकार झांसा दे सकती है कि कानून आपके हित में है लेकिन किसान आंदोलन का संचालन करने वाले पढ़े लिखे बुद्धिजीवी वर्ग के लोग हैं जिसमें डॉक्टर इंजीनियर सब शामिल हैं जो भली-भांति अपना फायदा और नुकसान समझते हैं देश की भलाई इसी में है कि सरकार बिना विलम्ब किए यह क़ानून रदद करे। क्योंकि यह आन्दोलन केवल पंजाब या हरियाणा के किसानों का नहीं बल्कि सारे देश के किसानों का है। भले ही बिकाऊ मीडिया ने इसे धार्मिक रंग में रंगने की पूरी कोशिश की लेकिन भारतीय किसानों की एकता के सामने इसे मुंह की खानी पड़ी।