ज़िया ए हक़ फाउंडेशन के द्वारा 27 जून 2021 को शाम 6 बजे इलाहाबाद में एक कवी समारोह का आयोजन ” एक शायर पांच कलाम” के नाम से ऑनलाइन आयेाजित किया गया! जिस में युवा पीढी की सकारात्मक विचारधारा रखने वाली , स्त्री विमर्श पर अपनी बेबाक राय रखने वाली समाजिक, राजनीतिक जीवन में होने वाली गतिविधियों और अत्याचार के विरोध में आवाज़ उठाने वाली युवा आवाज़ आरती चिराग़ ने अपनी 5 विभिन्न विषयों पर आधारित कविताएं सुनाने के साथ अपने जीवन वा साहित्यिक जीवन पर भी भरपूर प्रकाश डाला, अपने विषय में उन्होंने कहा….
“17 अप्रैल 1986 को मल्लावां, हरदोई (उ.प्र.) में जन्म।
स्कूली शिक्षा मल्लावां, हरदोई (उ.प्र.) कस्बे से प्राप्त की। तथा शिक्षा में BA.,B.Ed.,LL.B.,MA.-हिन्दी साहित्य तथा समाजशास्त्र से।
लेखन का प्रारम्भ कविताओं से। कुछ कविताएं विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रकाशित।
छात्र राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई।
जन-आंदोलनों तथा जनोन्मुखी राजनीति में गहरी दिलचस्पी।”
ये प्रोग्राम यूट्यूब चैनल ” ऊर्दू हिन्दी लव” पर भी लाइव चला,जिसे इच्छुक श्रोता अभी भी देख सकते है। आरती चिराग़ की प्रस्तुत कविताओ की ये झलक देखिए।
(1) हजारों साल
हजारों सालों से मैंने किए
तुम्हारे लिए लाखों साज-सिंगार
तुम्हारे जिन्दा रहने की प्रार्थनाएं की
तुम जब भी निकले घर से बाहर
तुम्हारी सलामती की कामनाएं की
तुम्हारे वंश को चलाने के लिए
तुम्हारे अंश को मैंने अपने खून से सींचा
लेकिन सन्तान वह केवल तुम्हारी हुई
तुम्हारे बूढ़े मां – बाप की सेवा मैंने की
लेकिन नाम तुम्हारा हुआ
तुम्हारे घर की देख – रेख, फूल – पौधों और बाग-बगीचों को मैंने सजाया ।
लेकिन वह घर,
केवल तुम्हारा था !
अब तुम ही बताओ साथी
तुमने ऐसा क्या किया, जो हमारा हो ?
(2) जंगल राज
सावधान !
जंगल राज आ गया है।
अब संवेदनाओं को कुचला जाएगा
मां की गोद से उनके बच्चे छीन लिए जाएंगे
सड़क पर लड़कियों को छेड़ा जाएगा
बलात्कार की घटनाएं और तेजी से बढ़ेंगी
किसान आत्महत्याएं करेंगे
नौजवान बेरोजगारी में फांसी पर झूलेंगे
लेखक, बुद्धिजीवी, पत्रकार
इन सब को गोलियों से भूना जाएगा
ख़बरदार !
किसी ने मन की बात बोली तो,
एक दिन राजा मन की बात बोलेगा
भाइयों और बहनों
पिछले 70 सालों में, जो किसी ने नहीं
वो हम कर दिखाएंगे।
(3) ये लड़कियां
कुछ पूरे कुछ अधूरे
सपनों के साथ
भागती हैं ये लड़कियां
कुछ खट्टी कुछ मीठी
यादों के साथ
कुछ भागी होंगी
प्रेम में,
कुछ अपने
अस्तित्व और अस्मिता
के लिए
कुछ नहीं भाग पाई
डर से
कुछ भागी
पकड़ी गईं
या
मार दी गईं।
कुछ भागी होंगी
खिड़की या दरवाजों से
कुछ भगा दी गईं
मां की कोख़ से
कुछ चाहती हैं भागना
घर की चार दीवारी
और रोशनदानों से
कुछ भागकर भी,
नहीं भागी।
कुछ हकीकत में कम
मन ही मन, कई बार, बार-बार
भागी हैं ये लड़कियां।
(4) घर
जहाँ मैं पैदा हुई
वो पिता का घर था।
जहाँ भेजी गई
वो पति का।
और जहाँ हूं
वो बेटे का है।
अब तुम ही बताओ
मेरा घर कहाँ है ?
(5) हम बोलेंगे
हम बोलेंगे,
उतना ही नहीं
जितना तुम कहो
हम बोलेंगे
सदियों से चली आ रही
तुम्हारी सत्ता के ख़िलाफ़।
हम बोलेंगे
तो बोलोगे
कि ये स्त्रियां
मर्यादाहीन,और अराजक हैं।
हम बोलेंगे
तो कही जाएंगी
चरित्रहीन !
क्योंकि हमारा भेड़ बनकर चलना ही
बेहतर है तुम्हारे लिए।
हम बोलेंगे
तो तुम बोलोगे
कि किसी भी काल में बोलती हुई
स्त्रियां अच्छी नहीं लगती।
वो सिर्फ अच्छी लगती हैं तुम्हें
चार दिवारी में बंद किसी बिस्तर पर !
हम बोलेंगे
तो बोलने के कारण भी होंगे।
क्योंकि हमारा न बोलना ही
तुम्हारा हथियार है।
हम बोलेंगे
कि सदियों से इस बंद चुप्पी को तोड़ना है हमें
क्योंकि चुप्पी का टूटना ही हमारी जीत
और तुम्हारी हार है।
इस कार्यक्रम का संचालन डॉ सालेहा सिद्दीकी ने किया, अभिनन्दन मो गुफरान ने और कविताओं पर अपने विचार मो शाहिद ने व्यक्त किया।
इस कार्यक्रम में मुख्य मेहमानों में शामिल रहें ज़की तारिक़ बारह बंकवी, मौलाना जाहिद राजा बनारसी, डॉ राहिन, अबू सहमा अंसारी, मो जाहिद , असरार गांधी इत्यादि।